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16. अल-नहल    [ कुल आयतें - 128 ]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
   आ गया आदेश अल्लाह का, तो अबउसके लिए जल्दी न मचाओ। वह महान और उच्च है उस शिर्क से जो वे कर रहे हैं। (1)
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   वह फ़रिश्तों को अपने हुक्म की रूह (वह्य) के साथ अपने जिस बन्दे पर चाहता है उतारता है कि "सचेत कर दो, मेरे सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। अतः तुम मेरा ही डर रखो।" (2)
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    उसने आकाशों और धरती को सोद्देश्य पैदा किया। वह अत्यन्त उच्च है उस शिर्क से जो वे कर रहे हैं। (3)
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    उसने मनुष्यों को एक बूँद से पैदा किया। फिर क्या देखतेहैं कि वह खुला झगड़नेवाला बनगया! (4)
_______________________________
    रहे पशु, उन्हें भी उसी ने पैदा किया, जिसमें तुम्हारे लिए ऊष्मा प्राप्त करने का सामान भी है और हैं अन्य कितने ही लाभ। उनमें से कुछ को तुम खाते भी हो। (5)
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    उनमें तुम्हारे लिए सौन्दर्य भी है, जबकि तुम सायंकाल उन्हें लाते और जबकि तुम उन्हें चराने ले जाते हो।(6)
_______________________________
    वे तुम्हारे बोझ ढोकर ऐसे भूभाग तक ले जाते हैं, जहाँ तुम जी-तोड़ परिश्रम के बिना नहीं पहुँच सकते थे। निस्संदेह तुम्हारा रब बड़ा ही करुणामय, दयावान है। (7)
_______________________________
   और घोड़े और ख़च्चर और गधे भी पैदा किए, ताकि तुम उनपर सवार हो और शोभा का कारण भी। और वह उसे भी पैदा करता है, जिसे तुम नहीं जानते। (8)
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    अल्लाह के लिए ज़रूरी है उचित एवं अनुकूल मार्ग दिखाना और कुछ मार्ग टेढ़े भीहैं। यदि वह चाहता तो तुम सबको अवश्य सीधा मार्ग दिखा देता। (9)
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    वही है जिसने आकाश से तुम्हारे लिए पानी उतारा, जिसे तुम पीते हो और उसी से पेड़ और वनस्पतियाँ भी उगती हैं, जिनमें तुम जानवरों को चराते हो। (10)
_______________________________
    और उसी से वह तुम्हारे लिए खेतियाँ उगाता है और ज़ैतून, खजूर, अंगूर और हर प्रकार के फल पैदा करता है। निश्चय ही सोच-विचार करनेवालों के लिए इसमें एक निशानी है। (11)
_______________________________
    और उसने तुम्हारे लिए रात और दिन को और सूर्य और चन्द्रमा को कार्यरत कर रखा है। और तारे भी उसी की आज्ञा से कार्यरत हैं - निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ हैं जो बुद्धि से काम लेते हैं- (12)
_______________________________
   और धरती में तुम्हारे लिए जो रंग-बिरंग की चीज़ें बिखेररखी हैं, उसमें भी उन लोगों केलिए बड़ी निशानी है जो शिक्षालेनेवाले हैं।(13)
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   वही तो है जिसने समुद्र को वश में किया है, ताकि तुम उससेताज़ा मांस लेकर खाओ और उससे आभूषण निकालो, जिसे तुम पहनतेहो। तुम देखते ही हो कि नौकाएँ उसको चीरती हुई चलती हैं (ताकि तुम सफ़र कर सको) और ताकि तुम उसका अनुग्रह तलाश करो और ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ। (14)
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    और उसने धरती में अटल पहाड़ डाल दिए, कि वह तुम्हें लेकर झुक न पड़े। और नदियाँ बनाईं और प्राकृतिक मार्ग बनाए, ताकि तुम मार्ग पा सको। (15)
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   और मार्ग चिन्ह भी बनाए और तारों के द्वारा भी लोग मार्गपा लेते हैं।(16)
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    फिर क्या जो पैदा करता है वह उस जैसा हो सकता है, जो पैदा नहीं करता? फिर क्या तुम्हें होश नहीं होता? (17)
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    और यदि तुम अल्लाह की नेमतों (कृपादानों) को गिनना चाहो तो उन्हें पूर्ण-रूप से गिन नहीं सकते। निस्संदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है। (18)
