feat0

Another Post with Everything In It

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetuer adipiscing elit. Curabitur quam augue, vehicula quis, tincidunt vel, varius vitae, nulla. Sed convallis orci. Duis libero orci, pretium a, convallis quis, pellentesque a, dolor. Curabitur vitae nisi non dolor vestibulum consequat.

Read More
feat2

A Post With Everything In It

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetuer adipiscing elit. Curabitur quam augue, vehicula quis, tincidunt vel, varius vitae, nulla. Sed convallis orci. Duis libero orci, pretium a, convallis quis, pellentesque a, dolor. Curabitur vitae nisi non dolor vestibulum consequat.

Read More
feat3

Quotes Time!

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetuer adipiscing elit. Curabitur quam augue, vehicula quis, tincidunt vel, varius vitae, nulla. Sed convallis orci. Duis libero orci, pretium a, convallis quis, pellentesque a, dolor. Curabitur vitae nisi non dolor vestibulum consequat. Proin vestibulum. Ut ligula. Nullam sed dolor id odio volutpat pulvinar. Integer a leo. In et eros

Read More
feat4

Another Text-Only Post

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetuer adipiscing elit. Sed eleifend urna eu sapien. Quisque posuere nunc eu massa. Praesent bibendum lorem non leo. Morbi volutpat, urna eu fermentum rutrum, ligula lacus interdum mauris, ac pulvinar libero pede a enim. Etiam commodo malesuada ante. Donec nec ligula. Curabitur mollis semper diam.

Read More
feat5

A Simple Post with Text

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetuer adipiscing elit. Sed eleifend urna eu sapien. Quisque posuere nunc eu massa. Praesent bibendum lorem non leo. Morbi volutpat, urna eu fermentum rutrum, ligula lacus interdum mauris, ac pulvinar libero pede a enim. Etiam commodo malesuada ante. Donec nec ligula. Curabitur mollis semper diam.

Read More

38. साद    [ कुल आयतें - 88 ]

