feat0

Another Post with Everything In It

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetuer adipiscing elit. Curabitur quam augue, vehicula quis, tincidunt vel, varius vitae, nulla. Sed convallis orci. Duis libero orci, pretium a, convallis quis, pellentesque a, dolor. Curabitur vitae nisi non dolor vestibulum consequat.

Read More
feat2

A Post With Everything In It

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetuer adipiscing elit. Curabitur quam augue, vehicula quis, tincidunt vel, varius vitae, nulla. Sed convallis orci. Duis libero orci, pretium a, convallis quis, pellentesque a, dolor. Curabitur vitae nisi non dolor vestibulum consequat.

Read More
feat3

Quotes Time!

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetuer adipiscing elit. Curabitur quam augue, vehicula quis, tincidunt vel, varius vitae, nulla. Sed convallis orci. Duis libero orci, pretium a, convallis quis, pellentesque a, dolor. Curabitur vitae nisi non dolor vestibulum consequat. Proin vestibulum. Ut ligula. Nullam sed dolor id odio volutpat pulvinar. Integer a leo. In et eros

Read More
feat4

Another Text-Only Post

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetuer adipiscing elit. Sed eleifend urna eu sapien. Quisque posuere nunc eu massa. Praesent bibendum lorem non leo. Morbi volutpat, urna eu fermentum rutrum, ligula lacus interdum mauris, ac pulvinar libero pede a enim. Etiam commodo malesuada ante. Donec nec ligula. Curabitur mollis semper diam.

Read More
feat5

A Simple Post with Text

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetuer adipiscing elit. Sed eleifend urna eu sapien. Quisque posuere nunc eu massa. Praesent bibendum lorem non leo. Morbi volutpat, urna eu fermentum rutrum, ligula lacus interdum mauris, ac pulvinar libero pede a enim. Etiam commodo malesuada ante. Donec nec ligula. Curabitur mollis semper diam.

Read More

27. अन-नम्ल    [ कुल आयतें - 93 ]

