feat0

Another Post with Everything In It

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetuer adipiscing elit. Curabitur quam augue, vehicula quis, tincidunt vel, varius vitae, nulla. Sed convallis orci. Duis libero orci, pretium a, convallis quis, pellentesque a, dolor. Curabitur vitae nisi non dolor vestibulum consequat.

Read More
feat2

A Post With Everything In It

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetuer adipiscing elit. Curabitur quam augue, vehicula quis, tincidunt vel, varius vitae, nulla. Sed convallis orci. Duis libero orci, pretium a, convallis quis, pellentesque a, dolor. Curabitur vitae nisi non dolor vestibulum consequat.

Read More
feat3

Quotes Time!

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetuer adipiscing elit. Curabitur quam augue, vehicula quis, tincidunt vel, varius vitae, nulla. Sed convallis orci. Duis libero orci, pretium a, convallis quis, pellentesque a, dolor. Curabitur vitae nisi non dolor vestibulum consequat. Proin vestibulum. Ut ligula. Nullam sed dolor id odio volutpat pulvinar. Integer a leo. In et eros

Read More
feat4

Another Text-Only Post

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetuer adipiscing elit. Sed eleifend urna eu sapien. Quisque posuere nunc eu massa. Praesent bibendum lorem non leo. Morbi volutpat, urna eu fermentum rutrum, ligula lacus interdum mauris, ac pulvinar libero pede a enim. Etiam commodo malesuada ante. Donec nec ligula. Curabitur mollis semper diam.

Read More
feat5

A Simple Post with Text

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetuer adipiscing elit. Sed eleifend urna eu sapien. Quisque posuere nunc eu massa. Praesent bibendum lorem non leo. Morbi volutpat, urna eu fermentum rutrum, ligula lacus interdum mauris, ac pulvinar libero pede a enim. Etiam commodo malesuada ante. Donec nec ligula. Curabitur mollis semper diam.

Read More

18. अल-कहफ़    [ कुल आयतें - 110 ]