Posted by . | | Category: |

सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
www.achhiblog.blogspot.in
« सूरह (अध्याय ) « Go To
« पिछला »   « अगला » (अध्याय)
« Next » « Privew »
●═══════════════════✒
साद। क़सम है, याददिहानी-वाले क़ुरआन की (जिसमें कोई कमी नहीं कि धर्मविरोधी सत्य को न समझ सकें)। (1)
_______________________________
  बल्कि जिन्होंने इनकार किया वे गर्व और विरोध में पड़े हुए हैं। (2)
_______________________________
उनसे पहले हमने कितनी ही पीढ़ियों को विनष्ट किया, तो वे लगे पुकारने। किन्तु वह समय हटने-बचने का न था। (3)
_______________________________
  उन्होंने आश्चर्य किया इसपर कि उनके पास उन्हीं में से एक सचेतकर्ता आया और इनकारकरनेवाले कहने लगे, "यह जादूगर है बड़ा झूठा। (4)
_______________________________
  क्या उसने सारे उपास्यों को अकेला एक उपास्य ठहरा दिया? निस्संदेह यह तो बहुत अचम्भेवाली चीज़ है!" (5)
_______________________________
और उनके सरदार (यह कहते हुए)चल खड़े हुए कि "चलते रहो और अपने उपास्यों पर जमे रहो। निस्संदेह यह वांछित चीज़ है।(6)
_______________________________
यह बात तो हमने पिछले धर्म में सुनी ही नहीं। यह तो बस मनघड़ंत है।(7)
_______________________________
  क्या हम सबमें से (चुनकर) इसी पर अनुस्मृति अवतरित हुई है?" नहीं, बल्कि वे मेरी अनुस्मृति के विषय में संदेह में हैं, बल्कि उन्होंने अभी तक मेरी यातना का मज़ा चखा ही नहीं है।(8)
_______________________________
या, तेरे प्रभुत्वशाली, बड़े दाता रब की दयालुता के ख़ज़ाने उनके पास हैं?(9)
_______________________________
या, आकाशों और धरती और जो कुछ उनके बीच है, उन सबकी बादशाही उन्हीं की है? फिर तो चाहिए कि वे रस्सियों द्वारा ऊपर चढ़ जाएँ।(10)
_______________________________
वह एक साधारण सेना है (विनष्ट होनेवाले) दलों में से, वहाँ मात खाना जिसकी नियति है। (11)
_______________________________
उनसे पहले नूह की क़ौम और आद और मेखोंवाले फ़िरऔन ने झुठलाया। (12)
_______________________________
और समूद और लूत की क़ौम और 'ऐकावाले' भी, ये हैं वे दल। (13)
_______________________________
उनमें से प्रत्येक ने रसूलों को झुठलाया, तो मेरी ओर से दंड अवश्यम्भावी होकर रहा। (14)
_______________________________
इन्हें बस एक चीख़ की प्रतीक्षा है जिसमें तनिक भी अवकाश न होगा।(15)
_______________________________
वे कहते हैं, "ऐ हमारे रब! हिसाब के दिन से पहले ही शीघ्र हमारा हिस्सा दे दे।"(16)
_______________________________
 वे जो कुछ कहते हैं उसपर धैर्य से काम लो और ज़ोर व शक्तिवाले हमारे बन्दे दाऊद को याद करो। निश्चय ही वह (अल्लाह की ओर) बहुत रुजू करनेवाला था। (17)
_______________________________
हमने पर्वतों को उसके साथ वशीभूत कर दिया था कि प्रातःकाल और सन्ध्या समय तसबीह करते रहें।(18)
_______________________________
और पक्षियों को भी, जो एकत्र हो जाते थे। प्रत्येक उसके आगे रुजू रहता। (19)
_______________________________
हमने उसका राज्य सुदृढ़ करदिया था और उसे तत्वदर्शिता प्रदान की थी और निर्णायक बातकहने की क्षमता प्रदान की थी।(20)
_______________________________
और क्या तुम्हें उन विवादियों की ख़बर पहुँची है?जब वे दीवार पर चढ़कर मेहराब (एकान्त कक्ष) में आ पहुँचे।(21)
_______________________________
जब वे दाऊद के पास पहुँचे तो वह उनसे सहम गया। वे बोले,"डरिए नहीं, हम दो विवादी हैं। हममें से एक ने दूसरे पर ज़्यादती की है; तो आप हमारे बीच ठीक-ठीक फ़ैसला कर दीजिए।और बात को दूर न डालिए और हमेंठीक मार्ग बता दीजिए। (22)
_______________________________
 यह मेरा भाई है। इसके पास निन्यानबे दुंबियाँ हैं और मेरे पास एक दुंबी है। अब इसका कहना है कि इसे भी मुझे सौंप दे और बातचीत में इसने मुझे दबा लिया।"(23)
_______________________________
  उसने कहा, "इसने अपनी दुंबियों के साथ तेरी दुंबी को मिला लेने की माँग करके निश्चय ही तुझपर ज़ुल्म किया है। और निस्संदेह बहुत-से साथमिलकर रहनेवाले एक-दूसरे पर ज़्यादती करते हैं, सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए। किन्तु ऐसे लोग थोड़े ही हैं।" अब दाऊद समझ गया कि यह तो हमने उसे परीक्षा में डालाहै। अतः उसने अपने रब से क्षमा-याचना की और झुककर (सीधे सजदे में) गिर पड़ा और रुजू हुआ। (24)
_______________________________
तो हमने उसका वह क़सूर माफ़ कर दिया। और निश्चय ही हमारे यहाँ उसके लिए अनिवार्यतः सामीप्य और उत्तमठिकाना है। (25)
