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13. अर-रअद [ कुल आयतें - 43]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
   अलिफ़॰ लाम॰ मीम॰ रा॰। ये किताब की आयतें हैं और जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर अवतरित हुआ है, वह सत्य है, किन्तु अधिकतर लोग मान नहीं रहे हैं।(1)
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    अल्लाह वह है जिसने आकाशोंको बिना सहारे के ऊँचा बनाया जैसा कि तुम उन्हें देखते हो।फिर वह सिंहासन पर आसीन हुआ। उसने सूर्य और चन्द्रमा को काम पर लगाया। हरेक एक नियत समय तक के लिए चला जा रहा है। वह सारे काम का विधान कर रहा है; वह निशानियाँ खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम्हें अपने रब से मिलने का विश्वास हो । (2)
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    और वही है जिसने धरती को फैलाया और उसमें जमे हुए पर्वत और नदियाँ बनाईं और हरेक पैदावार की दो-दो क़िस्में बनाईं। वही रात से दिन को छिपा देता है। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ हैं जो सोच-विचार से काम लेते हैं। (3)
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    और धरती में पास-पास भूभाग पाए जाते हैं जो परस्पर मिले हुए हैं, और अंगूरों के बाग़ हैं और खेतियाँ हैं और खजूर के पेड़ हैं, इकहरे भी और दोहरे भी। सबको एक ही पानी से सिंचित करता है, फिर भी हम पैदावार और स्वाद में किसी कोकिसी के मुक़ाबले में बढ़ा देते हैं। निश्चय ही इसमें उनलोगों के लिए निशानियाँ हैं, जो बुद्धि से काम लेते हैं। (4)
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     अब यदि तुम्हें आश्चर्य हीकरना है तो आश्चर्य की बात तो उनका यह कहना है कि ,"क्या जब हम मिट्टी हो जाएँगे तो क्या हम नए सिरे से पैदा भी होंगे?"वही हैं जिन्होंने अपने रब केसाथ इनकार की नीति अपनाई और वही हैं, जिनकी गर्दनों मे तौक़ पड़े हुए हैं और वही आग (में पड़ने) वाले हैं जिसमें उन्हें सदैव रहना है। (5)
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     वे भलाई से पहले बुराई के लिए तुमसे जल्दी मचा रहे हैं, हालाँकि उनसे पहले कितनी ही शिक्षाप्रद मिसालें गुज़र चुकी हैं। किन्तु तुम्हारा रब लोगों को उनके अत्याचार केबावजूद क्षमा कर देता है और वास्तव में तुम्हारा रब दंड देने में भी बहुत कठोर है। (6)
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   जिन्होंने इनकार किया, वे कहते हैं, "उसपर उसके रब की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं अवतरित हुई?" तुम तो बस एक चेतावनी देनेवाले हो और हर क़ौम के लिए एक मार्गदर्शक हुआ है। (7)
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    किसी भी स्त्री-जाति को जो भी गर्भ रहता है अल्लाह उसे जान रहा होता है और उसे भी जो गर्भाशय में कमी-बेशी होती है। और उसके यहाँ हरेक चीज़ का एक निश्चित अन्दाज़ा है। (8)
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    वह परोक्ष और प्रत्यक्ष काज्ञाता है, महान है, अत्यन्त उच्च है। (9)
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     तुममें से कोई चुपके से बात करे और जो कोई ज़ोर से और जो कोई रात में छिपता हो और जोदिन में चलता-फिरता दीख पड़ताहो उसके लिए सब बराबर है। (10)
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  उसके रक्षक (पहरेदार) उसके अपने आगे और पीछे लगे होते हैं जो अल्लाह के आदेश से उसकी रक्षा करते हैं। किसी क़ौम के लोगों को जो कुछ प्राप्त होता है अल्लाह उसे बदलता नहीं, जब तक कि वे स्वयंअपने आपको न बदल डालें। और जब अल्लाह किसी क़ौम का अनिष्ट चाहता है तो फिर वह उससे टल नहीं सकता, और उससे हटकर उनका कोई समर्थक और संरक्षक भी नहीं। (11)
