सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ साद। क़सम है, याददिहानी-वाले क़ुरआन की (जिसमें कोई कमी नहीं कि धर्मविरोधी सत्य को न समझ सकें)। (1)
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☆ बल्कि जिन्होंने इनकार किया वे गर्व और विरोध में पड़े हुए हैं। (2)
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☆ उनसे पहले हमने कितनी ही पीढ़ियों को विनष्ट किया, तो वे लगे पुकारने। किन्तु वह समय हटने-बचने का न था। (3)
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☆ उन्होंने आश्चर्य किया इसपर कि उनके पास उन्हीं में से एक सचेतकर्ता आया और इनकारकरनेवाले कहने लगे, "यह जादूगर है बड़ा झूठा। (4)
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☆ क्या उसने सारे उपास्यों को अकेला एक उपास्य ठहरा दिया? निस्संदेह यह तो बहुत अचम्भेवाली चीज़ है!" (5)
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☆ और उनके सरदार (यह कहते हुए)चल खड़े हुए कि "चलते रहो और अपने उपास्यों पर जमे रहो। निस्संदेह यह वांछित चीज़ है।(6)
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☆ यह बात तो हमने पिछले धर्म में सुनी ही नहीं। यह तो बस मनघड़ंत है।(7)
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☆ क्या हम सबमें से (चुनकर) इसी पर अनुस्मृति अवतरित हुई है?" नहीं, बल्कि वे मेरी अनुस्मृति के विषय में संदेह में हैं, बल्कि उन्होंने अभी तक मेरी यातना का मज़ा चखा ही नहीं है।(8)
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☆ या, तेरे प्रभुत्वशाली, बड़े दाता रब की दयालुता के ख़ज़ाने उनके पास हैं?(9)
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☆ या, आकाशों और धरती और जो कुछ उनके बीच है, उन सबकी बादशाही उन्हीं की है? फिर तो चाहिए कि वे रस्सियों द्वारा ऊपर चढ़ जाएँ।(10)
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☆ वह एक साधारण सेना है (विनष्ट होनेवाले) दलों में से, वहाँ मात खाना जिसकी नियति है। (11)
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☆ उनसे पहले नूह की क़ौम और आद और मेखोंवाले फ़िरऔन ने झुठलाया। (12)
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☆ और समूद और लूत की क़ौम और 'ऐकावाले' भी, ये हैं वे दल। (13)
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☆ उनमें से प्रत्येक ने रसूलों को झुठलाया, तो मेरी ओर से दंड अवश्यम्भावी होकर रहा। (14)
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☆ इन्हें बस एक चीख़ की प्रतीक्षा है जिसमें तनिक भी अवकाश न होगा।(15)
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☆ वे कहते हैं, "ऐ हमारे रब! हिसाब के दिन से पहले ही शीघ्र हमारा हिस्सा दे दे।"(16)
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☆ वे जो कुछ कहते हैं उसपर धैर्य से काम लो और ज़ोर व शक्तिवाले हमारे बन्दे दाऊद को याद करो। निश्चय ही वह (अल्लाह की ओर) बहुत रुजू करनेवाला था। (17)
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☆ हमने पर्वतों को उसके साथ वशीभूत कर दिया था कि प्रातःकाल और सन्ध्या समय तसबीह करते रहें।(18)
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☆ और पक्षियों को भी, जो एकत्र हो जाते थे। प्रत्येक उसके आगे रुजू रहता। (19)
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☆ हमने उसका राज्य सुदृढ़ करदिया था और उसे तत्वदर्शिता प्रदान की थी और निर्णायक बातकहने की क्षमता प्रदान की थी।(20)
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☆ और क्या तुम्हें उन विवादियों की ख़बर पहुँची है?जब वे दीवार पर चढ़कर मेहराब (एकान्त कक्ष) में आ पहुँचे।(21)
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☆ जब वे दाऊद के पास पहुँचे तो वह उनसे सहम गया। वे बोले,"डरिए नहीं, हम दो विवादी हैं। हममें से एक ने दूसरे पर ज़्यादती की है; तो आप हमारे बीच ठीक-ठीक फ़ैसला कर दीजिए।और बात को दूर न डालिए और हमेंठीक मार्ग बता दीजिए। (22)
