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30. अर-रूम    [ कुल आयतें - 60]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
अलिफ़॰ लाम॰ मीम॰ (1)
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  रूमी निकटवर्ती क्षेत्र में पराभूत हो गए हैं। (2)
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 और वे अपने पराभव के पश्चात शीघ्र ही कुछ वर्षों में प्रभावी हो जाएँगे। (3)
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  हुक्म तो अल्लाह ही का है पहले भी और उसके बाद भी। और उसदिन ईमानवाले अल्लाह की सहायता से प्रसन्न होंगे। (4)
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वह जिसकी चाहता है, सहायता करता है। वह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, दयावान है। (5)
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  यह अल्लाह का वादा है! अल्लाह अपने वादे का उल्लंघन नहीं करता। किन्तु अधिकांश लोग जानते नहीं।(6)
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वे सांसारिक जीवन के केवल वाह्य रूप को जानते हैं। किन्तु आख़िरत की ओर से वे बिलकुल असावधान हैं। (7)
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क्या उन्होंने उसे अपने आपमें सोच-विचार नहीं किया? अल्लाह ने आकाशों और धरती को और जो कुछ उनके बीच है सत्य केसाथ और एक नियत अवधि ही के लिएपैदा किया है। किन्तु बहुत-सेलोग तो अपने प्रभु के मिलन का इनकार करते हैं। (8)
_______________________________
  क्या वे धरती में चले-फिरे नहीं कि देखते कि उन लोगों का कैसा परिणाम हुआ जो उनसे पहलेथे? वे शक्ति में उनसे अधिक बलवान थे और उन्होंने धरती कोउपजाया और उससे कहीं अधिक उसेआबाद किया जितना उन्होंने आबाद किया था। और उनके पास उनके रसूल प्रत्यक्ष प्रमाण लेकर आए। फिर अल्लाह ऐसा न था कि उनपर ज़ुल्म करता। किन्तु वे स्वयं ही अपने आप पर ज़ुल्म करते थे। (9)
_______________________________
फिर जिन लोगों ने बुरा किया था उनका परिणाम बुरा हुआ, क्योंकि उन्होंने अल्लाह की आयतों को झुठलाया और उनका उपहास करते रहे। (10)
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अल्लाह ही सृष्टि का आरम्भकरता है। फिर वही उसकी पुनरावृति करता है। फिर उसी की ओर तुम पलटोगे। (11)
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जिस दिन वह घड़ी आ खड़ी होगी, उस दिन अपराधी एकदम निराश होकर रह जाएँगे। (12)
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उनके ठहराए हुए साझीदारों में से कोई उनका सिफ़ारिश करनेवाला न होगा और वे स्वयं भी अपने साझीदारों का इनकार करेंगे। (13)
_______________________________
और जिस दिन वह घड़ी आ खड़ी होगी, उस दिन वे सब अलग-अलग हो जाएँगे। (14)
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अतः जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, वे एक बाग़ में प्रसन्नतापूर्वकरखे जाएँगे। (15)
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किन्तु जिन लोगों ने इनकारकिया और हमारी आयतों और आख़िरत की मुलाक़ात को झुठलाया, वे लाकर यातनाग्रस्त किए जाएँगे। (16)
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अतः अब अल्लाह की तसबीह करो, जबकि तुम शाम करो और जब सुबह करो। (17)
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- और उसी के लिए प्रशंसा है आकाशों और धरती में - और पिछलेपहर और जब तुमपर दोपहर हो। (18)
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वह जीवित को मृत से निकालता है और मृत को जीवित से, और धरती को उसकी मृत्यु केपश्चात जीवन प्रदान करता है। इसी प्रकार तुम भी निकाले जाओगे। (19)