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    वही है जो भय और आशा के निमित्त तुम्हें बिजली की चमक दिखाता है और बोझिल बादलों को उठाता है। (12)
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    बादल की गरज उसका गुणगान करती है और उसके भय से काँपते हुए फ़रिश्ते भी। वही कड़कती बिजलियाँ भेजता है, फिर जिसपरचाहता है उन्हें गिरा देता है, जबकि वे अल्लाह के विषय में झगड़ रहे होते हैं। निश्चय ही उसकी चाल बड़ी सख़्त है। (13)
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    उसी के लिए सच्ची पुकार है। उससे हटकर जिनको वे पुकारते हैं, वे उनकी पुकार का कुछ भी उत्तर नहीं देते। बस यह ऐसा ही होता है जैसे कोईअपने दोनों हाथ पानी की ओर इसलिए फैलाए कि वह उसके मुँह में पहुँच जाए, हालाँकि वह उसतक पहुँचनेवाला नहीं। कुफ़्र करनेवालों की पुकार तो बस भटकने ही के लिए होती है। (14)
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    आकाशों और धरती में जो भी हैं स्वेच्छापूर्वक या विवशतापूर्वक अल्लाह ही को सजदा कर रहे हैं और उनकी परछाइयाँ भी प्रातः और संध्या समय। (15)
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    कहो, "आकाशों और धरती का रबकौन है?" कहो, "अल्लाह" कह दो,"फिर क्या तुमने उससे हटकर दूसरों को अपना संरक्षक बना रखा है, जिन्हें स्वयं अपने भी किसी लाभ का न अधिकार प्राप्त है और न किसी हानि का?" कहो, "क्या अंधा और आँखोंवाला दोनों बराबर होते हैं? या बराबर होते हैं अँधरे और प्रकाश? या जिनको अल्लाह का सहभागी ठहराया है, उन्होंने भी कुछ पैदा किया है, जैसा कि उसने पैदा किया है, जिसके कारण सृष्टि का मामला इनके लिए गडमड हो गया है?" कहो, "हर चीज़ को पैदा करनेवाला अल्लाह है और वह अकेला है, सब पर प्रभावी!" (16)
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   उसने आकाश से पानी उतारा तो नदी-नाले अपनी-अपनी समाई के अनुसार बह निकले। फिर पानीके बहाव ने उभरे हुए झाग को उठा लिया और उसमें से भी, जिसेवे ज़ेवर या दूसरे सामान बनाने के लिए आग में तपाते हैं, ऐसा ही झाग उठता है। इस प्रकार अल्लाह सत्य और असत्य की मिसाल बयान करता है। फिर जो झाग है वह तो सूखकर नष्ट होजाता है और जो कुछ लोगों को लाभ पहुँचानेवाला होता है, वहधरती में ठहर जाता है। इसी प्रकार अल्लाह दृष्टांत प्रस्तुत करता है। (17)
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    जिन लोगों ने अपने रब का आमंत्रण स्वीकार कर लिया, उनके लिए अच्छा पुरस्कार है। रहे वे लोग जिन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया यदि उनके पास वह सब कुछ हो जो धरती में हैं, बल्कि उसके साथ उतना और भी हो तो अपनी मुक्ति के लिए वे सब दे डालें। वही हैं, जिनका बुरा हिसाब होगा। उनका ठिकाना जहन्नम है और वह अत्यन्त बुरा विश्राम-स्थल है। (18)
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     भला वह व्यक्ति जो जानता है कि जो कुछ तुम पर उतरा है तुम्हारे रब की ओर से सत्य है,कभी उस जैसा हो सकता है जो अंधा है? परन्तु समझते तो वही हैं जो बुद्धि और समझ रखते हैं, (19)
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    जो अल्लाह के साथ की हुई प्रतिज्ञा को पूरा करते हैं औऱ अभिवचन को तोड़ते नहीं, (20)
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    और जो ऐसे हैं कि अल्लाह नॆजिसे जोड़ने का आदेश दिया है उसे जोड़ते हैं और अपनॆ रब से डरते रहते हैं और बुरॆ हिसाब का उन्हॆं डर लगा रहता है। (21)