Posted by . | | Category: |

सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
www.achhiblog.blogspot.in
« सूरह (अध्याय ) « Go To
« पिछला »   « अगला » (अध्याय)
« Next » « Privew »
●═══════════════════✒
  ता॰ सीन॰। ये आयतें हैं क़ुरआन और एक स्पष्ट किताब की। (1)
_______________________________
 मार्गदर्शन है और शुभ-सूचना उन ईमानवालों के लिए, (2)
_______________________________
जो नमाज़ का आयोजन करते हैं और ज़कात देते हैं और वही है जो आख़िरत पर विश्वास रखतेहैं। (3)
_______________________________
रहे वे लोग जो आख़िरत को नहीं मानते, उनके लिए हमने उनकी करतूतों को शोभायमान बना दिया है। अतः वे भटकते फिरते हैं। (4)
_______________________________
वही लोग हैं, जिनके लिए बुरी यातना है और वही हैं जो आख़िरत में अत्यन्त घाटे में रहेंगे। (5)
_______________________________
निश्चय ही तुम यह क़ुरआन एक बड़े तत्वदर्शी, ज्ञानवान (प्रभु) की ओर से पा रहे हो। (6)
_______________________________
याद करो जब मूसा ने अपने घरवालों से कहा कि "मैंने एक आग-सी देखी है। मैं अभी वहाँ से तुम्हारे पास कोई ख़बर लेकर आता हूँ या तुम्हारे पासकोई दहकता अंगारा लाता हूँ, ताकि तुम तापो।" (7)
_______________________________
फिर जब वह उसके पास पहुँचा तो उसे आवाज़ आई कि "मुबारक हैवह जो इस आग में है और जो इसके आस-पास है। महान और उच्च है अल्लाह, सारे संसार का रब! (8)
_______________________________
ऐ मूसा! वह तो मैं अल्लाह हूँ, अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी! (9)
_______________________________
  तू अपनी लाठी डाल दे।" जब मूसा ने देखा कि वह बलखा रही है जैसेवह कोई साँप हो, तो वह पीठ फेरकर भागा और पीछे मुड़कर न देखा। "ऐ मूसा! डर मत। निस्संदेह रसूल मेरे पास डरा नहीं करते,(10)
_______________________________
सिवाय उसके जिसने कोई ज़्यादती की हो। फिर बुराई केपश्चात उसे भलाई से बदल दिया, तो मैं भी बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान हूँ। (11)
_______________________________
अपना हाथ अपने गिरेबान में डाल। वह बिना किसी ख़राबी के उज्जवल चमकता निकलेगा। ये नौ निशानियों में से है फ़िरऔन और उसकी क़ौम की ओर भेजने के लिए। निश्चय ही वे अवज्ञाकारी लोग हैं।"(12)
_______________________________
  किन्तु जब आँखें खोल देनेवाली हमारी निशानियाँ उनके पास आईं तो उन्होंने कहा, "यह तो खुला हुआ जादू है।" (13)
_______________________________
उन्होंने ज़ुल्म और सरकशी से उनका इनकार कर दिया, हालाँकि उनके जी को उनका विश्वास हो चुका था। अब देख लो इन बिगाड़ पैदा करनेवालों का क्या परिणाम हुआ? (14)
_______________________________
हमने दाऊद और सुलैमान को बड़ा ज्ञान प्रदान किया था, (उन्होंने उसके महत्व को जाना) और उन दोनों ने कहा,"सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने हमें अपने बहुत-से ईमानवाले बन्दों के मुक़ाबलेमें श्रेष्ठता प्रदान की।" (15)
_______________________________
  दाऊद का उत्तराधिकारी सुलैमान हुआ औऱ उसने कहा, "ऐ लोगो! हमें पक्षियों की बोली सिखाई गई है और हमें हर चीज़ दी गई है। निस्संदेह वह स्पष्ट बड़ाई है।" (16)
_______________________________
  सुलैमान के लिए जिन्न और मनुष्य और पक्षियों मे से उसकी सेनाएँ एकत्र की गईं फिरउनकी दर्जाबन्दी की जा रही थी। (17)
_______________________________
यहाँ तक कि जब वे चींटियों की घाटी में पहुँचे तो एक चींटी ने कहा, "ऐ चींटियों! अपने घरों में प्रवेश कर जाओ।कहीं सुलैमान और उसकी सेनाएँ तुम्हें कुचल न डालें और उन्हें एहसास भी न हो।" (18)
_______________________________
तो वह उसकी बात पर प्रसन्न होकर मुस्कराया और कहा, "मेरे रब! मुझे संभाले रख कि मैं तेरी उस कृपा पर कृतज्ञता दिखाता रहूँ जो तूने मुझपर औरमेरे माँ-बाप पर की है। और यह कि अच्छा कर्म करूँ जो तुझे पसन्द आए और अपनी दयालुता से मुझे अपने अच्छे बन्दों में दाख़िल कर।"(19)