Posted by . | | Category: |

सुरु अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
www.achhiblog.blogspot.in
« सूरह (अध्याय ) « Go To
पिछला / अगला (अध्याय)
Next / Privew
●═══════════════════✒
  प्रशंसा अल्लाह के लिए है जिसने अपने बन्दे पर यह किताबअवतरित की और उसमें (अर्थात उस बन्दे में) कोई टेढ़ नहीं रखी, (1)
_______________________________
ठीक और दुरुस्त, ताकि एक कठोर आपदा से सावधान कर दे जो उसकी और से आ पड़ेगी। और मोमिनों को, जो अच्छे कर्म करते हैं, शुभ सूचना दे दे कि उनके लिए अच्छा बदला है; (2)
_______________________________
    जिसमें वे सदैव रहेंगे। (3)
_______________________________
  और उनको सावधान कर दे, जो कहते हैं, "अल्लाह सन्तानवालाहै।" (4)
_______________________________
   इसका न उन्हें कोई ज्ञान है और न उनके बाप-दादा ही को था। बड़ी बात है जो उनके मुँह से निकलती है। वे केवल झूठ बोलते हैं। (5)
_______________________________
    अच्छा, शायद उनके पीछे, यदिउन्होंने यह बात न मानी तो तुम अफ़सोस के मारे अपने प्राण ही खो दोगे! (6)
_______________________________
  धरती पर जो कुछ है उसे तो हमने उसकी शोभा बनाई है, ताकि हम उनकी परीक्षा लें कि उनमेंकर्म की दृष्टि से कौन उत्तम है। (7)
_______________________________
   और जो कुछ उसपर है उसे तो हम एक चटियल मैदान बना देनेवाले हैं। (8)
_______________________________
    क्या तुम समझते हो कि गुफा और रक़ीमवाले हमारी अद्भुत निशानियों में से थे? (9)
_______________________________
    जब उन नवयुवकों ने गुफा में जाकर शरण ली तो कहा,"हमारे रब! हमें अपने यहाँ से दयालुता प्रदान कर और हमारे लिए हमारे अपने मामले को ठीक कर दे।" (10)
_______________________________
    फिर हमने उस गुफा में कई वर्षों के लिए उनके कानों पर परदा डाल दिया। (11)
_______________________________
    फिर हमने उन्हें भेजा, ताकि मालूम करें कि दोनों गरोहों में से किसने याद रखा है कि कितनी अवधि तक वे रहे। (12)
_______________________________
    हम तुम्हें ठीक-ठीक उनका वृत्तान्त सुनाते हैं। वे कुछ नवयुवक थे जो अपने रब पर ईमान लाए थे, और हमने उन्हें मार्गदर्शन में बढ़ोत्तरी प्रदान की। (13)
_______________________________
    और हमने उनके दिलों को सुदृढ़ कर दिया। जब वे उठे तो उन्होंने कहा, "हमारा रब तो वही है जो आकाशों और धरती का रब है। हम उससे इतर किसी अन्य पूज्य को कदापि न पुकारेंगे। यदि हमने ऐसा किया तब तो हमारी बात हक़ से बहुत हटी हुई होगी। (14)
_______________________________
    ये हमारी क़ौम के लोग हैं, जिन्होंने उससे इतर कुछ अन्य पूज्य-प्रभु बना लिए हैं। आख़िर ये उनके हक़ में कोई स्पष्ट प्रमाण क्यों नहीं लाते! भला उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो झूठ घड़कर अल्लाहपर थोपे? (15)
_______________________________
    और जबकि इनसे तुम अलग हो गएहो और उनसे भी जिनको अल्लाह के सिवा ये पूजते हैं, तो गुफामें चलकर शरण लो। तुम्हारा रबतुम्हारे लिए अपनी दयालुता का दामन फैला देगा और तुम्हारे लिए तुम्हारे अपने काम के सम्बन्ध में सुगमता काउपकरण उपलब्ध कराएगा।" (16)
_______________________________
   और तुम सूर्य को उसके उदित होते समय देखते तो दिखाई देताकि वह उनकी गुफा से दाहिनी ओर को बचकर निकल जाता है और जब अस्त होता है तो उनकी बाईं ओर कतराकर निकल जाता है। और वे हैं कि उस (गुफा) के एक विस्तृत स्थान में हैं। यह अल्लाह की निशानियों में से है। जिसे अल्लाह मार्ग दिखाए,वही मार्ग पानेवाला है और जिसे वह भटकता छोड़ दे उसका तुम कोई सहायक मार्गदर्शक कदापि न पाओगे।(17)