_______________________________
    और अल्लाह जानता है जो कुछ तुम छिपाते हो और जो कुछ प्रकट करते हो। (19)
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    और जिन्हें वे अल्लाह से हटकर पुकारते हैं वे किसी चीज़ को भी पैदा नहीं करते, बल्कि वे स्वयं पैदा किए जातेहैं। (20)
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   मृत हैं, जिनमें प्राण नहीं। उन्हें मालूम नहीं कि वे कब उठाए जाएँगे।(21)
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    तुम्हारा पूज्य-प्रभु अकेला प्रभु-पूज्य है। किन्तु जो आख़िरत में विश्वास नहीं रखते, उनके दिलों को इनकार है। वे अपने आपको बड़ा समझ रहे हैं। (22)
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   निश्चय ही अल्लाह भली-भाँति जानता है, जो कुछ वेछिपाते हैं और जो कुछ प्रकट करते हैं। उसे ऐसे लोग प्रिय नहीं, जो अपने आपको बड़ा समझते हों।(23)
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    और जब उनसे कहा जाता है कि"तुम्हारे रब ने क्या अवतरित किया है?" कहते हैं, "वे तो पहले लोगों की कहानियाँ हैं।"(24)
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    इसका परिणाम यह होगा कि वे क़ियामत के दिन अपने बोझ भी पूरे उठाएँगे और उनके बोझ मेंसे भी जिन्हें वे अज्ञानता केकारण पथभ्रष्ट कर रहे हैं। सुन लो, बहुत ही बुरा है वह बोझ जो वे उठा रहे हैं! (25)
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    जो उनसे पहले गुज़रे हैं वे भी मक्कारियाँ कर चुके हैं। फिर अल्लाह उनके भवन पर नीवों की ओर से आया और छत उनपरउनके ऊपर से आ गिरी और ऐसे रुख़ से उनपर यातना आई जिसका उन्हें एहसास तक न था। (26)
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    फिर क़ियामत के दिन अल्लाहउन्हें अपमानित करेगा और कहेगा, "कहाँ हैं मेरे वे साझीदार, जिनके लिए तुम लड़ते-झगड़ते थे?" जिन्हें ज्ञान प्राप्त था वे कहेंगे,"निश्चय ही आज रुसवाई और ख़राबी है इनकार करनेवालों के लिए।" (27)
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    जिनकी रूहों को फ़रिश्ते इस दशा में ग्रस्त करते हैं कि वे अपने आप पर अत्याचार कर रहे होते हैं, तब आज्ञाकारी एवं वशीभूत होकर आ झुकते हैं कि "हम तो कोई बुराई नहीं करतेथे।" "नहीं, बल्कि अल्लाह भली-भाँति जानता है जो कुछ तुम करते रहे हो। (28)
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    तो अब जहन्नम के द्वारों में, उसमें सदैव रहने के लिए प्रवेश करो। अतः निश्चय ही बहुत ही बुरा ठिकाना है यह अहंकारियों का।" (29)
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   दूसरी ओर जो डर रखनेवाले हैं उनसे कहा जाता है,"तुम्हारे रब ने क्या अवतरित किया?" वे कहते हैं, "जो सबसे उत्तम है।" जिन लोगों ने भलाई की उनकी इस दुनिया में भी अच्छी हालत है और आख़िरत का घर तो अच्छा है ही। और क्या हीअच्छा घर है डर रखनेवालों का! (30)
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   सदैव रहने के बाग़ जिनमें वे प्रवेश करेंगे, उनके नीचे नहरें बह रहीं होंगी, उनके लिए वहाँ वह सब कुछ संचित होगा, जो वे चाहें। अल्लाह डर रखनेवालों को ऐसा ही प्रतिदान प्रदान करता है।(31)
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  जिनकी रूहों को फ़रिश्ते इस दशा में ग्रस्त करते हैं कि वे पाक और नेक होते हैं, वे कहते हैं, "तुम पर सलाम हो! प्रवेश करो जन्नत में उसके बदले में जो कुछ तुम करते रहे हो।" (32)
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    क्या अब वे इसी की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि फ़रिश्ते उनके पास आ पहुँचे या तेरे रब का आदेश ही आ जाए? ऐसा ही उन लोगों ने भी किया, जो इनसे पहले थे। अल्लाह ने उनपर अत्याचार नहीं किया, किन्तु वे स्वयं अपने ऊपर अत्याचार करते रहे। (33)
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   अन्ततः उनकी करतूतों की बुराइयाँ उनपर आ पड़ीं, और जिसका उपहास वे करते थे, उसी ने उन्हें आ घेरा।(34)