_______________________________
"ऐ दाऊद! हमने धरती में तुझे ख़लीफ़ा (उत्तराधिकारी) बनाया है। अतः तू लोगों के बीच हक़ के साथ फ़ैसला करना और अपनी इच्छा का अनुपालन न करना कि वह तुझे अल्लाह के मार्ग से भटका दे। जो लोग अल्लाह के मार्ग से भटकते हैं, निश्चय ही उनके लिए कठोर यातना है, क्योंकि वे हिसाब के दिन को भूले रहे।- (26)
_______________________________
हमने आकाश और धरती को और जोकुछ उनके बीच है, व्यर्थ नहीं पैदा किया। यह तो उन लोगों का गुमान है जिन्होंने इनकार किया। अतः आग में झोंके जाने के कारण इनकार करनेवालों की बड़ी दुर्गति है। (27)
_______________________________
  (क्या हम उनको जो समझते हैंकि जगत की संरचना व्यर्थ नहींहै, उनके समान कर देंगे जो जगतको निरर्थक मानते हैं।) या हम उन लोगों को जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, उनके समान कर देंगे जो धरती में बिगाड़ पैदा करते हैं; या डर रखनेवालों को हम दुराचारियों जैसा कर देंगे? (28)
_______________________________
यह एक बरकत वाली किताब है, जिसे हमने तुम्हारी ओर अवतरित किया है ताकि वे लोग इसकी आयतों पर सोच-विचार करेंऔर ताकि बुद्धि और समझवाले इससे शिक्षा ग्रहण करें।- (29)
_______________________________
और हमने दाऊद को सुलैमान प्रदान किया। वह कितना अच्छा बन्दा था! निश्चय ही वह बहुत ही रुजू रहनेवाला था। (30)
_______________________________
  याद करो, जबकि सन्ध्या समय उसके सामने सधे हुए द्रुतगामी घोड़े हाज़िर किए गए। (31)
_______________________________
  तो उसने कहा, "मैंने इनके प्रति प्रेम अपने रब की याद के कारण अपनाया है।" यहाँ तक कि वे (घोड़े) ओट में छिप गए। (32)
_______________________________
"उन्हें मेरे पास वापस लाओ!" फिर वह उनकी पिंडलियों और गरदनों पर हाथ फेरने लगा। (33)
_______________________________
 निश्चय ही हमने सुलैमान कोभी परीक्षा में डाला। और हमनेउसके तख़्त पर एक धड़ डाल दिया। फिर वह रुजू हुआ। (34)
_______________________________
  उसने कहा, "ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे और मुझे वह राज्य प्रदान कर, जो मेरे पश्चात किसी के लिए शोभनीय न हो। निश्चय ही तू बड़ा दाता है।" (35)
_______________________________
   तब हमने वायु को उसके लिए वशीभूत कर दिया, जो उसके आदेश से, जहाँ वह पहुँचना चाहता, सरलतापूर्वक चलती थी। (36)
_______________________________
  और शैतानों को भी (वशीभुत कर दिया), प्रत्येक निर्माता और ग़ोताख़ोर को। (37)
_______________________________
और दूसरों को भी जो ज़ंजीरोंमें जकड़े हुए रहते।(38)
_______________________________
"यह हमारी बेहिसाब देन है।अब एहसान करो या रोको।" (39)
_______________________________
और निश्चय ही हमारे यहाँ उसके लिए अनिवार्यतः सामीप्यऔर उत्तम ठिकाना है।(40)
_______________________________
  हमारे बन्दे अय्यूब को भी याद करो, जब उसने अपने रब को पुकारा कि "शैतान ने मुझे दुख और पीड़ा पहुँचा रखी है।" (41)
_______________________________
"अपना पाँव (धरती पर) मार, यह है ठंडा (पानी) नहाने को और पीने को।" (42)
_______________________________
और हमने उसे उसके परिजन दिए और उनके साथ वैसे ही और भी; अपनी ओर से दयालुता के रूपमें और बुद्धि और समझ रखनेवालों के लिए शिक्षा के रूप में। (43)
_______________________________
"और अपने हाथ में तिनकों का एक मुट्ठा ले और उससे मार और अपनी क़सम न तोड़।" निश्चय ही हमने उसे धैर्यवान पाया, क्या ही अच्छा बन्दा! निस्संदेह वह बड़ा ही रुजू रहनेवाला था। (44)
_______________________________
हमारे बन्दों, इबराहीम और इसहाक़ और याक़ूब को भी याद करो, जो हाथों (शक्ति) और निगाहोंवाले (ज्ञान-चक्षुवाले) थे। (45)
_______________________________
निस्संदेह हमने उन्हें एक विशिष्ट बात के लिए चुन लिया था और वह वास्तविक घर (आख़िरत)की याद थी। (46)
_______________________________
और निश्चय ही वे हमारे यहाँ चुने हुए नेक लोगों में से हैं। (47)
_______________________________
इसमाईल और अल-यसअ और ज़ुलकिफ़्ल को भी याद करो। इनमें से प्रत्येक ही अच्छा रहा है। (48)
_______________________________
यह एक अनुस्मृति है। और निश्चय ही डर रखनेवालों के लिए अच्छा ठिकाना है। (49)
_______________________________
सदैव रहने के बाग़ हैं, जिनके द्वार उनके लिए खुले होंगे।(50)
_______________________________
  उनमें वे तकिया लगाए हुए होंगे। वहाँ वे बहुत-से मेवे और पेय मँगवाते होंगे। (51)
_______________________________
और उनके पास निगाहें बचाए रखनेवाली स्त्रियाँ होंगी, जो समान अवस्था की होंगी। (52)
_______________________________
यह है वह चीज़, जिसका हिसाबके दिन के लिए तुमसे वादा किया जाता है। (53)
_______________________________
यह हमारा दिया है, जो कभी समाप्त न होगा। (54)