_______________________________
  और तुम समझते कि वे जाग रहेहैं, हालाँकि वे सोए हुए होते। हम उन्हें दाएँ और बाएँफेरते और उनका कुत्ता ड्योढ़ी पर अपनी दोनों भुजाएँ फैलाए हुए होता। यदि तुम उन्हें कहीं झाँककर देखते तो उनके पास से उलटे पाँव भाग खड़े होते और तुममेंउनका भय समा जाता। (18)
_______________________________
   और इसी तरह हमने उन्हें उठाखड़ा किया कि वे आपस में पूछताछ करें। उनमें एक कहनेवाले ने कहा, "तुम कितना ठहरे रहे?" वे बोले, "हम यही कोई एक दिन या एक दिन से भी कम ठहरे होंगे।" उन्होंने कहा,"जितना तुम यहाँ ठहरे हो उसे तुम्हारा रब ही भली-भाँति जानता है। अब अपने में से किसी को यह चाँदी का सिक्का देकर नगर की ओर भेजो। फिर वह देख ले कि उसमें सबसे अच्छा खाना किस जगह मिलता है। तो उसमें से वह तुम्हारे लिए कुछखाने को ले आए और चाहिए की वह नरमी और होशियारी से काम ले और किसी को तुम्हारी ख़बर न होने दे।(19)
_______________________________
  यदि वे कहीं तुम्हारी ख़बरपा जाएँगे तो पथराव करके तुम्हें मार डालेंगे या तुम्हें अपने पंथ में लौटा लेजाएँगे और तब तो तुम कभी भी सफलता न पा सकोगे।" (20)
_______________________________
    इस तरह हमने लोगों को उनकी सूचना दे दी, ताकि वे जान लें कि अल्लाह का वादा सच्चा है और यह कि क़ियामत की घड़ी में कोई सन्देह नहीं है। वह समय भी उल्लेखनीय है जब वे आपस में उनके मामले में छीन-झपट कर रहे थे। फिर उन्होंने कहा,"उनपर एक भवन बना दो। उनका रब उन्हें भली-भाँति जानता है।" और जो लोग उनके मामले में प्रभावी रहे उन्होंने कहा,"हम तो उनपर अवश्य एक उपासना गृह बनाएँगे।" (21)
_______________________________
    अब वे कहेंगे, "वे तीन थे और उनमें चौथा उनका कुत्ता था।" और वे यह भी कहेंगे, "वे पाँच थे और उनमें छठा उनका कुत्ता था।" यह बिना निशाना देखे पत्थर चलाना है। और वे यह भी कहेंगे, "वे सात थे और उनमें आठवाँ उनका कुत्ता था।"कह दो, "मेरा रब उनकी संख्या को भली-भाँति जानता है।" उनकोतो थोड़े ही जानते हैं। तुम ज़ाहिरी बात के सिवा उनके सम्बन्ध में न झगड़ो और न उनमें से किसी से उनके विषय में कुछ पूछो। (22)
_______________________________
    और न किसी चीज़ के विषय मेंकभी यह कहो, "मैं कल इसे कर दूँगा।" (23)
_______________________________
   बल्कि अल्लाह की इच्छा ही लागू होती है। और जब तुम भूल जाओ तो अपने रब को याद कर लो और कहो, "आशा है कि मेरा रब इससे भी क़रीब सही बात की ओर मार्गदर्शन कर दे।" (24)
_______________________________
   और वे अपनी गुफा में तीन सौवर्ष रहे और नौ वर्ष उससे अधिक। (25)
_______________________________
    कह दो, "अल्लाह भली-भाँति जानता है जितना वे ठहरे।" आकाशों और धरती की छिपी बात का सम्बन्ध उसी से है। वह क्या ही देखनेवाला और सुननेवाला है! उससे इतर न तो उनका कोई संरक्षक है और न वह अपने प्रभुत्व और सत्ता में किसी को साझीदार बनाता है। (26)
_______________________________
   अपने रब की किताब, जो कुछ तुम्हारी ओर प्रकाशना (वह्य) हुई, पढ़ो। कोई नहीं जो उसके बोलों को बदलनेवाला हो और न तुम उससे हटकर शरण लेने की जगह पाओगे।(27)
_______________________________
    अपने आपको उन लोगों के साथ थाम रखो, जो प्रातःकाल और सायंकाल अपने रब को उसकी प्रसन्नता चाहते हुए पुकारतेहैं और सांसारिक जीवन की शोभाकी चाह में तुम्हारी आँखें उनसे न फिरें। और ऐसे व्यक्तिकी बात न मानना जिसके दिल को हमने अपनी याद से ग़ाफ़िल पाया है और वह अपनी इच्छा और वासना के पीछे लगा हुआ है और उसका मामला हद से आगे बढ़ गया है। (28)