_______________________________
उसने पक्षियों की जाँच-पड़ताल की तो कहा, "क्या बात है कि मैं हुदहुद को नहीं देख रहा हूँ, (वह यहीं कहीं है)या वह ग़ायब हो गया है? (20)
_______________________________
मैं उसे कठोर दंड दूँगा या उसे ज़बह ही कर डालूँगा या फिर वह मेरे सामने कोई स्पष्टकारण प्रस्तुत करे।" (21)
_______________________________
  फिर कुछ अधिक देर नहीं ठहरा कि उसने आकर कहा, "मैंने वह जानकारी प्राप्त की है जो आपको मालूम नहीं है। मैं सबा से आपके पास एक विश्वसनीय सूचना लेकर आया हूँ। (22)
_______________________________
मैंने एक स्त्री को उनपर शासन करते पाया है। उसे हर चीज़ प्राप्त है और उसका एक बड़ा सिंहासन है। (23)
_______________________________
मैंने उसे और उसकी क़ौम के लोगों को अल्लाह से इतर सूर्यको सजदा करते हुए पाया। शैतानने उनके कर्मों को उनके लिए शोभायमान बना दिया है और उन्हें मार्ग से रोक दिया है -अतः वे सीधा मार्ग नहीं पा रहे हैं। - (24)
_______________________________
  कि अल्लाह को सजदा न करें जो आकाशों और धरती की छिपी चीज़ें निकालता है, और जानता है जो कुछ भी तुम छिपाते हो औरजो कुछ प्रकट करते हो। (25)
_______________________________
अल्लाह कि उसके सिवा कोई इष्ट -पूज्य नहीं, वह महान सिंहासन का रब है।" (26)
_______________________________
उसने कहा, "अभी हम देख लेतेहैं कि तूने सच कहा या तू झूठाहै। (27)
_______________________________
मेरा यह पत्र लेकर जा, और इसे उन लोगों की ओर डाल दे। फिर उनके पास से अलग हटकर देख कि वे क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं।" (28)
_______________________________
  वह बोली, "ऐ सरदारो! मेरी ओरएक प्रतिष्ठित पत्र डाला गया है।(29)
_______________________________
वह सुलैमान की ओर से है और वह यह है कि ‘अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है। (30)
_______________________________
यह कि मेरे मुक़ाबले में सरकशी न करो और आज्ञाकारी बनकर मेरे पास आओ’।" (31)
_______________________________
उसने कहा, "ऐ सरदारो! मेरे मामले में मुझे परामर्श दो। मैं किसी मामले का फ़ैसला नहीं करती, जब तक कि तुम मेरे पास मौजूद न हो।"(32)
_______________________________
उन्होंने कहा, "हम शक्तिशाली हैं और हमें बड़ी युद्ध-क्षमता प्राप्त है। आगे मामले का अधिकार आपको है, अतः आप देख लें कि आपको क्या आदेश देना है।" (33)
_______________________________
उसने कहा, "सम्राट जब किसी बस्ती में प्रवेश करते हैं, तो उसे ख़राब कर देते हैं और वहाँ के प्रभावशाली लोगों को अपमानित करके रहते हैं। और वेऐसा ही करेंगे। (34)
_______________________________
मैं उनके पास एक उपहार भेजती हूँ; फिर देखती हूँ कि दूत क्या उत्तर लेकर लौटते हैं।" (35)
_______________________________
फिर जब वह सुलैमान के पास पहुँचा तो उसने (सुलैमान ने) कहा, "क्या तुम माल से मेरी सहायता करोगे, तो जो कुछ अल्लाह ने मुझे दिया है वह उससे कहीं उत्तम है, जो उसने तुम्हें दिया है? बल्कि तुम्ही लोग हो जो अपने उपहार से प्रसन्न होते हो! (36)
_______________________________
उनके पास वापस जाओ। हम उनपर ऐसी सेनाएँ लेकर आएँगे, जिनका मुक़ाबला वे न कर सकेंगे और हम उन्हें अपमानित करके वहाँ से निकाल देंगे कि वे पस्त होकर रहेंगे।" (37)
_______________________________
उसने (सुलैमान ने) कहा, "ऐ सरदारो! तुममें कौन उसका सिंहासन लेकर मेरे पास आता है, इससे पहले कि वे लोग आज्ञाकारी होकर मेरे पास आएँ?" (38)
_______________________________
जिन्नों में से एक बलिष्ठ निर्भीक ने कहा, "मैं उसे आपकेपास ले आऊँगा। इससे पहले कि आप अपने स्थान से उठें। मुझे इसकी शक्ति प्राप्त है और मैंअमानतदार भी हूँ।"(39)