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    और जिन लोगों ने अपने रब कीप्रसन्नता की चाह में धैर्य से काम लिया और नमाज़ क़ायम की और जो कुछ हमने उन्हें दिया है, उसमें से खुले और छिपे ख़र्च किया, और भलाई के द्वारा बुराई को दूर करते हैं। वही लोग हैं जिनके लिए आख़िरत के घर का अच्छा परिणामहै, (22)
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    अर्थात सदैव रहने के बाग़ हैं जिनमें वे प्रवेश करेंगे और उनके बाप-दादा और उनकी पत्नियों और उनकी सन्तानों में से जो नेक होंगे वे भी और हर दरवाज़े से फ़रिश्ते उनके पास पहुँचेंगे। (23)
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    (वे कहेंगे) "तुमपर सलाम हैउसके बदले में जो तुमने धैर्यसे काम लिया।" अतः क्या ही अच्छा परिणाम है आख़िरत के घरका! (24)
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    रहे वे लोग जो अल्लाह की प्रतिज्ञा को उसे दृढ़ करने के पश्चात तोड़ डालते हैं और अल्लाह ने जिसे जोड़ने का आदेश दिया है, उसे काटते हैं और धरती में बिगाड़ पैदा करतेहैं। वही हैं जिनके लिए फिटकार है और जिनके लिए आख़िरत का बुरा घर है। (25)
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   अल्लाह जिसको चाहता है प्रचुर फैली हुई रोज़ी प्रदान करता है और इसी प्रकारनपी-तुली भी। और वे सांसारिक जीवन में मग्न हैं, हालाँकि सांसारिक जीवन आख़िरत के मुक़ाबले में तो बस अल्प सुख-सामग्री है। (26)
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    जिन लोगों ने इनकार किया वे कहते हैं, "उसपर उसके रब की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं उतरी?" कहो, "अल्लाह जिसे चाहता है पथभ्रष्ट कर देता है। अपनी ओर से वह मार्गदर्शनउसी का करता है जो रुजू होता है।" (27)
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   ऐसे ही लोग हैं जो ईमान लाएऔर जिनके दिलों को अल्लाह के स्मरण से आराम और चैन मिलता है। सुन लो, अल्लाह के स्मरण से ही दिलों को संतोष प्राप्तहुआ करता है। (28)
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     जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके लिए सुख-सौभाग्य है और लौटने का अच्छा ठिकाना है। (29)
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    अतएव हमने तुम्हें एक ऐसे समुदाय में भेजा है जिससे पहले कितने ही समुदाय गुज़र चुके हैं, ताकि हमने तुम्हारीओर जो प्रकाशना की है, उसे उनको सुना दो, यद्यपि वे रहमान के साथ इनकार की नीति अपनाए हुए हैं। कह दो, "वही मेरा रब है। उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। उसी पर मेरा भरोसा है और उसी की ओर मुझे पलटकर जाना है।" (30)
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    और यदि कोई ऐसा क़ुरआन होता जिसके द्वारा पहाड़ चलने लगते या उससे धरती खंड-खंड हो जाती या उसके द्वारा मुर्दे बोलने लगते (तबभी वे लोग ईमान न लाते) । नहीं,बल्कि बात यह है कि सारे काम अल्लाह ही के अधिकार में हैं।फिर क्या जो लोग ईमान लाए हैं वे यह जानकर निराश नहीं हुए कि यदि अल्लाह चाहता तो सारे ही मनुष्यों को सीधे मार्ग परलगा देता? और इनकार करनेवालोंपर तो उनकी करतूतों के बदले में कोई न कोई आपदा निरंतर आती ही रहेगी, या उनके घर के निकट ही कहीं उतरती रहेगी, यहाँ तक कि अल्लाह का वादा आ पूरा होगा। निस्संदेह अल्लाहअपने वादे के विरुद्ध नहीं जाता।" (31)
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    तुमसे पहले भी कितने ही रसूलों का उपहास किया जा चुकाहै, किन्तु मैंने इनकार करनेवालों को मुहलत दी। फिर अंततः मैंने उन्हें पकड़ लिया, फिर कैसी रही मेरी सज़ा?(32)