_______________________________
   कह दो, "यह सत्य है तुम्हारे रब की ओर से। तो अब जो कोई चाहे माने और जो चाहे इनकार कर दे।" हमने तो अत्याचारियों के लिए आग तैयार कर रखी है, जिसकी क़नातों ने उन्हें घेर लिया है। यदि वे फ़रियाद करेंगे तोफ़रियाद के प्रत्युत्तर में उन्हें ऐसा पानी मिलेगा जो तेल की तलछट जैसा होगा; वह उनके मुँह भून डालेगा। बहुत ही बुरा है वह पेय और बहुत ही बुरा है वह विश्रामस्थल!(29)
_______________________________
रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, तो निश्चय ही किसी ऐसे व्यक्ति का प्रतिदान जिसने अच्छा कर्म किया हो, हम अकारथ नहीं करते। (30)
_______________________________
   ऐसे ही लोगों के लिए सदाबहार बाग़ हैं। उनके नीचे नहरें बह रही होंगी। वहाँ उन्हें सोने के कंगन पहनाए जाएँगे और वे हरे पतले और गाढ़े रेशमी कपड़े पहनेंगे और ऊँचे तख़्तों पर तकिया लगाए होंगे। क्या ही अच्छा बदला है और क्या ही अच्छा विश्रामस्थल! (31)
_______________________________
    उनके समक्ष एक उपमा प्रस्तुत करो, दो व्यक्ति हैं। उनमें से एक को हमने अंगूरों के दो बाग़ दिए और उनके चारों ओर हमने खजूरों केवृक्षों की बाड़ लगाई और उन दोनों के बीच हमने खेती-बाड़ीरखी। (32)
_______________________________
    दोनों में से प्रत्येक बाग़ अपने फल लाया और इसमें कोई कमी नहीं की। और उन दोनों के बीच हमने एक नहर भी प्रवाहित कर दी। (33)
_______________________________
   उसे ख़ूब फल और पैदावार प्राप्त हुई। इसपर वह अपने साथी से, जबकि वह उससे बातचीत कर रहा था, कहने लगा, "मैं तुझसे माल और दौलत में बढ़कर हूँ और मुझे जनशक्ति भी अधिक प्राप्त है।" (34)
_______________________________
वह अपने हक़ में ज़ालिम बनकर बाग़ में प्रविष्ट हुआ। कहने लगा, "मैं ऐसा नहीं समझताकि वह कभी विनष्ट होगा। (35)
_______________________________
   और मैं नहीं समझता कि वह (क़ियामत की) घड़ी कभी आएगी। और यदि मैं वास्तव में अपने रब के पास पलटा भी तो निश्चय ही पलटने की जगह इससे भी उत्तम पाऊँगा।" (36)
_______________________________
    उसके साथी ने उससे बातचीत करते हुए कहा, "क्या तू उस सत्ता के साथ कुफ़्र करता है जिसने तुझे मिट्टी से, फिर वीर्य से पैदा किया, फिर तुझे एक पूरा आदमी बनाया? (37)
_______________________________
    लेकिन मेरा रब तो वही अल्लाह है और मैं किसी को अपने रब के साथ साझीदार नहीं बनाता। (38)
_______________________________
    और ऐसा क्यों न हुआ कि जब तूने अपने बाग़ में प्रवेश किया तो कहता, 'जो अल्लाह चाहे, बिना अल्लाह के कोई शक्ति नहीं?' यदि तू देखता है कि मैं धन और संतति में तुझसे कम हूँ, (39)
_______________________________
    तो आशा है कि मेरा रब मुझे तेरे बाग़ से अच्छा प्रदान करे और तेरे इस बाग़ पर आकाश से कोई क़ुर्क़ी (आपदा) भेज दे। फिर वह साफ़ मैदान होकर रह जाए। (40)
_______________________________
    या उसका पानी बिलकुल नीचे उतर जाए। फिर तू उसे ढूँढ़कर न ला सके।" (41)
_______________________________
    हुआ भी यही कि उसका सारा फलघिराव में आ गया। उसने उसमें जो कुछ लागत लगाई थी, उसपर वह अपनी हथेलियों को नचाता रह गया, और स्थिति यह थी कि बाग़ अपनी टट्टियों पर ढहा पड़ा थाऔर वह कह रहा था, "क्या ही अच्छा होता कि मैंने अपने रब के साथ किसी को साझीदार न बनाया होता!" (42)
_______________________________
    उसका कोई जत्था न हुआ जो उसके और अल्लाह के बीच पड़कर उसकी सहायता करता और न उसे स्वयं बदला लेने की सामर्थ्य प्राप्त थी। (43)
_______________________________
   ऐसे अवसर पर काम बनाने का सारा अधिकार परम सत्य अल्लाह ही को प्राप्त है। वही बदला देने में सबसे अच्छा है और वही अच्छा परिणाम दिखाने की दृष्टि से भी सर्वोत्तम है। (44)