_______________________________
  जिस व्यक्ति के पास किताब का ज्ञान था, उसने कहा, "मैं आपकी पलक झपकने से पहले उसे आपके पास लाए देता हूँ।" फिर जब उसने उसे अपने पास रखा हुआ देखा तो कहा, "यह मेरे रब का उदार अनुग्रह है, ताकि वह मेरी परीक्षा करे कि मैं कृतज्ञता दिखाता हूँ या कृतघ्न बनता हूँ। जो कृतज्ञता दिखलाता है तो वह अपने लिए ही कृतज्ञता दिखलाता है और वह जिसने कृतघ्नता दिखाई, तो मेरा रब निश्चय ही निस्पृह, बड़ा उदारहै।" (40)
_______________________________
उसने कहा कि, "उसके लिए उसके सिंहासन का रूप बदल दो। देखें वह वास्तविकता को पा लेती है या उन लोगों में से होकर रह जाती है, जो वास्तविकता को नहीं पाते।"(41)
_______________________________
जब वह आई तो कहा गया, "क्या तुम्हारा सिंहासन ऐसा ही है?"उसने कहा, "यह तो जैसे वही है, और हमें तो इससे पहले ही ज्ञान प्राप्त हो चुका था; और हम आज्ञाकारी हो गए थे।" (42)
_______________________________
अल्लाह से हटकर वह दूसरे को पूजती थी। इसी चीज़ ने उसे रोक रखा था। निस्संदेह वह एक इनकार करनेवाली क़ौम में से थी। (43)
_______________________________
उससे कहा गया कि "महल में प्रवेश करो।" तो जब उसने उसे देखा तो उसने उसको गहरा पानी समझा और उसने अपनी दोनों पिंडलियाँ खोल दीं। उसने कहा,"यह तो शीशे से निर्मित महल है।" बोली, "ऐ मेरे रब! निश्चय ही मैंने अपने आपपर ज़ुल्म किया। अब मैंने सुलैमान के साथ अपने आपको अल्लाह के समर्पित कर दिया, जो सारे संसार का रब है।"(44)
_______________________________
और समूद की ओर हमने उनके भाई सालेह को भेजा कि "अल्लाह की बन्दगी करो।" तो क्या देखते हैं कि वे दो गिरोह होकर आपस में झगड़ने लगे। (45)
_______________________________
उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो, तुम भलाई से पहले बुराई के लिए क्यों जल्दी मचा रहे हो? तुम अल्लाह से क्षमा याचना क्यों नहीं करते? कदाचित तुमपर दया की जाए।"(46)
_______________________________
उन्होंने कहा, "हमने तुम्हें और तुम्हारे साथवालों को अपशकुन पाया है।"उसने कहा, "तुम्हारा शकुन-अपशकुन तो अल्लाह के पासहै, बल्कि बात यह है कि तुम लोग आज़माए जा रहे हो।" (47)
_______________________________
नगर में नौ जत्थेदार थे जो धरती में बिगाड़ पैदा करते थे, सुधार का काम नहीं करते थे। (48)
_______________________________
वे आपस में अल्लाह की क़समें खाकर बोले, "हम अवश्य उसपर और उसके घरवालों पर रात को छापा मारेंगे। फिर उसके वली (परिजन) से कह देंगे कि हम उसके घरवालों के विनाश के अवसर पर मौजूद न थे। और हम बिलकुल सच्चे हैं।" (49)
_______________________________
वे एक चाल चले और हमने भी एक चाल चली और उन्हें ख़बर तक न हुई। (50)
_______________________________
अब देख लो, उनकी चाल का कैसा परिणाम हुआ! हमने उन्हेंऔर उनकी क़ौम - सबको विनष्ट करके रख दिया। (51)
_______________________________
  अब ये उनके घर उनके ज़ुल्म के कारण उजड़े पड़े हुए हैं। निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है उन लोगों के लिए जो जानना चाहें। (52)
_______________________________
और हमने उन लोगों को बचा लिया, जो ईमान लाए और डर रखते थे। (53)
_______________________________
और लूत को भी भेजा, जब उसने अपनी क़ौम के लोगों से कहा,"क्या तुम आँखों देखते हुए अश्लील कर्म करते हो? (54)
_______________________________
क्या तुम स्त्रियों को छोड़कर अपनी काम-तृप्ति के लिए पुरुषों के पास जाते हो? बल्कि बात यह है कि तुम बड़े ही जाहिल लोग हो।" (55)
_______________________________
परन्तु उसकी क़ौम के लोगोंका उत्तर इसके सिवा कुछ न था कि उन्होंने कहा, "निकाल बाहर करो लूत के घरवालों को अपनी बस्ती से। ये लोग सुथराई को बहुत पसन्द करते हैं!" (56)
_______________________________
अन्ततः हमने उसे और उसके घरवालों को बचा लिया सिवाय उसकी स्त्री के। उसके लिए हमने नियत कर दिया था कि वह पीछे रह जानेवालों में से होगी। (57)