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और यह उसकी निशानियों में से है कि उसने तुम्हें मिट्टीसे पैदा किया। फिर क्या देखतेहैं कि तुम मानव हो, फैलते जा रहे हो। (20)
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और यह भी उसकी निशानियों में से है कि उसने तुम्हारी ही सहजाति से तुम्हारे लिए जोड़े पैदा किए, ताकि तुमउनकेपास शान्ति प्राप्त करो। और उसने तुम्हारे बीच प्रेम और दयालुता पैदा की। औरनिश्चय ही इसमें बहुत-सी निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो सोच-विचार करते हैं।(21)
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और उसकी निशानियों में से आकाशों और धरती का सृजन और तुम्हारी भाषाओं और तुम्हारेरंगों की विविधता भी है। निस्संदेह इसमें ज्ञानवानों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं। (22)
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और उसकी निशानियों में से तुम्हारा रात और दिन का सोना और तुम्हारा उसके अनुग्रह को तलाश करना भी है। निश्चय ही इसमें निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो सुनते हैं। (23)
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और उसकी निशानियों में से यह भी है कि वह तुम्हें बिजली की चमक भय और आशा उत्पन्न करने के लिए दिखाता है। और वह आकाश से पानी बरसाता है। फिर उसके द्वारा धरती को उसके निर्जीव हो जाने के पश्चात जीवन प्रदान करता है। निस्संदेह इसमें बहुत-सी निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो बुद्धि से काम लेते हैं। (24)
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और उसकी निशानियों में से यह भी है कि आकाश और धरती उसकेआदेश से क़ायम हैं। फिर जब वह तुम्हें एक बार पुकारकर धरती में से बुलाएगा, तो क्या देखेंगे कि सहसा तुम निकल पड़े।(25)
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आकाशों और धरती में जो कोई भी है उसी का है। प्रत्येक उसी के निष्ठावान आज्ञाकारी हैं। (26)
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  वही है जो सृष्टि का आरम्भ करता है। फिर वही उसकी पुनरावृत्ति करेगा। और यह उसके लिए अधिक सरल है। आकाशोंऔर धरती में उसी की मिसाल (गुण) सर्वोच्च है। और वह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।(27)
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 उसने तुम्हारे लिए स्वयं तुम्हीं में से एक मिसाल पेश की है। क्या जो रोज़ी हमने तुम्हें दी है, उसमें तुम्हारे अधीनस्थों में से कुछ तुम्हारे साझीदार हैं कि तुम सब उसमें बराबर के हो, तुमउनका ऐसा डर रखते हो जैसा अपने लोगों का डर रखते हो? – इस प्रकार हम उन लोगों के लिए आयतें खोल-खोलकर प्रस्तुत करते हैं जो बुद्धि से काम लेते हैं। - (28)
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नहीं, बल्कि ये ज़ालिम तो बिना ज्ञान के अपनी इच्छाओं के पीछे चल पड़े। तो अब कौन उसे मार्ग दिखाएगा जिसे अल्लाह ने भटका दिया हो? ऐसे लोगों का तो कोई सहायक नहीं।(29)
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अतः एक ओर का होकर अपने रुख़ को 'दीन' (धर्म) की ओर जमा दो, अल्लाह की उस प्रकृति का अनुसरण करो जिसपर उसने लोगों को पैदा किया। अल्लाह की बनाईहुई संरचना बदली नहीं जा सकती। यही सीधा और ठीक धर्म है, किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं। (30)
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उसकी ओर रुजू करनेवाले (प्रवृत्त होनेवाले) रहो। और उसका डर रखो और नमाज़ का आयोजन करो और (अल्लाह का) साझीठहरानेवालों में से न होना, (31)
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उन लोगों में से जिन्होंनेअपने दीन (धर्म) को टुकड़े-टुकड़े कर डाला और गिरोहों में बँट गए। हर गरोह के पास जोकुछ है, उसी में मग्न है।(32)