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    शिर्क करनेवालों का कहना है, "यदि अल्लाह चाहता तो उससेहटकर किसी चीज़ की न हम बन्दगी करते और न हमारे बाप-दादा ही और न हम उसके बिनाकिसी चीज़ को अवैध ठहराते।" उनसे पहले के लोगों ने भी ऐसा ही किया। तो क्या साफ़-साफ़ सन्देश पहुँचा देने के सिवा रसूलों पर कोई और भी ज़िम्मेदारी है? (35)
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    हमने हर समुदाय में कोई न कोई रसूल भेजा कि "अल्लाह की बन्दगी करो और ताग़ूत से बचो।" फिर उनमें से किसी को तोअल्लाह ने सीधे मार्ग पर लगाया और उनमें से किसी पर पथभ्रष्टता सिद्ध होकर रही। फिर तनिक धरती में चल-फिरकर तो देखो कि झुठलानेवालों का कैसा परिणाम हुआ। (36)
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    यद्यपि इस बात का कि वे राहपर आ जाएँ तुम्हें लालच ही क्यों न हो, किन्तु अल्लाह जिसे भटका देता है, उसे वह मार्ग नहीं दिखाया करता और ऐसे लोगों का कोई सहायक भी नहीं होता। (37)
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    उन्होंने अल्लाह की कड़ी-कड़ी क़समें खाकर कहा,"जो मर जाता है उसे अल्लाह नहीं उठाएगा।" क्यों नहीं? यहतो एक वादा है, जिसे पूरा करनाउसके लिए अनिवार्य है - किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं। - (38)
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    ताकि वह उनपर उसको स्पष्ट कर दे, जिसके विषय में वे विभेद करते हैं और इसलिए भी कि इनकार करनेवाले जान लें किवे झूठे थे। (39)
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    किसी चीज़ के लिए जब हम उसका इरादा करते हैं तो हमाराकहना बस यही होता है कि उससे कहते हैं, "हो जा!" और वह हो जाती है। (40)
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    और जिन लोगों ने इसके पश्चात कि उनपर ज़ुल्म ढाया गया था अल्लाह के लिए घर-बार छोड़ा उन्हें हम दुनिया में भी अच्छा ठिकाना देंगे और आख़िरत का प्रतिदान तो बहुत बड़ा है। क्या ही अच्छा होता कि वे जानते। (41)
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    ये वे लोग हैं जो जमे रहे और वे अपने रब पर भरोसा रखते हैं। (42)
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    हमने तुमसे पहले भी पुरुषों ही को रसूल बनाकर भेजा था - जिनकी ओर हम प्रकाशना करते रहे हैं। यदि तुम नहीं जानते तो अनुस्मृतिवालों से पूछ लो। (43)
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    स्पष्ट प्रमाणों और ज़बूरों (किताबों) के साथ। और अब यह अनुस्मृति तुम्हारी ओर हमने अवतरित की, ताकि तुम लोगों के समक्ष खोल-खोलकर बयान कर दो जो कुछ उनकी ओर उतारा गया है और ताकि वे सोच-विचार करें। (44)
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    फिर क्या वे लोग जो ऐसी बुरी-बुरी चालें चल रहे हैं, इस बात से निश्चिन्त हो गए हैं कि अल्लाह उन्हें धरती में धँसा दे या ऐसे मौक़े से उनपर यातना आ जाए जिसका उन्हें एहसास तक न हो? (45)
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    या उन्हें चलते-फिरते ही पकड़ ले, वे क़ाबू से बाहर निकल जानेवाले तो हैं नहीं? (46)
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    या वह उन्हें त्रस्त अवस्था में पकड़ ले? किन्तु तुम्हारा रब तो बड़ा ही करुणामय, दयावान है। (47)
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   क्या अल्लाह की पैदा की हुई किसी चीज़ को उन्होंने देखा नहीं कि किस प्रकार उसकीपरछाइयाँ अल्लाह को सजदा करती और विनम्रता दिखाती हुई दाएँ और बाएँ ढलती हैं? (48)
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    और आकाशों और धरती में जितने भी जीवधारी हैं वे सब अल्लाह ही को सजदा करते हैं और फ़रिश्ते भी और वे घमंड बिलकुल नहीं करते। (49)
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    अपने ऊपर से अपने रब का डर रखते हैं और जो उन्हें आदेश होता है, वही करते हैं। (50)
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   अल्लाह का फ़रमान है,"दो-दो पूज्य-प्रभु न बनाओ, वह तो बस अकेला पूज्य-प्रभु है। अतः मुझी से डरो।" (51)
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   जो कुछ आकाशों और धरती में है सब उसी का है। उसी का दीन (धर्म) स्थायी और अनिवार्य है। फिर क्या अल्लाह के सिवा तुम किसी और का डर रखोगे?(52)