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☆ यह मेरा भाई है। इसके पास निन्यानबे दुंबियाँ हैं और मेरे पास एक दुंबी है। अब इसका कहना है कि इसे भी मुझे सौंप दे और बातचीत में इसने मुझे दबा लिया।"(23)
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☆ उसने कहा, "इसने अपनी दुंबियों के साथ तेरी दुंबी को मिला लेने की माँग करके निश्चय ही तुझपर ज़ुल्म किया है। और निस्संदेह बहुत-से साथमिलकर रहनेवाले एक-दूसरे पर ज़्यादती करते हैं, सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए। किन्तु ऐसे लोग थोड़े ही हैं।" अब दाऊद समझ गया कि यह तो हमने उसे परीक्षा में डालाहै। अतः उसने अपने रब से क्षमा-याचना की और झुककर (सीधे सजदे में) गिर पड़ा और रुजू हुआ। (24)
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☆ तो हमने उसका वह क़सूर माफ़ कर दिया। और निश्चय ही हमारे यहाँ उसके लिए अनिवार्यतः सामीप्य और उत्तमठिकाना है। (25)
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☆ "ऐ दाऊद! हमने धरती में तुझे ख़लीफ़ा (उत्तराधिकारी) बनाया है। अतः तू लोगों के बीच हक़ के साथ फ़ैसला करना और अपनी इच्छा का अनुपालन न करना कि वह तुझे अल्लाह के मार्ग से भटका दे। जो लोग अल्लाह के मार्ग से भटकते हैं, निश्चय ही उनके लिए कठोर यातना है, क्योंकि वे हिसाब के दिन को भूले रहे।- (26)
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☆ हमने आकाश और धरती को और जोकुछ उनके बीच है, व्यर्थ नहीं पैदा किया। यह तो उन लोगों का गुमान है जिन्होंने इनकार किया। अतः आग में झोंके जाने के कारण इनकार करनेवालों की बड़ी दुर्गति है। (27)
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☆ (क्या हम उनको जो समझते हैंकि जगत की संरचना व्यर्थ नहींहै, उनके समान कर देंगे जो जगतको निरर्थक मानते हैं।) या हम उन लोगों को जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, उनके समान कर देंगे जो धरती में बिगाड़ पैदा करते हैं; या डर रखनेवालों को हम दुराचारियों जैसा कर देंगे? (28)
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☆ यह एक बरकत वाली किताब है, जिसे हमने तुम्हारी ओर अवतरित किया है ताकि वे लोग इसकी आयतों पर सोच-विचार करेंऔर ताकि बुद्धि और समझवाले इससे शिक्षा ग्रहण करें।- (29)
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☆ और हमने दाऊद को सुलैमान प्रदान किया। वह कितना अच्छा बन्दा था! निश्चय ही वह बहुत ही रुजू रहनेवाला था। (30)
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☆ याद करो, जबकि सन्ध्या समय उसके सामने सधे हुए द्रुतगामी घोड़े हाज़िर किए गए। (31)
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☆ तो उसने कहा, "मैंने इनके प्रति प्रेम अपने रब की याद के कारण अपनाया है।" यहाँ तक कि वे (घोड़े) ओट में छिप गए। (32)
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☆ "उन्हें मेरे पास वापस लाओ!" फिर वह उनकी पिंडलियों और गरदनों पर हाथ फेरने लगा। (33)
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☆ निश्चय ही हमने सुलैमान कोभी परीक्षा में डाला। और हमनेउसके तख़्त पर एक धड़ डाल दिया। फिर वह रुजू हुआ। (34)
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☆ उसने कहा, "ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे और मुझे वह राज्य प्रदान कर, जो मेरे पश्चात किसी के लिए शोभनीय न हो। निश्चय ही तू बड़ा दाता है।" (35)
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☆ तब हमने वायु को उसके लिए वशीभूत कर दिया, जो उसके आदेश से, जहाँ वह पहुँचना चाहता, सरलतापूर्वक चलती थी। (36)
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☆ और शैतानों को भी (वशीभुत कर दिया), प्रत्येक निर्माता और ग़ोताख़ोर को। (37)
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☆ और दूसरों को भी जो ज़ंजीरोंमें जकड़े हुए रहते।(38)