_______________________________
  और उनके समक्ष सांसारिक जीवन की उपमा प्रस्तुत करो, यह ऐसी है जैसे पानी हो, जिसे हमने आकाश से उतारा तो उससे धरती की पौध घनी होकर परस्पर गुँथ गई। फिर वह चूरा-चूरा होकर रह गई, जिसे हवाएँ उड़ाए लिए फिरती हैं। अल्लाह को तो हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।(45)
_______________________________
माल और बेटे तो केवल सांसारिक जीवन की शोभा हैं, जबकि बाक़ी रहनेवाली नेकियाँही तुम्हारे रब के यहाँ परिणाम की दृष्टि से भी उत्तमहैं और आशा की दृष्टि से भी वही उत्तम हैं।(46)
_______________________________
   जिस दिन हम पहाड़ों को चलाएँगे और तुम धरती को बिलकुल नग्न देखोगे और हम उन्हें इकट्ठा करेंगे तो उनमें से किसी एक को भी न छोड़ेंगे। (47)
_______________________________
वे तुम्हारे रब के सामने पंक्तिबद्ध उपस्थित किए जाएँगे - "तुम हमारे सामने आ पहुँचे, जैसा हमने तुम्हें पहली बार पैदा किया था। नहीं, बल्कि तुम्हारा तो यह दावा थाकि हम तुम्हारे लिए वादा कियाहुआ कोई समय लाएँगे ही नहीं।" (48)
_______________________________
किताब (कर्मपत्रिका) रखी जाएगी तो अपराधियों को देखोगे कि जो कुछ उसमें होगा उससे डर रहे हैं और कह रहे हैं, "हाय, हमारा दुर्भाग्य! यह कैसी किताब है कि यह न कोई छोटी बात छोड़ती है न बड़ी, बल्कि सभी को इसने अपने अन्दरसमाहित कर रखा है।" जो कुछ उन्होंने किया होगा सब मौजूद पाएँगे। तुम्हारा रब किसी पर ज़ुल्म न करेगा। (49)
_______________________________
   याद करो जब हमने फ़रिश्तों से कहा, "आदम को सजदा करो।" तो इबलीस के सिवा सबने सजदा किया। वह जिन्नों में से था। तो उसने अपने रब के आदेश का उल्लंघन किया। अब क्या तुम मुझसे इतर उसे और उसकी सन्तानको संरक्षक मित्र बनाते हो? हालाँकि वे तुम्हारे शत्रु हैं। क्या ही बुरा विकल्प है, जो ज़ालिमों के हाथ आया!(50)
_______________________________
मैंने न तो आकाशों और धरती को उन्हें दिखाकर पैदा किया और न स्वयं उनको बनाने और पैदा करने के समय ही उन्हें बुलाया। मैं ऐसा नहीं हूँ कि गुमराह करनेवालों को अपनी बाहु-भुजा बनाऊँ। (51)
_______________________________
    याद करो जिस दिन वह कहेगा,"बुलाओ मेरे साझीदारों को, जिनके साझीदार होने का तुम्हें दावा था।" तो वे उनको पुकारेंगे, किन्तु वे उन्हें कोई उत्तर न देंगे और हम उनके बीच सामूहिक विनाश-स्थल निर्धारित कर देंगे। (52)
_______________________________
    अपराधी लोग आग को देखेंगे तो समझ लेंगे कि वे उसमें पड़नेवाले हैं और उससे बच निकलने की कोई जगह न पाएँगे। (53)
_______________________________
    हमने लोगों के लिए इस क़ुरआन में हर प्रकार के उत्तम विषयों को तरह-तरह से बयान किया है, किन्तु मनुष्य सबसे बढ़कर झगड़ालू है। (54)
_______________________________
आख़िर लोगों को, जबकि उनके पास मार्गदर्शन आ गया, तो इस बात से कि वे ईमान लाते और अपने रब से क्षमा चाहते, इसके सिवा किसी चीज़ ने नहीं रोका कि उनके लिए वही कुछ सामने आए जो पूर्व जनों के सामने आ चुका है, यहाँ तक कि यातना उनके सामने आ खड़ी हो। (55)
_______________________________
    रसूलों को हम केवल शुभ सूचना देनेवाले और सचेतकर्त्ता बनाकर भेजते हैं। किन्तु इनकार करनेवाले लोग हैं कि असत्य के सहारे झगड़ते हैं, ताकि सत्य को डिगा दें। उन्होंने मेरी आयतों का और जो चेतावनी उन्हें दी गई उसका मज़ाक बना लिया है। (56)
_______________________________
    उस व्यक्ति से बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जिसे उसके रबकी आयतों के द्वारा समझाया गया, तो उसने उनसे मुँह फेर लिया और उसे भूल गया, जो सामानउसके हाथ आगे बढ़ा चुके हैं? निश्चय ही हमने उनके दिलों परपरदे डाल दिए हैं कि कहीं वे उसे समझ न लें और उनके कानों में बोझ डाल दिया (कि कहीं वे उसे सुन न लें) । यद्यपि तुम उन्हें सीधे मार्ग की ओर बुलाओ, वे कभी भी मार्ग नहीं पा सकते। (57)