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   तुम्हारे पास जो भी नेमत हैवह अल्लाह ही की ओर से है। फिरजब तुम्हें कोई तकलीफ़ पहुँचती है, तो तुम उसी से फ़रियाद करते हो।(53)
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   फिर जब वह उस तकलीफ़ को तुमसे टाल देता है, तो क्या देखते हैं कि तुममें से कुछ लोग अपने रब के साथ साझीदार ठहराने लगते हैं, (54)
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    कि परिणामस्वरूप जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसके प्रति कृतघ्नता दिखलाएँ। अच्छा, कुछ मज़े ले लो, शीघ्र ही तुम्हें मालूम हो जाएगा। (55)
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   हमने उन्हें जो आजीविका प्रदान की है उसमें वे उनका हिस्सा लगाते हैं जिन्हें वे जानते भी नहीं। अल्लाह की सौगंध! तुम जो झूठ घड़ते हो उसके विषय में तुमसे अवश्य पूछा जाएगा।(56)
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    और वे अल्लाह के लिए बेटियाँ ठहराते हैं - महान और उच्च है वह - और अपने लिए वह, जो वे चाहें। (57)
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    और जब उनमें से किसी को बेटी की शुभ सूचना मिलती है तो उसके चहरे पर कलौंस छा जाती है और वह घुटा-घुटा रहता है। (58)
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    जो शुभ सूचना उसे दी गई वह (उसकी दृष्टि में) ऐसी बुराई की बात हुई कि उसके कारण वह लोगों से छिपता फिरता है कि अपमान सहन करके उसे रहने दे या उसे मिट्टी में दबा दे। देखो, कितना बुरा फ़ैसला है जो वे करते हैं! (59)
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    जो लोग आख़िरत को नहीं मानते बुरी मिसाल है उनकी। रहा अल्लाह, तो उसकी मिसाल अत्यन्त उच्च है। वह तो प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।(60)
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    यदि अल्लाह लोगों को उनके अत्याचार पर पकड़ने ही लग जाता तो धरती पर किसी जीवधारीको न छोड़ता, किन्तु वह उन्हें एक निश्चित समय तक टाले जाता है। फिर जब उनका नियत समय आ जाता है तो वे न तो एक घड़ी पीछे हट सकते हैं और नआगे बढ़ सकते हैं। (61)
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   वे अल्लाह के लिए वह कुछ ठहराते हैं, जिसे ख़ुद अपने लिए नापसन्द करते हैं और उनकीज़बानें झूठ कहती हैं कि उनकेलिए अच्छा परिणाम है। निस्संदेह उनके लिए आग है और वे उसी में पड़े छोड़ दिए जाएँगे।(62)
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    अल्लाह की सौगंध! हम तुमसे पहले भी कितने समुदायों की ओररसूल भेज चुके हैं, किन्तु शैतान ने उनकी करतूतों को उनके लिए सुहावना बना दिया। तो वही आज भी उनका संरक्षक है। उनके लिए तो एक दुखद यातना है। (63)
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    हमने यह किताब तुमपर इसीलिए अवतरित की है कि जिसमें वे विभेद कर रहे हैं उसे तुम उनपर स्पष्ट कर दो और यह मार्गदर्शन और दयालुता है उन लोगों के लिए जो ईमान लाएँ। (64)
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    और अल्लाह ही ने आकाश से पानी बरसाया। फिर उसके द्वारा धरती को उसके मृत हो जाने के पश्चात जीवित किया। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए बड़ी निशानी है जो सुनते हैं। (65)
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   और तुम्हारे लिए चौपायों में से एक बड़ी शिक्षा-सामग्री है, जो कुछ उनके पेटों में है उसमें से गोबर और रक्त के मध्य से हम तुम्हें विशुद्ध दूध पिलाते हैं, जो पीनेवालों के लिए अत्यन्त प्रिय है,(66)
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    और खजूरों और अंगूरों के फलों से भी, जिससे तुम मादक चीज़ भी तैयार कर लेते हो और अच्छी रोज़ी भी। निश्चय ही इसमें बुद्धि से काम लेनेवाले लोगों के लिए एक बड़ी निशानी है। (67)
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    और तुम्हारे रब ने मुधमक्खी के जी में यह बात डाल दी कि "पहाड़ों में और वृक्षों में और लोगों के बनाएहुए छत्रों में घर बना। (68)