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☆ "यह हमारी बेहिसाब देन है।अब एहसान करो या रोको।" (39)
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☆ और निश्चय ही हमारे यहाँ उसके लिए अनिवार्यतः सामीप्यऔर उत्तम ठिकाना है।(40)
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☆ हमारे बन्दे अय्यूब को भी याद करो, जब उसने अपने रब को पुकारा कि "शैतान ने मुझे दुख और पीड़ा पहुँचा रखी है।" (41)
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☆ "अपना पाँव (धरती पर) मार, यह है ठंडा (पानी) नहाने को और पीने को।" (42)
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☆ और हमने उसे उसके परिजन दिए और उनके साथ वैसे ही और भी; अपनी ओर से दयालुता के रूपमें और बुद्धि और समझ रखनेवालों के लिए शिक्षा के रूप में। (43)
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☆ "और अपने हाथ में तिनकों का एक मुट्ठा ले और उससे मार और अपनी क़सम न तोड़।" निश्चय ही हमने उसे धैर्यवान पाया, क्या ही अच्छा बन्दा! निस्संदेह वह बड़ा ही रुजू रहनेवाला था। (44)
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☆ हमारे बन्दों, इबराहीम और इसहाक़ और याक़ूब को भी याद करो, जो हाथों (शक्ति) और निगाहोंवाले (ज्ञान-चक्षुवाले) थे। (45)
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☆ निस्संदेह हमने उन्हें एक विशिष्ट बात के लिए चुन लिया था और वह वास्तविक घर (आख़िरत)की याद थी। (46)
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☆ और निश्चय ही वे हमारे यहाँ चुने हुए नेक लोगों में से हैं। (47)
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☆ इसमाईल और अल-यसअ और ज़ुलकिफ़्ल को भी याद करो। इनमें से प्रत्येक ही अच्छा रहा है। (48)
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☆ यह एक अनुस्मृति है। और निश्चय ही डर रखनेवालों के लिए अच्छा ठिकाना है। (49)
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☆ सदैव रहने के बाग़ हैं, जिनके द्वार उनके लिए खुले होंगे।(50)
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☆ उनमें वे तकिया लगाए हुए होंगे। वहाँ वे बहुत-से मेवे और पेय मँगवाते होंगे। (51)
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☆ और उनके पास निगाहें बचाए रखनेवाली स्त्रियाँ होंगी, जो समान अवस्था की होंगी। (52)
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☆ यह है वह चीज़, जिसका हिसाबके दिन के लिए तुमसे वादा किया जाता है। (53)
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☆ यह हमारा दिया है, जो कभी समाप्त न होगा। (54)
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☆ एक ओर यह है, किन्तु सरकशों के लिए बहुत बुरा ठिकाना है;(55)
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☆ जहन्नम, जिसमें वे प्रवेश करेंगे। तो वह बहुत ही बुरा विश्राम-स्थल है! (56)
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☆ यह है, अब उन्हें इसे चखना है - खौलता हुआ पानी और रक्तयुक्त पीप (57)
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☆ और इसी प्रकार की दूसरी और भी चीज़ें। (58)
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☆ "यह एक भीड़ है जो तुम्हारे साथ घुसी चली आ रही है। कोई आवभगत उनके लिए नहीं।वे तो आग में पड़नेवाले हैं।" (59)
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☆ वे कहेंगे, "नहीं, बल्कि तुम। तुम्हारे लिए कोई आवभगत नहीं। तुम्ही यह हमारे आगे लाए हो। तो बहुत ही बुरी है यहठहरने की जगह!"(60)
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☆ वे कहेंगे, "ऐ हमारे रब! जो हमारे आगे यह (मुसीबत) लाया उसे आग में दोहरी यातना दे!" (61)
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☆ और वे कहेंगे, "क्या बात हैकि हम उन लोगों को नहीं देखते जिनकी गणना हम बुरों में करतेथे? (62)