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    भला वह (अल्लाह) जो प्रत्येक व्यक्ति के सिर पर, उसकी कमाई पर निगाह रखते हुए खड़ा है (उसके समान कोई दूसरा हो सकता है)? फिर भी लोगों ने अल्लाह के सहभागी-ठहरा रखे हैं। कहो, "तनिक उनके नाम तो लो! (क्या तुम्हारे पास उनके पक्ष में कोई प्रमाण है?) या ऐसा है कि तुम उसे ऐसी बात की ख़बर दे रहे हो, जिसके अस्तित्व की उसे धरती भर में ख़बर नहीं? या यूँ ही यह एक ऊपरी बात ही बात है?" नहीं, बल्कि इनकार करनेवालों को उनकी मक्कारी ही सुहावनी लगती है और वे मार्ग से रुक गएहैं। जिसे अल्लाह ही गुमराही में छोड़ दे, उसे कोई मार्ग परलानेवाला नहीं। (33)
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   उनके लिए सांसारिक जीवन में भी यातना है। रही आख़िरत की यातना, तो वह अत्यन्त कठोर है। और कोई भी तो नहीं जो उन्हें अल्लाह से बचानेवाला हो।(34)
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    डर रखनेवालों के लिए जिस जन्नत का वादा है उसकी शान यह है कि उसके नीचे नहरें बह रही हैं, उसके फल शाश्वत हैं और इसी प्रकार उसकी छाया भी। यह परिणाम है उनका जो डर रखते हैं, जबकि इनकार करनेवालों कापरिणाम आग है। (35)
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    जिन लोगों को हमने किताब प्रदान की है वे उससे, जो तुम्हारी ओर उतारा है, हर्षितहोते हैं और विभिन्न गरोहों के कुछ लोग ऐसे भी हैं जो उसकीकुछ बातों का इनकार करते हैं।कह दो, "मुझे तो बस यह आदेश हुआहै कि मैं अल्लाह की बन्दगी करूँ और उसका सहभागी न ठहराऊँ। मैं उसी की ओर बुलाताहूँ और उसी की ओर मुझे लौटकर जाना है।" (36)
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   और इसी प्रकार हमने इस (क़ुरआन) को एक अरबी फ़रमान केरूप में उतारा है। अब यदि तुम उस ज्ञान के पश्चात भी, जो तुम्हारे पास आ चुका है, उनकी इच्छाओं के पीछे चले तो अल्लाह के मुक़ाबले में न तो तुम्हारा कोई सहायक मित्र होगा और न कोई बचानेवाला। (37)
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  तुमसे पहले भी हम, कितने हीरसूल भेज चुके हैं और हमने उन्हें पत्नियाँ और बच्चे भी दिए थे, और किसी रसूल को यह अधिकार नहीं था कि वह अल्लाह की अनुमति के बिना कोई निशानीस्वयं ला देता। हर चीज़ के लिए एक समय है जो अटल लिखित है। (38)
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    अल्लाह जो कुछ चाहता है मिटा देता है। इसी तरह वह क़ायम भी रखता है। मूल किताब तो स्वयं उसी के पास है। (39)
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    हम जो वादा उनसे कर रहे हैंचाहे उसमें से कुछ हम तुम्हेंदिखा दें, या तुम्हें उठा लें। तुम्हारा दायित्व तो बस सन्देश का पहुँचा देना ही है, हिसाब लेना तो हमारे ज़िम्मे है। (40)
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    क्या उन्होंने देखा नहीं कि हम धरती पर चले आ रहे हैं, उसे उसके किनारों से घटाते हुए? अल्लाह ही फ़ैसला करता है। कोई नहीं जो उसके फ़ैसले को पीछे डाल सके। वह हिसाब भी जल्द लेता है। (41)
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    उनसे पहले जो लोग गुज़रे हैं, वे भी चालें चल चुके हैं, किन्तु वास्तविक चाल तो पूरी की पूरी अल्लाह ही के हाथ में है। प्रत्येक व्यक्ति जो कमाई कर रहा है उसे वह जानता है। इनकार करनेवालों को शीघ्र ही ज्ञात हो जाएगा कि परलोक-गृह के शुभ परिणाम के अधिकारी कौन हैं। (42)
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    जिन लोगों ने इनकार की नीति अपनाई, वे कहते हैं, "तुम कोई रसूल नहीं हो।" कह दो,"मेरे और तुम्हारे बीच अल्लाह की और जिस किसी के पास किताब का ज्ञान है उसकी, गवाही काफ़ी है।" (43)
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