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    फिर हर प्रकार के फल-फूलों से ख़ुराक ले और अपने रब के समतल मार्गों पर चलती रह।" उसके पेट से विभिन्न रंग का एक पेय निकलता है, जिसमें लोगों के लिए आरोग्य है। निश्चय ही सोच-विचार करनेवाले लोगों के लिए इसमें एक बड़ी निशानी है। (69)
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   अल्लाह ने तुम्हें पैदा किया। फिर वह तुम्हारी आत्माओं को ग्रस्त कर लेता हैऔर तुममें से कोई (बुढ़ापे की) निकृष्टतम अवस्था की ओर फिर जाता है, कि (परिणामस्वरूप) जानने के पश्चात फिर वह कुछ न जाने। निस्संदेह अल्लाह सर्वज्ञ, बड़ा सामर्थ्यवान है। (70)
_______________________________
   और अल्लाह ने तुममें से किसी को किसी पर रोज़ी में बड़ाई दी है। किन्तु जिनको बड़ाई दी गई है वे ऐसे नहीं हैं कि अपनी रोज़ी उनकी ओर फेर दिया करते हों, जो उनके क़ब्ज़े में हैं कि वे सब इसमें बराबर हो जाएँ। फिर क्या अल्लाह के अनुग्रह का उन्हें इनकार है? (71)
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   और अल्लाह ही ने तुम्हारे लिए तुम्हारी सहजाति पत्नियाँ बनाईं और तुम्हारी पत्नियों से तुम्हारे लिए पुत्र और पौत्र पैदा किए और तुम्हें अच्छी पाक चीज़ों की रोज़ी प्रदान की; तो क्या वे मिथ्या को मानते हैं और अल्लाह के अनुग्रह ही का उन्हें इनकार है?(72)
_______________________________
    और अल्लाह से हटकर उन्हें पूजते हैं, जिन्हें आकाशों औरधरती से रोज़ी प्रदान करने काकुछ भी अधिकार प्राप्त नहीं है और न उन्हें कोई सामर्थ्य ही प्राप्त है। (73)
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    अतः अल्लाह के लिए मिसालेंन घड़ो। जानता अल्लाह है, तुम नहीं जानते। (74)
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   अल्लाह ने एक मिसाल पेश की है: एक ग़ुलाम है, जिसपर दूसरेका अधिकार है, उसे किसी चीज़ पर अधिकार प्राप्त नहीं। इसके विपरीत एक वह व्यक्ति है, जिसे हमने अपनी ओर से अच्छी रोज़ी प्रदान की है, फिर वह उसमें से खुले और छिपे ख़र्च करता है। तो क्या वे परस्पर समान हैं? प्रशंसा अल्लाह के लिए है! किन्तु उनमें अधिकतर लोग जानते नहीं।(75)
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   अल्लाह ने एक और मिसाल पेश की है: दो व्यक्ति हैं। उनमें से एक गूँगा है। किसी चीज़ पर उसे अधिकार प्राप्त नहीं। वह अपने स्वामी पर एक बोझ है - उसे वह जहाँ भेजता है, कुछ भलाकरके नहीं लाता। क्या वह और जो न्याय का आदेश देता है और स्वयं भी सीधे मार्ग पर है वह,समान हो सकते हैं?(76)
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   आकाशों और धरती के रहस्योंका सम्बन्ध अल्लाह ही से है। और उस क़ियामत की घड़ी का मामला तो बस ऐसा है जैसे आँखों का झपकना या वह इससे भी अधिक निकट है। निश्चय ही अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है। (77)
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    अल्लाह ने तुम्हें तुम्हारी माँओ के पेट से इस दशा में निकाला कि तुम कुछ जानते न थे। उसने तुम्हें कान, आँखें और दिल दिए, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ। (78)
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   क्या उन्होंने पक्षियों को नभ मंडल में वशीभूत नहीं देखा? उन्हें तो बस अल्लाह ही थामे हुए होता है। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए कितनी ही निशानियाँ हैं जो ईमान लाएँ। (79)
_______________________________
    और अल्लाह ने तुम्हारे घरों को तुम्हारे लिए टिकने की जगह बनाया है और जानवरों की खालों से भी तुम्हारे लिए घर बनाए - जिन्हें तुम अपनी यात्रा के दिन और अपने ठहरने के दिन हल्का-फुलका पाते हो - और एक अवधि के लिए उनके ऊन, उनके लोमचर्म और उनके बालों से कितने ही सामान और बरतने की चीज़ें बनाईं। (80)
_______________________________
    और अल्लाह ने तुम्हारे लिएअपनी पैदा की हुई चीज़ों से छाँवों का प्रबन्ध किया और पहाड़ों में तुम्हारे लिए छिपने के स्थान बनाए और तुम्हें लिबास दिए जो गर्मी से बचाते हैं और कुछ अन्य वस्त्र भी दिए जो तुम्हारी लड़ाई में तुम्हारे लिए बचाव का काम करते हैं। इस प्रकार वह तुमपर अपनी नेमत पूरी करताहै, ताकि तुम आज्ञाकारी बनो। (81)