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और जब लोगों को कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो वे अपने रब को, उसकी ओर रुजू (प्रवृत) होकर पुकारते हैं। फिर जब वह उन्हें अपनी दयालुता का रसास्वादन करा देता है, तो क्या देखते हैं कि उनमें से कुछ लोग अपने रब का साझी ठहराने लगे; (33)
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ताकि इस प्रकार वे उसके प्रति अकृतज्ञता दिखलाएँ जो कुछ हमने उन्हें दिया है।"अच्छा तो मज़े उड़ा लो, शीघ्र ही तुम जान लोगे।" (34)
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(क्या उनके देवताओं ने उनकी सहायता की थी) या हमने उनपर ऐसा कोई प्रमाण उतारा हैकि वह उसके हक़ में बोलता हो, जो वे उसके साथ साझी ठहराते हैं। (35)
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और जब हम लोगों को दयालुता का रसास्वादन कराते हैं तो वेउसपर इतराने लगते हैं; परन्तुजो कुछ उनके हाथों ने आगे भेजा है यदि उसके कारण उनपर कोई विपत्ति आ जाए, तो क्या देखते हैं कि वे निराश हो रहे हैं। (36)
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क्या उन्होंने विचार नहीं किया कि अल्लाह जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है नपी-तुली कर देता है? निस्संदेह इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ हैं, जो ईमान लाएँ। (37)
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अतः नातेदार को उसका हक़ दोऔर मुहताज और मुसाफ़िर को भी।यह अच्छा है उनके लिए जो अल्लाह की प्रसन्नता के इच्छुक हों और वही सफल हैं।(38)
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तुम जो कुछ ब्याज पर देते हो, ताकि वह लोगों के मालों में सम्मिलित होकर बढ़ जाए, तो वह अल्लाह के यहाँ नहीं बढ़ता। किन्तु जो ज़कात तुमने अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए दी, तो ऐसे ही लोग (अल्लाह के यहाँ) अपना माल बढ़ाते हैं। (39)
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अल्लाह ही है जिसने तुम्हें पैदा किया, फिर तुम्हें रोज़ी दी; फिर वह तुम्हें मृत्यु देता है; फिर तुम्हें जीवित करेगा। क्या तुम्हारे ठहराए हुए साझीदारों में भी कोई है, जो इन कामों में से कुछ कर सके? महान और उच्च है वह उससे जो साझी वे ठहराते हैं। (40)
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थल और जल में बिगाड़ फैल गया स्वयं लोगों ही के हाथों की कमाई के कारण, ताकि वह उन्हें उनकी कुछ करतूतों का मज़ा चखाए, कदाचित वे बाज़ आ जाएँ। (41)
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कहो, "धरती में चल-फिरकर देखो कि उन लोगों का कैसा परिणाम हुआ है जो पहले गुज़रेहैं। उनमें अधिकतर बहुदेववादी ही थे।" (42)
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अतः तुम अपना रुख़ सीधे व ठीक धर्म की ओर जमा दो, इससे पहले कि अल्लाह की ओर से वह दिन आ जाए जिसके लिए वापसी नहीं। उस दिन लोग अलग-अलग हो जाएँगे। (43)
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जिस किसी ने इनकार किया तो उसका इनकार उसी के लिए घातक सिद्ध होगा, और जिन लोगों ने अच्छा कर्म किया वे अपने ही लिए आराम का साधन जुटा रहे हैं। (44)
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ताकि वह अपने उदार अनुग्रहसे उन लोगों को बदला दे जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए। निश्चय ही वह इनकारकरनेवालों को पसन्द नहीं करता। - (45)
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और उसकी निशानियों में से यह भी है कि वह शुभ सूचना देनेवाली हवाएँ भेजता है (ताकि उनके द्वारा तुम्हें वर्षा की शुभ सूचना मिले) और ताकि वह तुम्हें अपनी दयालुता का रसास्वादन कराए और ताकि उसके आदेश से नौकाएँ चलें और ताकि तुम उसका अनुग्रह (रोज़ी) तलाश करो और कदाचित तुम कृतज्ञता दिखलाओ।(46)
