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35. अल-फ़ातिर    [ कुल आयतें - 45 ]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो आकाशों और धरती का पैदाकरनेवाला है। दो-दो, तीन-तीन और चार-चार फ़रिश्तों को बाज़ुओंवाले सन्देशवाहक बनाकर नियुक्त करता है। वह संरचना में जैसी चाहता है, अभिवृद्धि करता है। निश्चय ही अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है। (1)
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अल्लाह जो दयालुता लोगों के लिए खोल दे उसे कोई रोकनेवाला नहीं और जिसे वह रोक ले तो उसके बाद उसे कोई जारी करनेवाला भी नहीं। वह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है। (2)
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ऐ लोगो! अल्लाह की तुमपर जोअनुकम्पा है, उसे याद करो। क्या अल्लाह के सिवा कोई और पैदा करनेवाला है, जो तुम्हेंआकाश और धरती से रोज़ी देता हो? उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। तो तुम कहाँ से उलटे भटके चले जा रहे हो? (3)
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और यदि वे तुम्हें झुठलातेहैं तो तुमसे पहले भी कितने ही रसूल झुठलाए जा चुके हैं। सारे मामले अल्लाह ही की ओर पलटते हैं। (4)
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ऐ लोगो! निश्चय ही अल्लाह का वादा सच्चा है। अतः सांसारिक जीवन तुम्हें धोखे में न डाले और न वह धोखेबाज़ अल्लाह के विषय में तुम्हें धोखा दे। (5)
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निश्चय ही शैतान तुम्हारा शत्रु है। अतः तुम उसे शत्रु ही समझो। वह तो अपने गरोह को केवल इसी लिए बुला रहा है कि वे दहकती आगवालों में सम्मिलित हो जाएँ। (6)
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वे लोग कि जिन्होंने इनकारकिया उनके लिए कठोर यातना है।किन्तु जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके लिए क्षमा और बड़ा प्रतिदान है। (7)
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  फिर क्या वह व्यक्ति जिसकेलिए उसका बुरा कर्म सुहाना बना दिया गया हो और वह उसे अच्छा दिख रहा हो (तो क्या वह बुराई को छोड़ेगा)? निश्चय ही अल्लाह जिसे चाहता है मार्ग से वंचित रखता है और जिसे चाहता है सीधा मार्ग दिखाता है। अतः उनपर अफ़सोस करते-करते तुम्हारी जान न जाती रहे। अल्लाह भली-भाँति जानता है जो कुछ वे रच रहे हैं। (8)
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अल्लाह ही तो है जिसने हवाएँ चलाईं फिर वे बादलों कोउभारती हैं, फिर हम उसे किसी शुष्क और निर्जीव भूभाग की ओरले गए, और उसके द्वारा हमने धरती को उसके मुर्दा हो जाने के पश्चात जीवित कर दिया। इसीप्रकार (लोगों का नए सिरे से) जीवित होकर उठना भी है। (9)
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जो कोई प्रभुत्व चाहता हो तो प्रभुत्व तो सारा का सारा अल्लाह के लिए है। उसी की ओर अच्छा-पवित्र बोल चढ़ता है औरअच्छा कर्म उसे ऊँचा उठाता है। रहे वे लोग जो बुरी चालें चलते हैं, उनके लिए कठोर यातना है और उनकी चालबाज़ी मलियामेट होकर रहेगी। (10)
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अल्लाह ने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर वीर्य से, फिर तुम्हें जोड़े-जोड़े बनाया। उसके ज्ञान के बिना न कोई स्त्री गर्भवती होती है और न जन्म देती है और जो कोई आयु को प्राप्ति करनेवाला आयु को प्राप्त करता है और जो कुछ उसकी आयु में कमी होती है। अनिवार्यतः यह सब एक किताब में लिखा होता है। निश्चय ही यह सब अल्लाह के लिए अत्यन्त सरल है। (11)
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  दोनों सागर समान नहीं, यह मीठा सुस्वादु है जिससे प्यास जाती रहे, पीने में रुचिकर। और यह खारा-कड़ुवा है।और तुम प्रत्येक में से तरोताज़ा माँस खाते हो और आभूषण निकालते हो, जिसे तुम पहनते हो। और तुम नौकाओं को देखते हो कि चीरती हुई उसमें चली जा रही हैं, ताकि तुम उसकाउदार अनुग्रह तलाश करो और कदाचित तुम आभारी बनो। (12)
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वह रात को दिन में प्रविष्ट करता है और दिन को रात में प्रविष्ट करता है। उसने सूर्य और चन्द्रमा को काम में लगा रखा है। प्रत्येकएक नियत समय पूरी करने के लिए चल रहा है। वही अल्लाह तुम्हारा रब है। उसी की बादशाही है। उससे हटकर जिनको तुम पुकारते हो वे एक तिनके के भी मालिक नहीं। (13)