_______________________________
और हमने उनपर एक बरसात बरसाई और वह बहुत ही बुरी बरसात थी उन लोगों के हक़ में,जिन्हें सचेत किया जा चुका था। (58)
_______________________________
कहो, "प्रशंसा अल्लाह के लिए है और सलाम है उसके उन बन्दों पर जिन्हें उसने चुन लिया। क्या अल्लाह अच्छा है या वे जिन्हें वे साझी ठहरा रहे हैं? (59)
_______________________________
(तुम्हारे पूज्य अच्छे हैं) या वह जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया और तुम्हारे लिए आकाश से पानी बरसाया; उसके द्वारा हमने रमणीय उद्यान उगाए? तुम्हारे लिए सम्भव न था कि तुम उनके वृक्षों को उगाते। - क्या अल्लाह के साथ कोई और प्रभु-पूज्य है? नहीं, बल्कि वही लोगमार्ग से हटकर चले जा रहे हैं!(60)
_______________________________
 या वह जिसने धरती को ठहरने का स्थान बनाया और उसके बीच-बीच में नदियाँ बहाईं और उसके लिए मज़बूत पहाड़ बनाए और दो समुद्रों के बीच एक रोक लगा दी। क्या अल्लाह के साथ कोई और प्रभु पूज्य है? नहीं, उनमें से अधिकतर लोग जानते हीनहीं! (61)
_______________________________
या वह जो व्यग्र की पुकार सुनता है, जब वह उसे पुकारे औरतकलीफ़ दूर कर देता है और तुम्हें धरती में अधिकारी बनाता है? क्या अल्लाह के साथ कोई और पूज्य-प्रभु है? तुम ध्यान थोड़े ही देते हो। (62)
_______________________________
 या वह जो थल और जल के अँधेरों में तुम्हारा मार्गदर्शन करता है और जो अपनी दयालुता के आगे हवाओं कोशुभ-सूचना बनाकर भेजता है? क्या अल्लाह के साथ कोई और प्रभु पूज्य है? उच्च है अल्लाह, उस शिर्क से जो वे करते हैं। (63)
_______________________________
या वह जो सृष्टि का आरम्भ करता है, फिर उसकी पुनरावृत्ति भी करता है, और जो तुमको आकाश और धरती से रोज़ी देता है? क्या अल्लाह के साथ कोई और प्रभु पूज्य है?कहो, "लाओ अपना प्रमाण, यदि तुम सच्चे हो।"(64)
_______________________________
कहो, "आकाशों और धरती में जो भी है, अल्लाह के सिवा किसीको भी परोक्ष का ज्ञान नहीं है। और न उन्हें इसकी चेतना प्राप्त है कि वे कब उठाए जाएँगे।" (65)
_______________________________
बल्कि आख़िरत के विषय में उनका ज्ञान पक्का हो गया है, बल्कि ये उसकी ओर से कुछ संदेह में हैं, बल्कि वे उससे अंधे हैं। (66)
_______________________________
जिन लोगों ने इनकार किया वे कहते हैं कि "क्या जब हम मिट्टी हो जाएँगे और हमारे बाप-दादा भी, तो क्या वास्तव में हम (जीवित करके) निकाले जाएँगे? (67)
_______________________________
इसका वादा तो इससे पहले भी किया जा चुका है, हमसे भी और हमारे बाप-दादा से भी। ये तो बस पहले लोगों की कहानियाँ हैं।"(68)
_______________________________
कहो कि "धरती में चलो-फिरो और देखो कि अपराधियों का कैसापरिणाम हुआ।" (69)
_______________________________
उनके प्रति शोकाकुल न हो और न उस चाल से दिल तंग हो, जो वे चल रहे हैं। (70)
_______________________________
वे कहते हैं, "यह वादा कब पूरा होगा, यदि तुम सच्चे हो?"(71)
_______________________________
कहो, "जिसकी तुम जल्दी मचा रहे हो बहुत सम्भव है कि उसका कोई हिस्सा तुम्हारे पीछे ही लगा हो।" (72)
_______________________________
निश्चय ही तुम्हारा रब तो लोगों पर उदार अनुग्रह करनेवाला है, किन्तु उनमें सेअधिकतर लोग कृतज्ञता नहीं दिखाते। (73)
_______________________________
निश्चय ही तुम्हारा रब भली-भाँति जानता है, जो कुछ उनके सीने छिपाए हुए हैं और जो कुछ वे प्रकट करते हैं। (74)
_______________________________
  आकाश और धरती में छिपी कोई भी चीज़ ऐसी नहीं जो एक स्पष्ट किताब में मौजूद न हो।(75)
_______________________________
निस्संदेह यह क़ुरआन इसराईल की सन्तान को अधिकतर ऐसी बातें खोलकर सुनाता है जिनके विषय में उनमें मतभेद है। (76)