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हम तुमसे पहले कितने ही रसूलों को उनकी क़ौम की ओर भेज चुके हैं और वे उनके पास खुली निशानियाँ लेकर आए। फिर हम उन लोगों से बदला लेकर रहे जिन्होंने अपराध किया, और ईमानवालों की सहायता करना तो हमपर एक हक़ है। (47)
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अल्लाह ही है जो हवाओं को भेजता है। फिर वे बादलों को उठाती हैं; फिर जिस तरह चाहता है उन्हें आकाश में फैला देताहै और उन्हें परतों और टुकड़ियों का रूप दे देता है।फिर तुम देखते हो कि उनके बीच से वर्षा की बूँदें टपकी चली आती हैं। फिर जब वह अपने बन्दों में से जिनपर चाहता है, उसे बरसाता है। तो क्या देखते हैं कि वे हर्षित हो उठे। (48)
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जबकि इससे पूर्व, इससे पहले कि वह उनपर उतरे, वे बिलकुल निराश थे। (49)
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अतः देखो अल्लाह की दयालुता के चिन्ह! वह किस प्रकार धरती को उसके मृत हो जाने के पश्चात जीवन प्रदान करता है। निश्चय ही वह मुर्दों को जीवत करनेवाला है,और उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।(50)
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 किन्तु यदि हम एक दूसरी हवा भेज दें, जिसके प्रभाव से वे उस (खेती) को पीली पड़ी हुई देखें तो इसके पश्चात वे कुफ़्र करने लग जाएँ। (51)
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अतः तुम मुर्दों को नहीं सुना सकते और न बहरों को अपनी पुकार सुना सकते हो, जबकि वे पीठ फेरे चले जो रहे हों। (52)
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और न तुम अंधों को उनकी गुमराही से फेरकर मार्ग पर लासकते हो। तुम तो केवल उन्हीं को सुना सकते हो जो हमारी आयतों पर ईमान लाएँ। तो वही आज्ञाकारी हैं। (53)
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अल्लाह ही है जिसनें तुम्हें निर्बल पैदा किया, फिर निर्बलता के पश्चात शक्ति प्रदान की; फिर शक्ति के पश्चात निर्बलता औऱ बुढापा दिया। वह जो कुछ चाहताहै पैदा करता है। वह जाननेवाला, सामर्थ्यवान है।(54)
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 जिस दिन वह घड़ी आ खड़ी होगी अपराधी क़सम खाएँगे कि वे घड़ी भर से अधिक नहीं ठहरे। इसी प्रकार वे उलटे फिरे चले जाते थे।(55)
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किन्तु जिन लोगों को ज्ञान और ईमान प्रदान हुआ, वे कहेंगे, "अल्लाह के लेख में तोतुम जीवित होकर उठने के दिन तक ठहरे रहे हो। तो यही जीवित होकर उठने का दिन है। किन्तु तुम जानते न थे।"(56)
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अतः उस दिन ज़ुल्म करनेवालों को उनका कोई उज़्र (सफ़ाई पेश करना) काम न आएगा और न उनसे यह चाहा जाएगा कि वे किसी यत्न से (अल्लाह के) प्रकोप को टाल सकें।(57)
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  हमने इस क़ुरआन में लोगों के लिए प्रत्येक मिसाल पेश करदी है। यदि तुम कोई भी निशानी उनके पास ले आओ, जिन लोगों ने इनकार किया है, वे तो यही कहेंगे, "तुम तो बस झूठ घड़ते हो।" (58)
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इस प्रकार अल्लाह उन लोगों के दिलों पर ठप्पा लगा देता है जो अज्ञानी हैं।(59)
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  अतः धैर्य से काम लो। निश्चय ही अल्लाह का वादा सच्चा है और जिन्हें विश्वास नहीं, वे तुम्हें कदापि हल्कान पाएँ। (60)
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