_______________________________
  एक ओर यह है, किन्तु सरकशों के लिए बहुत बुरा ठिकाना है;(55)
_______________________________
जहन्नम, जिसमें वे प्रवेश करेंगे। तो वह बहुत ही बुरा विश्राम-स्थल है! (56)
_______________________________
यह है, अब उन्हें इसे चखना है - खौलता हुआ पानी और रक्तयुक्त पीप (57)
_______________________________
और इसी प्रकार की दूसरी और भी चीज़ें। (58)
_______________________________
"यह एक भीड़ है जो तुम्हारे साथ घुसी चली आ रही है। कोई आवभगत उनके लिए नहीं।वे तो आग में पड़नेवाले हैं।" (59)
_______________________________
वे कहेंगे, "नहीं, बल्कि तुम। तुम्हारे लिए कोई आवभगत नहीं। तुम्ही यह हमारे आगे लाए हो। तो बहुत ही बुरी है यहठहरने की जगह!"(60)
_______________________________
  वे कहेंगे, "ऐ हमारे रब! जो हमारे आगे यह (मुसीबत) लाया उसे आग में दोहरी यातना दे!" (61)
_______________________________
  और वे कहेंगे, "क्या बात हैकि हम उन लोगों को नहीं देखते जिनकी गणना हम बुरों में करतेथे? (62)
_______________________________
क्या हमने यूँ ही उनका मज़ाक बनाया था, या उनसे निगाहें चूक गई हैं?"(63)
_______________________________
निस्संदेह आग में पड़नेवालों का यह आपस का झगड़ा तो अवश्य होना है। (64)
_______________________________
कह दो, "मैं तो बस एक सचेत करनेवाला हूँ। कोई पूज्य-प्रभु नहीं सिवाय अल्लाह के, जो अकेला है, सबपर क़ाबू रखनेवाला; (65)
_______________________________
   आकाशों और धरती का रब है, और जो कुछ इन दोनों के बीच है उसका भी, अत्यन्त प्रभुत्वशाली, बड़ा क्षमाशील।" (66)
_______________________________
  कह दो, "वह एक बड़ी ख़बर है,‘ (67)
_______________________________
जिसे तुम ध्यान में नहीं ला रहे हो। (68)
_______________________________
मुझे 'मलए आला' (ऊपरी लोक केफ़रिश्तों) का कोई ज्ञान नहींथा, जब वे वाद-विवाद कर रहे थे। (69)
_______________________________
मेरी ओर तो बस इसलिए प्रकाशना की जाती है कि मैं खुल्लम-खुल्ला सचेत करनेवालाहूँ।" (70)
_______________________________
याद करो जब तुम्हारे रब ने फ़रिश्तों से कहा कि "मैं मिट्टी से एक मनुष्य पैदा करनेवाला हूँ। (71)
_______________________________
  तो जब मैं उसको ठीक-ठाक कर दूँ औऱ उसमें अपनी रूह फूँक दूँ, तो तुम उसके आगे सजदे मेंगिर जाना।" (72)
_______________________________
  तो सभी फ़रिश्तों ने सजदा किया, सिवाय इबलीस के। (73)
_______________________________
उसने घमंड किया और इनकार करनेवालों में से हो गया। (74)
_______________________________
कहा, "ऐ इबलीस! तूझे किस चीज़ ने उसको सजदा करने से रोका जिसे मैंने अपने दोनों हाथों से बनाया? क्या तूने घमंड किया, या तू कोई ऊँची हस्ती है?" (75)
_______________________________
  उसने कहा, "मैं उससे उत्तम हूँ। तूने मुझे आग से पैदा किया और उसे मिट्टी से पैदा किया।" (76)
_______________________________
  कहा, "अच्छा, निकल जा यहाँ से, क्योंकि तू धुत्कारा हुआ है। (77)
_______________________________
  और निश्चय ही बदला दिए जाने के दिन तक तुझपर मेरी लानत है।" (78)
_______________________________
उसने कहा, "ऐ मेरे रब! फिर तू मुझे उस दिन तक के लिए मुहल्लत दे, जबकि लोग (जीवित करके) उठाए जाएँगे।" (79)
_______________________________
  कहा, "अच्छा, तुझे निश्चित एवं (80)
_______________________________
  ज्ञात समय तक मुहलत है।" (81)
_______________________________
उसने कहा, "तेरे प्रताप की सौगन्ध! मैं अवश्य उन सबको बहकाकर रहूँगा, (82)
_______________________________
   सिवाय उनमें से तेरे उन बन्दों के, जो चुने हुए हैं।" (83)
_______________________________
कहा, "तो यह सत्य है और मैं सत्य ही कहता हूँ। (84)
_______________________________
   कि मैं जहन्नम को तुझसे और उन सबसे भर दूँगा, जिन्होंने उनमें से तेरा अनुसरण किया होगा।" (85)
_______________________________
  कह दो, "मैं इसपर तुमसे कोई पारिश्रमिक नहीं माँगता और न मैं बनावट करनेवालों में से हूँ।"(86)
_______________________________
  वह तो एक अनुस्मृति है सारे संसारवालों के लिए। (87)
_______________________________
और थोड़ी ही अवधि के पश्चातउसकी दी हुई ख़बर तुम्हें मालूम हो जाएगी।(88)
●═══════════════════✒
www.achhiblog.blogspot.in
« सूरह (अध्याय ) « Go To
« पिछला »   « अगला » (अध्याय)
« Next » « Privew »

Currently have 0 comment plz:


Leave a Reply

© 2010 www.achhiblog.blogspot.in |Blogger Author BloggerTheme
powered by Blogger | WordPress by camelgraph | Converted by BloggerTheme.