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यदि तुम उन्हें पुकारो तो वे तुम्हारी पुकार सुनेंगे नहीं। और यदि वे सुनते तो भी तुम्हारी याचना स्वीकार न कर सकते और क़ियामत के दिन वे तुम्हारे साझी ठहराने का इनकार कर देंगे। पूरी ख़बर रखनेवाला (अल्लाह) की तरह तुम्हें कोई न बताएगा।(14)
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ऐ लोगो! तुम्ही अल्लाह के मुहताज हो और अल्लाह तो निस्पृह, स्वप्रशंसित है। (15)
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  यदि वह चाहे तो तुम्हें हटा दे और एक नई संसृति ले आए।(16)
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और यह अल्लाह के लिए कुछ भीकठिन नहीं। (17)
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कोई बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ न उठाएगा। और यदि कोई बोझ से दबा हुआ व्यक्ति अपना बोझ उठाने के लिए पुकारे तो उसमें से कुछ भी न उठाया जायगा, यद्यपि वह निकट का सम्बन्धी ही क्यों न हो। तुम तो केवल सावधान कर रहे हो। जो परोक्ष में रहते हुए अपने रब से डरते हैं और नमाज़ के पाबन्द हो चुके हैं (उनकी आत्मा का विकास हो गया) । और जिसने स्वयं को विकसित किया वह अपने ही भले के लिए अपने आपको विकसित करेगा। और पलटकर जाना तो अल्लाह ही की ओर है।(18)
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अंधा और आँखोंवाला बराबर नहीं, (19)
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और न अँधेरे और प्रकाश, (20)
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और न छाया और धूप। (21)
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और न जीवित और मृत बराबर हैं। निश्चय ही अल्लाह जिसे चाहता है सुनाता है। तुम उन लोगों को नहीं सुना सकते, जो क़ब्रों में हों।(22)
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तुम तो बस एक सचेतकर्ता हो। (23)
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हमने तुम्हें सत्य के साथ भेजा है, शुभ-सूचना देनेवाला और सचेतकर्ता बनाकर। और जो भीसमुदाय गुज़रा है, उसमें अनिवार्यतः एक सचेतकर्ता हुआहै। (24)
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यदि वे तुम्हें झुठलाते हैं तो जो उनसे पहले थे वे भी झुठला चुके हैं। उनके रसूल उनके पास स्पष्ट प्रमाण और ज़बूरें और प्रकाशमान किताब लेकर आए थे। (25)
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फिर मैंने उन लोगों को, जिन्होंने इनकार किया, पकड़ लिया (तो फिर कैसा रहा मेरा इनकार!)। (26)
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क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह ने आकाश से पानी बरसाया, फिर उसके द्वारा हमनेफल निकाले, जिनके रंग विभिन्नप्रकार के होते हैं? और पहाड़ों में भी श्वेत और लाल विभिन्न रंगों की धारियाँ पाई जाती हैं, और भुजंग काली भी।(27)
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और मनुष्यों और जानवरों औरचौपायों के रंग भी इसी प्रकारभिन्न हैं। अल्लाह से डरते तोउसके वही बन्दे हैं, जो बाख़बर हैं। निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, क्षमाशील है। (28)
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निश्चय ही जो लोग अल्लाह की किताब पढ़ते हैं, इस हाल में कि नमाज़ के पाबन्द हैं, और जो कुछ हमने उन्हें दिया है, उसमें से छिपे और खुले ख़र्च किया है, वे एक ऐसे व्यापार की आशा रखते हैं जो कभी तबाह न होगा। (29)
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परिणामस्वरूप वह उन्हें उनके प्रतिदान पूरे-पूरे दे और अपने उदार अनुग्रह से उन्हें और अधिक भी प्रदान करे। निस्संदेह वह बहुत क्षमाशील, अत्यन्त गुणग्राहकहै। (30)
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जो किताब हमने तुम्हारी ओरप्रकाशना द्वारा भेजी है, वहीसत्य है। अपने से पहले (की किताबों) की पुष्टि में है। निश्चय ही अल्लाह अपने बन्दों की ख़बर पूरी रखनेवाला, देखनेवाला है। (31)
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फिर हमने इस किताब का उत्तराधिकारी उन लोगों को बनाया, जिन्हें हमने अपने बन्दों में से चुन लिया है। अब कोई तो उनमें से अपने आप परज़ुल्म करता है और कोई उनमें से मध्य श्रेणी का है और कोई उनमें से अल्लाह के कृपायोग से भलाइयों में अग्रसर है। यही है बड़ी श्रेष्ठता। -(32)