_______________________________
    तुम्हारा रब अत्यन्त क्षमाशील और दयावान है। यदि वह उन्हें उसपर पकड़ता जो कुछकि उन्होंने कमाया है तो उनपरशीघ्र ही यातना ला देता। नहीं, बल्कि उनके लिए तो वादे का एक समय निशिचत है। उससे हटकर वे बच निकलने का कोई मार्ग न पाएँगे। (58)
_______________________________
    और ये बस्तियाँ वे हैं कि जब उन्होंने अत्याचार किया तो हमने उन्हें विनष्ट कर दिया, और हमने उनके विनाश के लिए एक समय निश्चित कर रखा था। (59)
_______________________________
  याद करो, जब मूसा ने अपने युवक सेवक से कहा, "जब तक कि मैं दो दरियाओं के संगम तक न पहुँच जाऊँ चलना नहीं छोड़ूँगा, चाहे मैं यूँ ही दीर्घकाल तक सफ़र करता रहूँ।"(60)
_______________________________
   फिर जब वे दोनों संगम पर पहुँचे तो वे अपनी मछली से ग़ाफ़िल हो गए और उस (मछली) ने दरिया में सुरंग बनाती अपनी राह ली। (61)
_______________________________
    फिर जब वे वहाँ से आगे बढ़ गए तो उसने अपने सेवक से कहा,"लाओ, हमारा नाश्ता। अपने इस सफ़र में तो हमें बड़ी थकान पहुँची है।" (62)
_______________________________
    उसने कहा, "ज़रा देखिए तो सही, जब हम उस चट्टान के पास ठहरे हुए थे तो मैं मछली को भूल ही गया - और शैतान ही ने उसको याद रखने से मुझे ग़ाफ़िल कर दिया - और उसने आश्चर्य रूप से दरिया में अपनी राह ली।" (63)
_______________________________
    (मूसा ने) कहा, "यही तो है जिसे हम तलाश कर रहे थे।" फिर वे दोनों अपने पदचिन्हों को देखते हुए वापस हुए। (64)
_______________________________
    फिर उन्होंने हमारे बन्दों में से एक बन्दे को पाया, जिसे हमने अपने पास से दयालुता प्रदान की थी और जिसेअपने पास से ज्ञान प्रदान किया था। (65)
_______________________________
    मूसा ने उससे कहा, "क्या मैं आपके पीछे चलूँ, ताकि आप मुझे उस ज्ञान औऱ विवेक की शिक्षा दें, जो आपको दी गई है?" (66)
_______________________________
उसने कहा, "तुम मेरे साथ धैर्य न रख सकोगे, (67)
_______________________________
    और जो चीज़ तुम्हारे ज्ञान-परिधि से बाहर हो, उस परतुम धैर्य कैसे रख सकते हो?" (68)
_______________________________
    (मूसा ने) कहा, "यदि अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे धैर्यवान पाएँगे। और मैं किसी मामले में भी आपकी अवज्ञा नहीं करूँगा।" (69)
_______________________________
    उसने कहा, "अच्छा, यदि तुम मेरे साथ चलते हो तो मुझसे किसी चीज़ के विषय में न पूछना, यहाँ तक कि मैं स्वयं ही तुमसे उसकी चर्चा करूँ।" (70)
_______________________________
    अन्ततः दोनों चले, यहाँ तक कि जब नौका में सवार हुए तो उसने उसमें दरार डाल दी। (मूसा ने) कहा, "आपने इसमें दरार डाल दी, ताकि उसके सवारों को डुबो दें? आपने तो एक अनोखी हरकत कर डाली।" (71)
_______________________________
    उसने कहा, "क्या मैंने कहा नहीं था कि तुम मेरे साथ धैर्य न रख सकोगे?" (72)
_______________________________
कहा, "जो भूल-चूक मुझसे हो गई उसपर मुझे न पकड़िए और मेरे मामले में मुझे तंगी मेंन डालिए।" (73)
_______________________________
    फिर वे दोनों चले, यहाँ तक कि जब वे एक लड़के से मिले तो उसने उसे मार डाला। कहा, "क्याआपने एक अच्छी-भली जान की हत्या कर दी, बिना इसके कि किसी की हत्या का बदला लेना अभीष्ट हो? यह तो आपने बहुत हीबुरा किया!" (74)
_______________________________
    उसने कहा, "क्या मैंने तुमसे कहा नहीं था कि तुम मेरे साथ धैर्य न रख सकोगे?" (75)