_______________________________
  फिर यदि वे मुँह मोड़ते हैंतो तुम्हारा दायित्व तो केवल साफ़-साफ़ सन्देश पहुँचा देना है। (82)
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   वे अल्लाह की नेमत को पहचानते हैं, फिर उसका इनकार करते हैं और उनमें अधिकतर तो अकृतज्ञ हैं। (83)
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  याद करो जिस दिन हम हर समुदाय में से एक गवाह खड़ा करेंगे, फिर जिन्होंने इनकार किया होगा उन्हें कोई अनुमति प्राप्त न होगी। और न उन्हें इसका अवसर ही दिया जाएगा कि वे उसे राज़ी कर लें।(84)
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   और जब वे लोग जिन्होंने अत्याचार किया, यातना देख लेंगे तो न वह उनके लिए हलकी की जाएगी और न उन्हें मुहलत ही मिलेगी। (85)
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  और जब वे लोग जिन्होंने शिर्क किया अपने ठहराए हुए साझीदारों को देखेंगे तो कहेंगे, "हमारे रब! यही हमारे वे साझीदार हैं जिन्हें हम तुझसे हटकर पुकारते थे।" इसपरवे उनकी ओर बात फेंक मारेंगे कि "तुम बिलकुल झूठे हो।" (86)
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  उस दिन वे अल्लाह के आगे आज्ञाकारी एवं वशीभूत होकर आ पड़ेंगे। और जो कुछ वे घड़ा करते थे वह सब उनसे खोकर रह जाएगा। (87)
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    जिन लोगों ने इनकार किया और अल्लाह के मार्ग से रोका उनके लिए हम यातना पर यातना बढ़ाते रहेंगे, उस बिगाड़ के बदले में जो वे पैदा करते रहे। (88)
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   और उस समय को याद करो जब हम हर समुदाय में स्वयं उसके अपने लोगों में से एक गवाह उनपर नियुक्त करके भेज रहे थेऔर (इसी रीति के अनुसार) तुम्हें इन लोगों पर गवाह नियुक्त करके लाए। हमने तुमपर किताब अवतरित की हर चीज़ को खोलकर बयान करने के लिए और मुस्लिम (आज्ञाकारियों) के लिए मार्गदर्शन, दयालुता और शुभ सूचना के रूप में। (89)
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  निश्चय ही अल्लाह न्याय का और भलाई का और नातेदारों को (उनके हक़) देने का आदेश देता है और अश्लीलता, बुराई और सरकशी से रोकता है। वह तुम्हें नसीहत करता है, ताकि तुम ध्यान दो।(90)
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    अल्लाह के साथ की हुई प्रतिज्ञा को पूरा करो, जबकि तुमने प्रतिज्ञा की हो। और अपनी क़समों को उन्हें सुदृढ़ करने के पश्चात मत तोड़ो, जबकि तुम अपने ऊपर अल्लाह को अपना ज़ामिन बना चुके हो। निश्चय ही अल्लाह जानता है जो कुछ तुम करते हो। (91)
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    तुम उस स्त्री की भाँति न हो जाओ जिसने अपना सूत मेहनत से कातने के पश्चात टुकड़-टुकड़े करके रख दिया। तुम अपनी क़समों को परस्पर हस्तक्षेप करने का बहाना बनाने लगो इस ध्येय से कहीं ऐसा न हो कि एक गरोह दूसरे गरोह से बढ़ जाए। बात केवल यह है कि अल्लाह इस प्रतिज्ञा केद्वारा तुम्हारी परीक्षा लेता है और जिस बात में तुम विभेद करते हो उसकी वास्तविकता तो वह क़ियामत के दिन अवश्य ही तुम पर खोल देगा। (92)
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    यदि अल्लाह चाहता तो तुम सबको एक ही समुदाय बना देता, परन्तु वह जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसे चाहता है सीधा मार्ग दिखाता है। तुम जो कुछ भी करते हो उसके विषय में तो तुमसे अवश्य पूछा जाएगा। (93)
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   तुम अपनी क़समों को परस्परहस्तक्षेप करने का बहाना न बना लेना। कहीं ऐसा न हो कि कोई क़दम जमने के पश्चात उखड़जाए और अल्लाह के मार्ग से तुम्हारे रोकने के बदले में तुम्हें तकलीफ़ का मज़ा चखना पड़े और तुम एक बड़ी यातना के भागी ठहरो। (94)
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    और तुच्छ मूल्य के लिए अल्लाह की प्रतिज्ञा का सौदा न करो। अल्लाह के पास जो कुछ है वह तुम्हारे लिए अधिक अच्छा है, यदि तुम जानो; (95)