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 सदैव रहने के बाग़ हैं, जिनमें वे प्रवेश करेंगे। वहाँ उन्हें सोने के कंगनों और मोती से आभूषित किया जाएगा। और वहाँ उनका वस्त्र रेशम होगा।(33)
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 और वे कहेंगे, "सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने हमसे ग़म दूर कर दिया। निश्चय ही हमारा रब अत्यन्त क्षमाशील, बड़ा गुणग्राहक है। (34)
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जिसने हमें अपने उदार अनुग्रह से रहने के ऐसे घर में उतारा जहाँ न हमें कोई मशक़्क़त उठानी पड़ती है और नहमें कोई थकान ही आती है।" (35)
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रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया, उनके लिए जहन्नम की आग है, न उनका काम तमाम किया जाएगा कि मर जाएँ और न उनसे उसकी यातना ही कुछ हल्कीकी जाएगी। हम ऐसा ही बदला प्रत्येक अकृतज्ञ को देते हैं।(36)
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वे वहाँ चिल्लाएँगे कि "ऐ हमारे रब! हमें निकाल ले। हम अच्छा कर्म करेंगे, उससे भिन्न जो हम करते रहे।" "क्या हमने तुम्हें इतनी आयु नहीं दी कि जिसमें कोई होश में आना चाहता तो होश में आ जाता? और तुम्हारे पास सचेतकर्ता भी आया था, तो अब मज़ा चखते रहो! ज़ालिमों का कोई सहायक नहीं!" (37)
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निस्संदेह अल्लाह आकाशों और धरती की छिपी बात को जानता है। वह तो सीनों तक की बात जानता है।(38)
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वही तो है जिसने तुम्हें धरती में ख़लीफ़ा बनाया। अब जो कोई इनकार करेगा, उसके इनकार का वबाल उसी पर है। इनकार करनेवालों का इनकार उनके रब के यहाँ केवल प्रकोप ही को बढ़ाता है, और इनकार करनेवालों का इनकार केवल घाटे में ही अभिवृद्धि करता है।(39)
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कहो, "क्या तुमने अपने ठहराए हुए साझीदारों का अवलोकन भी किया, जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पुकारते हो?मुझे दिखाओ उन्होंने धरती का कौन-सा भाग पैदा किया है या आकाशों में उनकी कोई भागीदारी है?" या हमने उन्हेंकोई किताब दी है कि उसका कोई स्पष्ट प्रमाण उनके पक्ष में हो? नहीं, बल्कि वे ज़ालिम आपसमें एक-दूसरे से केवल धोखे का वादा कर रहे हैं।(40)
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अल्लाह ही आकाशों और धरती को थामे हुए है कि वे टल न जाएँ और यदि वे टल जाएँ तो उसके पश्चात कोई भी नहीं जो उन्हें थाम सके। निस्संदेह, वह बहुत सहनशील, क्षमा करनेवाला है। (41)
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  उन्होंने अल्लाह की कड़ी-कड़ी क़समें खाई थीं कि यदि उनके पास कोई सचेतकर्ता आए तो वे समुदायों में से प्रत्येक से बढ़कर सीधे मार्ग पर होंगे। किन्तु जब उनके पास एक सचेतकर्ता आ गया तो इस चीज़ ने धरती में उनके घमंड और बुरी चालों के कारण उनकी नफ़रत ही में अभिवृद्धि की,(42)
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हालाँकि बुरी चाल अपने ही लोगों को घेर लेती है। तो अब क्या जो रीति अगलों के सिलसिले में रही है वे बस उसी रीति की प्रतीक्षा कर रहे हैं? तो तुम अल्लाह की रीति में कदापि कोई परिवर्तन न पाओगे और न तुम अल्लाह की रीति को कभी टलते ही पाओगे।(43)
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क्या वे धरती में चले-फिरे नहीं कि देखते कि उन लोगों का कैसा परिणाम हुआ है जो उनसे पहले गुज़रे हैं? हालाँकि वे शक्ति में उनसे कहीं बढ़-चढ़कर थे। अल्लाह ऐसा नहीं कि आकाशों में कोई चीज़ उसे मात कर सके और न धरती ही में। निस्संदेह वह सर्वज्ञ, सामर्थ्यवान है।(44)
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  यदि अल्लाह लोगों को उनकी कमाई के कारण पकड़ने पर आ जाए तो इस धरती की पीठ पर किसी जीवधारी को भी न छोड़े। किन्तु वह उन्हें एक नियत समयतक ढील देता है, फिर जब उनका नियत समय आ जाता है तो निश्चय ही अल्लाह तो अपने बन्दों को देख ही रहा है। (45)
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