_______________________________
   कहा, "इसके बाद यदि मैं आपसे कुछ पूछूँ तो आप मुझे साथ न रखें। अब तो मेरी ओर से आप पूरी तरह उज़्र को पहुँच चुके हैं।"(76)
_______________________________
    फिर वे दोनों चले, यहाँ तक कि जब वे एक बस्तीवालों के पास पहुँचे और उनसे भोजन माँगा, किन्तु उन्होंने उनके आतिथ्य से इनकार कर दिया। फिरवहाँ उन्हें एक दीवार मिली जोगिरा चाहती थी, तो उस व्यक्ति ने उसको खड़ा कर दिया। (मूसा ने) कहा, "यदि आप चाहते तो इसकीकुछ मज़दूरी ले सकते थे।" (77)
_______________________________
उसने कहा, "यह मेरे और तुम्हारे बीच जुदाई का अवसर है। अब मैं तुमको उसकी वास्तविकता बताए दे रहा हूँ, जिसपर तुम धैर्य से काम न ले सके।" (78)
_______________________________
    वह जो नौका थी, कुछ निर्धन लोगों की थी जो दरिया में काम करते थे, तो मैंने चाहा कि उसेऐबदार कर दूँ, क्योंकि आगे उनके परे एक सम्राट था, जो प्रत्येक नौका को ज़बरदस्ती छीन लेता था। (79)
_______________________________
    और रहा वह लड़का, तो उसके माँ-बाप ईमान पर थे। हमें आशंका हुई कि वह सरकशी और कुफ़्र से उन्हें तंग करेगा। (80)
_______________________________
    इसलिए हमने चाहा कि उनका रब उन्हें इसके बदले दूसरी संतान दे, जो आत्मविकास में इससे अच्छा हो और दया-करूणा से अधिक निकट हो। (81)
_______________________________
    और रही यह दीवार तो यह दो अनाथ बालकों की है जो इस नगर में रहते हैं। और इसके नीचे उनका ख़जाना मौजूद है। और उनका बाप नेक था, इसलिए तुम्हारे रब ने चाहा कि वे अपनी युवावस्था को पहुँच जाएँ और अपना ख़जाना निकाल लें। यह तुम्हारे रब की दयालुता के कारण हुआ। मैंने तो अपने अधिकार से कुछ नहीं किया। यह है वास्तविकता उसकी जिसपर तुम धैर्य न रख सके।" (82)
_______________________________
    वे तुमसे ज़ुलक़रनैन के विषय में पूछते हैं। कह दो,"मैं तुम्हें उसका कुछ वृत्तान्त सुनाता हूँ।" (83)
_______________________________
    हमने उसे धरती में सत्ता प्रदान की थी और उसे हर प्रकार के संसाधन दिए थे। (84)
_______________________________
  अतएव उसने एक अभियान का आयोजन किया। (85)
_______________________________
    यहाँ तक कि जब वह सूर्यास्त-स्थल तक पहुँचा तो उसे मटमैले काले पानी के एक स्रोत में डूबते हुए पाया और उसके निकट उसे एक क़ौम मिली। हमने कहा, "ऐ ज़ुलक़रनैन! तुझेअधिकार है कि चाहे तकलीफ़ पहुँचाए और चाहे उनके साथ अच्छा व्यवहार करे।" (86)
_______________________________
    उसने कहा, "जो कोई ज़ुल्म करेगा उसे तो हम दंड देंगे। फिर वह अपने रब की ओर पलटेगा और वह उसे कठोर यातना देगा। (87)
_______________________________
    किन्तु जो कोई ईमान लाया औऱ अच्छा कर्म किया, उसके लिए तो अच्छा बदला है और हम उसे अपना सहज एवं मृदुल आदेश देंगे।" (88)
_______________________________
    फिर उसने एक और अभियान का आयोजन किया। (89)
_______________________________
    यहाँ तक कि जब वह सूर्योदय स्थल पर जा पहुँचा तो उसने उसे ऐसे लोगों पर उदित होते पाया जिनके लिए हमने सूर्य केमुक़ाबले में कोई ओट नहीं रखीथी। (90)
_______________________________
   ऐसा ही हमने किया था और जो कुछ उसके पास था, उसकी हमें पूरी ख़बर थी। (91)
_______________________________
    उसने फिर एक अभियान का आयोजन किया, (92)
_______________________________
   यहाँ तक कि जब वह दो पर्वतों के बीच पहुँचा तो उसेउनके इस किनारे कुछ लोग मिले, जो ऐसा लगता नहीं था कि कोई बात समझ पाते हों।(93)