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☆ क्या हमने यूँ ही उनका मज़ाक बनाया था, या उनसे निगाहें चूक गई हैं?"(63)
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☆ निस्संदेह आग में पड़नेवालों का यह आपस का झगड़ा तो अवश्य होना है। (64)
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☆ कह दो, "मैं तो बस एक सचेत करनेवाला हूँ। कोई पूज्य-प्रभु नहीं सिवाय अल्लाह के, जो अकेला है, सबपर क़ाबू रखनेवाला; (65)
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☆ आकाशों और धरती का रब है, और जो कुछ इन दोनों के बीच है उसका भी, अत्यन्त प्रभुत्वशाली, बड़ा क्षमाशील।" (66)
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☆ कह दो, "वह एक बड़ी ख़बर है,‘ (67)
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☆ जिसे तुम ध्यान में नहीं ला रहे हो। (68)
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☆ मुझे 'मलए आला' (ऊपरी लोक केफ़रिश्तों) का कोई ज्ञान नहींथा, जब वे वाद-विवाद कर रहे थे। (69)
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☆ मेरी ओर तो बस इसलिए प्रकाशना की जाती है कि मैं खुल्लम-खुल्ला सचेत करनेवालाहूँ।" (70)
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☆ याद करो जब तुम्हारे रब ने फ़रिश्तों से कहा कि "मैं मिट्टी से एक मनुष्य पैदा करनेवाला हूँ। (71)
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☆ तो जब मैं उसको ठीक-ठाक कर दूँ औऱ उसमें अपनी रूह फूँक दूँ, तो तुम उसके आगे सजदे मेंगिर जाना।" (72)
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☆ तो सभी फ़रिश्तों ने सजदा किया, सिवाय इबलीस के। (73)
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☆ उसने घमंड किया और इनकार करनेवालों में से हो गया। (74)
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☆ कहा, "ऐ इबलीस! तूझे किस चीज़ ने उसको सजदा करने से रोका जिसे मैंने अपने दोनों हाथों से बनाया? क्या तूने घमंड किया, या तू कोई ऊँची हस्ती है?" (75)
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☆ उसने कहा, "मैं उससे उत्तम हूँ। तूने मुझे आग से पैदा किया और उसे मिट्टी से पैदा किया।" (76)
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☆ कहा, "अच्छा, निकल जा यहाँ से, क्योंकि तू धुत्कारा हुआ है। (77)
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☆ और निश्चय ही बदला दिए जाने के दिन तक तुझपर मेरी लानत है।" (78)
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☆ उसने कहा, "ऐ मेरे रब! फिर तू मुझे उस दिन तक के लिए मुहल्लत दे, जबकि लोग (जीवित करके) उठाए जाएँगे।" (79)
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☆ कहा, "अच्छा, तुझे निश्चित एवं (80)
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☆ ज्ञात समय तक मुहलत है।" (81)
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☆ उसने कहा, "तेरे प्रताप की सौगन्ध! मैं अवश्य उन सबको बहकाकर रहूँगा, (82)
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☆ सिवाय उनमें से तेरे उन बन्दों के, जो चुने हुए हैं।" (83)
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☆ कहा, "तो यह सत्य है और मैं सत्य ही कहता हूँ। (84)
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☆ कि मैं जहन्नम को तुझसे और उन सबसे भर दूँगा, जिन्होंने उनमें से तेरा अनुसरण किया होगा।" (85)
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☆ कह दो, "मैं इसपर तुमसे कोई पारिश्रमिक नहीं माँगता और न मैं बनावट करनेवालों में से हूँ।"(86)
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☆ वह तो एक अनुस्मृति है सारे संसारवालों के लिए। (87)
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☆ और थोड़ी ही अवधि के पश्चातउसकी दी हुई ख़बर तुम्हें मालूम हो जाएगी।(88)
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