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    तुम्हारे पास जो कुछ है वह तो समाप्त हो जाएगा, किन्तु अल्लाह के पास जो कुछ है वही बाक़ी रहनेवाला है। जिन लोगों ने धैर्य से काम लिया उन्हें तो, जो उत्तम कर्म वे करते रहे उसके बदले में, हम अवश्य उनका प्रतिदान प्रदान करेंगे। (96)
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    जिस किसी ने भी अच्छा कर्म किया, पुरुष हो या स्त्री, शर्त यह है कि वह ईमान पर हो, तो हम उसे अवश्य पवित्र जीवन-यापन कराएँगे। ऐसे लोग जो अच्छा कर्म करते रहे उसके बदले में हम उन्हें अवश्य उनका प्रतिदान प्रदान करेंगे। (97)
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   अतः जब तुम क़ुरआन पढ़ने लगो तो फिटकारे हुए शैतान से बचने के लिए अल्लाह की पनाह माँग लिया करो। (98)
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    उसका तो उन लोगों पर कोई ज़ोर नहीं चलता जो ईमान लाए और अपने रब पर भरोसा रखते हैं। (99)
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    उसका ज़ोर तो बस उन्हीं लोगों पर चलता है जो उसे अपना मित्र बनाते हैं और उस (अल्लाह) के साथ साझी ठहराते हैं। (100)
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जब हम किसी आयत की जगह दूसरी आयत बदलकर लाते हैं - औरअल्लाह भली-भाँति जानता है जोकुछ वह अवतरित करता है - तो वे कहते हैं, "तुम स्वयं ही घड़ लेते हो!" नहीं, बल्कि उनमें से अधिकतर लोग नहीं जानते। (101)
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   कह दो, "इसे तो पवित्र आत्मा ने तुम्हारे रब की ओर क्रमशः सत्य के साथ उतारा है, ताकि ईमान लानेवालों को जमाव प्रदान करे और आज्ञाकारियों के लिए मार्गदर्शन और शुभ सूचना हो। (102)
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    हमें मालूम है कि वे कहते हैं, "उसको तो बस एक आदमी सिखाता पढ़ाता है।" हालाँकि जिसकी ओर वे संकेत करते हैं उसकी भाषा विदेशी है और यह स्पष्ट अरबी भाषा है। (103)
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    सच्ची बात यह है कि जो लोग अल्लाह की आयतों को नहीं मानते, अल्लाह उनका मार्गदर्शन नहीं करता। उनके लिए तो एक दुखद यातना है। (104)
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    झूठ तो बस वही लोग घड़ते हैं जो अल्लाह की आयतों को मानते नहीं और वही है जो झूठे हैं। (105)
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    जिस किसी ने अपने ईमान के पश्चात अल्लाह के साथ कुफ़्र किया -सिवाय उसके जो इसके लिए विवश कर दिया गया हो और दिल उसका ईमान पर सन्तुष्ट हो - बल्कि वह जिसने सीना कुफ़्र के लिए खोल दिया हो, तो ऐसे लोगों पर अल्लाह का प्रकोप हैऔर उनके लिए बड़ी यातना है। (106)
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    यह इसलिए कि उन्होंने आख़िरत की अपेक्षा सांसारिक जीवन को पसन्द किया और यह कि अल्लाह कुफ़्र करनेवालो लोगों का मार्गदर्शन नहीं करता। (107)
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    वही लोग हैं जिनके दिलों और जिनके कानों और जिनकी आँखों पर अल्लाह ने मुहर लगा दी है; और वही हैं जो ग़फ़लत में पड़े हुए हैं। (108)
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    निश्चय ही आख़िरत में वही घाटे में रहेंगे। (109)
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   फिर तुम्हारा रब उन लोगों के लिए जिन्होंने इसके उपरान्त कि वे आज़माइश में पड़ चुके थे घर-बार छोड़ा, फिरजिहाद (संघर्ष) किया और जमे रहे तो इन बातों के पश्चात तो निश्चय ही तुम्हारा रब बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है। (110)
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    जिस दिन प्रत्येक व्यक्ति अपनी ओर से बहस करता हुआ आएगा और प्रत्येक व्यक्ति को जो कुछ उसने किया होगा, उसका पूरा-पूरा बदला चुका दिया जाएगा, और उनपर कुछ भी अत्याचार न होगा। (111)