_______________________________
और निस्सन्देह यह तो ईमानवालों के लिए मार्गदर्शनऔर दयालुता है।(77)
_______________________________
 निश्चय ही तुम्हारा रब उनके बीच अपने हुक्म से फ़ैसला कर देगा। वह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, सर्वज्ञ है। (78)
_______________________________
अतः अल्लाह पर भरोसा रखो। निश्चय ही तुम स्पष्ट सत्य परहो। (79)
_______________________________
 तुम मुर्दों को नहीं सुना सकते और न बहरों को अपनी पुकार सुना सकते हो, जबकि वे पीठ देकर फिरे भी जा रहें हो। (80)
_______________________________
और न तुम अंधों को उनकी गुमराही से हटाकर राह पर ला सकते हो। तुम तो बस उन्हीं को सुना सकते हो, जो हमारी आयतों पर ईमान लाना चाहें। अतः वही आज्ञाकारी होते हैं। (81)
_______________________________
और जब उनपर बात पूरी हो जाएगी, तो हम उनके लिए धरती काप्राणी सामने लाएँगे जो उनसे बातें करेगा कि "लोग हमारी आयतों पर विश्वास नहीं करते थे" (82)
_______________________________
और जिस दिन हम प्रत्येक समुदाय में से एक गिरोह, ऐसे लोगों का जो हमारी आयतों को झुठलाते हैं, घेर लाएँगे। फिरउनकी दर्जाबन्दी की जाएगी। (83)
_______________________________
 यहाँ तक कि जब वे आ जाएँगे तो वह कहेगा, "क्या तुमने मेरीआयतों को झुठलाया, हालाँकि अपने ज्ञान से तुम उनपर हावी न थे या फिर तुम क्या करते थे?" (84)
_______________________________
और बात उनपर पूरी होकर रहेगी, इसलिए कि उन्होंने ज़ुल्म किया। अतः वे कुछ बोल न सकेंगे। (85)
_______________________________
क्या उन्होंने देखा नहीं कि हमने रात को (अँधेरी) बनाया, ताकि वे उसमें शान्ति और चैन प्राप्त करें। और दिन को प्रकाशमान बनाया (कि उसमेंकाम करें)? निश्चय ही इसमें उनलोगों के लिए निशानियाँ हैं, जो ईमान ले आएँ। (86)
_______________________________
और ख़याल करो जिस दिन सूर (नरसिंघा) में फूँक मारी जाएगी और जो आकाशों और धरती में हैं, घबरा उठेंगे, सिवाय उनके जिन्हें अल्लाह चाहे - और सब कान दबाए उसके समक्ष उपस्थित हो जाएँगे।(87)
_______________________________
  और तुम पहाड़ों को देखकर समझते हो कि वे जमे हुए हैं, हालाँकि वे चल रहे होंगे, जिस प्रकार बादल चलते हैं। यह अल्लाह की कारीगरी है, जिसने हर चीज़ को सुदृढ़ किया। निस्संदेह वह उसकी ख़बर रखता है, जो कुछ तुम करते हो। (88)
_______________________________
जो कोई सुचरित लेकर आया उसको उससे भी अच्छा प्राप्त होगा; और ऐसे लोग घबराहट से उसदिन निश्चिन्त होंगे। (89)
_______________________________
  और जो कुचरित लेकर आया तो ऐसे लोगों के मुँह आग में औंधे होंगे। (और उनसे कहा जाएगा) "क्या तुम उसके सिवा किसी और चीज़ का बदला पा रहे हो, जो तुम करते रहे हो?"(90)
_______________________________
मुझे तो बस यही आदेश मिला है कि इस नगर (मक्का) के रब की बन्दगी करूँ, जिसने इसे आदरणीय ठहराया और उसी की हर चीज़ है। और मुझे आदेश मिला है कि मैं आज्ञाकारी बनकर रहूँ। (91)
_______________________________
  और यह कि क़ुरआन पढ़कर सुनाऊँ। अब जिस किसी ने संमार्ग ग्रहण किया वह अपने ही लिए संमार्ग ग्रहण करेगा। और जो पथभ्रष्ट रहा तो कह दो,"मैं तो बस एक सचेत करनेवाला ही हूँ।" (92)
_______________________________
और कहो, "सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है। जल्द ही वह तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखादेगा और तुम उन्हें पहचान लोगे। और तेरा रब उससे बेख़बरनहीं है, जो कुछ तुम सब कर रहे हो।" (93)
●═══════════════════✒
www.achhiblog.blogspot.in
« सूरह (अध्याय ) « Go To
« पिछला »   « अगला » (अध्याय)
« Next » « Privew »

Currently have 0 comment plz:


Leave a Reply

© 2010 www.achhiblog.blogspot.in |Blogger Author BloggerTheme
powered by Blogger | WordPress by camelgraph | Converted by BloggerTheme.