_______________________________
   उन्होंने कहा, "ऐ ज़ुलक़रनैन! याजूज और माजूज इस भूभाग में उत्पात मचाते हैं। क्या हम तुम्हें कोई कर इस काम के लिए दें कि तुम हमारे और उनके बीच एक अवरोध निर्मित कर दो?"(94)
_______________________________
    उसने कहा, "मेरे रब ने मुझेजो कुछ अधिकार एवं शक्ति दी है वह उत्तम है। तुम तो बस बल से मेरी सहायता करो। मैं तुम्हारे और उनके बीच एक सुदृढ़ दीवार बनाए देता हूँ। (95)
_______________________________
    मुझे लोहे के टुकड़े ला दो।" यहाँ तक कि जब दोनों पर्वतों के बीच के रिक्त स्थान को पाटकर बराबर कर दियातो कहा, "धौंको!" यहाँ तक कि जबउसे आग कर दिया तो कहा, "मुझे पिघला हुआ ताँबा ला दो, ताकि मैं उसपर उँड़ेल दूँ।" (96)
_______________________________
    तो न तो वे (याजूज, माजूज) उसपर चढ़कर आ सकते थे और न वे उसमें सेंध ही लगा सकते थे। (97)
_______________________________
    उसने कहा, "यह मेरे रब की दयालुता है, किन्तु जब मेरे रब के वादे का समय आ जाएगा तो वह उसे ढाकर बराबर कर देगा, औरमेरे रब का वादा सच्चा है।" (98)
_______________________________
उस दिन हम उन्हें छोड़ देंगे कि वे एक-दूसरे से मौजों की तरह परस्पर गुत्मथ-गुत्था हो जाएँगे। और "सूर" फूँका जाएगा। फिर हम उन सबको एक साथ इकट्ठा करेंगे।(99)
_______________________________
    और उस दिन जहन्नम को इनकार करनेवालों के सामने कर देंगे। (100)
_______________________________
जिनके नेत्र मेरी अनुस्मृति की ओर से परदे में थे और जो कुछ सुन भी नहीं सकतेथे। (101)
_______________________________
    तो क्या इनकार करनेवाले इसख़याल में हैं कि मुझसे हटकर मेरे बन्दों को अपना हिमायती बना लें? हमने ऐसे इनकार करनेवालों के आतिथ्य-सत्कार के लिए जहन्नम तैयार कर रखा है। (102)
_______________________________
    कहो, "क्या हम तुम्हें उन लोगों की ख़बर दें, जो अपने कर्मों की दृष्टि से सबसे बढ़कर घाटा उठानेवाले हैं? (103)
_______________________________
    ये वे लोग हैं जिनका प्रयास सांसारिक जीवन में अकारथ गया और वे यही समझते हैं कि वे बहुत अच्छा कर्म कर रहे हैं। (104)
_______________________________
  यही वे लोग हैं जिन्होंने अपने रब की आयतों का और उससे मिलन का इनकार किया। अतः उनकेकर्म जान को लागू हुए, तो हम क़ियामत के दिन उन्हें कोई वज़न न देंगे। (105)
_______________________________
    उनका बदला वही जहन्नम है, इसलिए कि उन्होंने कुफ़्र की नीति अपनाई और मेरी आयतों और मेरे रसूलों का उपहास किया। (106)
_______________________________
    निश्चय ही जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके आतिथ्य के लिए फ़िरदौस के बाग़ होंगे, (107)
_______________________________
जिनमें वे सदैव रहेंगे, वहाँ से हटना न चाहेंगे।" (108)
_______________________________
कहो, "यदि समुद्र मेरे रब के बोल को लिखने के लिए रोशनाई हो जाए तो इससे पहले कि मेरे रब के बोल समाप्त हों,समुद्र ही समाप्त हो जाएगा। यद्यपि हम उसके सदृश एक और भी समुद्र उसके साथ ला मिलाएँ।" (109)
_______________________________
कह दो, "मैं तो केवल तुम्हीं जैसा मनुष्य हूँ। मेरी ओर प्रकाशना की जाती है कि तुम्हारा पूज्य-प्रभु बस अकेला पूज्य-प्रभु है। अतः जोकोई अपने रब से मिलन की आशा रखता हो, उसे चाहिए कि अच्छा कर्म करे और अपने रब की बन्दगी में किसी को साझी न बनाए।" (110)
●═══════════════════✒
www.achhiblog.blogspot.in
« सूरह (अध्याय ) « Go To
पिछला / अगला (अध्याय)
Next / Privew

Currently have 0 comment plz:


Leave a Reply

© 2010 www.achhiblog.blogspot.in |Blogger Author BloggerTheme
powered by Blogger | WordPress by camelgraph | Converted by BloggerTheme.