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    अल्लाह ने एक मिसाल बयान की है: एक बस्ती थी जो निश्चिन्त और सन्तुष्ट थी। हर जगह से उसकी रोज़ी प्रचुरता के साथ चली आ रही थी कि वह अल्लाह की नेमतों के प्रति अकृतज्ञता दिखाने लगी।तब अल्लाह ने उसके निवासियों को उनकी करतूतों के बदले में भूख का मज़ा चख़ाया और भय का वस्त्र पहनाया। (112)
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    उनके पास उन्हीं में से एक रसूल आया। किन्तु उन्होंने उसे झुठला दिया। अन्ततः यातना ने उन्हें इस दशा में आ लिया कि वे अत्याचारी थे। (113)
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    अतः जो कुछ अल्लाह ने तुम्हें हलाल-पाक रोज़ी दी हैउसे खाओ और अल्लाह की नेमत के प्रति कृतज्ञता दिखाओ, यदि तुम उसी को स्वामी मानते हो। (114)
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    उसने तो तुमपर केवल मुर्दार, रक्त, सुअर का मांस और जिसपर अल्लाह के सिवा किसीऔर का नाम लिया गया हो, हराम ठहराया है। फिर यदि कोई इस प्रकार विवश हो जाए कि न तो उसकी ललक हो और न वह हद से आगे बढ़नेवाला हो तो निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है। (115)
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    और अपनी ज़बानों के बयान किए हुए झूठ के आधार पर यह न कहा करो, "यह हलाल है और यह हराम है," ताकि इस तरह अल्लाह पर झूठ आरोपित करो। जो लोग अल्लाह से सम्बद्ध करके झूठ घड़ते हैं, वे कदापि सफल होनेवाले नहीं। (116)
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    यह उपभोग थोड़ा है, उनके लिए वास्तव में तो दुखद यातनाहै। (117)
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   जो यहूदी हैं उनपर हम पहले वे चीज़ें हराम कर चुके हैं जिनका उल्लेख हमने तुमसे किया। उनपर तो अत्याचार हमने नहीं किया, बल्कि वे स्वयं ही अपने ऊपर अत्याचार करते रहे।(118)
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    फिर तुम्हारा रब उनके लिए जिन्होंने अज्ञानवश बुरा कर्म किया, फिर इसके बाद तौबा करके सुधार कर लिया, तो निश्चय ही तुम्हारा रब इसके पश्चात बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है। (119)
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    निश्चय ही इबराहीम की स्थिति एक समुदाय की थी। वह अल्लाह का आज्ञाकारी और उसकी ओर एकाग्र था। वह कोई बहुदेववादी न था। (120)
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    वह उसके (अल्लाह के) उदार अनुग्रहों के प्रति कृतज्ञतादिखलानेवाला था। अल्लाह ने उसे चुन लिया और उसे सीधे मार्ग पर चलाया। (121)
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    और हमने उसे दुनिया में भी भलाई दी और आख़िरत में भी वह अच्छे पूर्णकाम लोगों मे से होगा। (122)
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    फिर अब हमने तुम्हारी ओर प्रकाशना की, "इबराहीम के तरीक़े पर चलो, जो बिलकुल एक ओर का हो गया था और बहुदेववादियों में से न था।" (123)
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    'सब्त' तो केवल उन लोगों पर लागू हुआ था जिन्होंने उसके विषय में विभेद किया था। निश्चय ही तुम्हारा रब उनके बीच क़ियामत के दिन उसका फ़ैसला कर देगा, जिसमें वे विभेद करते रहे हैं। (124)
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    अपने रब के मार्ग की ओर तत्वदर्शिता और सदुपदेश के साथ बुलाओ और उनसे ऐसे ढंग से वाद-विवाद करो जो उत्तम हो। तुम्हारा रब उसे भली-भाँति जानता है जो उसके मार्ग से भटक गया और वह उन्हें भी भली-भाँति जानता है जो मार्ग पर हैं। (125)
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    और यदि तुम बदला लो तो उतनाही जितना तुम्हें कष्ट पहुँचा हो, किन्तु यदि तुम सब्र करो तो निश्चय ही यह सब्र करनेवालों के लिए ज़्यादा अच्छा है। (126)
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   सब्र से काम लो - और तुम्हारा सब्र अल्लाह ही से सम्बद्ध है - और उन पर दुखी न हो और न उससे दिल तंग हो जो चालें वे चलते हैं। (127)
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    निश्चय ही, अल्लाह उनके साथ है जो डर रखते हैं और जो उत्तमकार हैं। (128)
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