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39. अज़-ज़ुमर [ कुल आयतें - 75 ]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
इस किताब का अवतरण अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी की ओर से है। (1)
_______________________________
निस्संदेह हमने यह किताब तुम्हारी ओर सत्य के साथ अवतरित की है। अतः तुम अल्लाहही की बन्दगी करो, धर्म को उसीके लिए विशुद्ध करते हुए। (2)
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जान रखो कि विशुद्ध धर्म अल्लाह ही के लिए है। रहे वे लोग जिन्होंने उससे हटकर दूसरे समर्थक औऱ संरक्षक बना रखे हैं (कहते हैं,) "हम तो उनकी बन्दगी इसी लिए करते हैंकि वे हमें अल्लाह का सामीप्यप्राप्त करा दें।" निश्चय ही अल्लाह उनके बीच उस बात का फ़ैसला कर देगा जिसमें वे विभेद कर रहे हैं। अल्लाह उसेमार्ग नहीं दिखाता जो झूठा औरबड़ा अकृतज्ञ हो। (3)
_______________________________
यदि अल्लाह अपनी कोई सन्तान बनाना चाहता तो वह उनमें से, जिन्हें वह पैदा कर रहा है, चुन लेता। महान और उच्च है वह! वह अल्लाह है अकेला, सब पर क़ाबू रखनेवाला।(4)
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उसने आकाशों और धरती को सत्य के साथ पैदा किया। रात को दिन पर लपेटता है और दिन कोरात पर लपेटता है। और उसने सूर्य और चन्द्रमा को वशीभूत कर रखा है। प्रत्येक एक नियत समय को पूरा करने के लिए चल रहा है। जान रखो, वही प्रभुत्वशाली, बड़ा क्षमाशीलहै।(5)
_______________________________
उसने तुम्हें अकेली जान पैदा किया; फिर उसी से उसका जोड़ा बनाया औऱ तुम्हारे लिए चौपायों में से आठ नर-मादा उतारे। वह तुम्हारी माँओं के पेटों में तीन अँधेरों के भीतर तुम्हें एक सृजनरूप के पश्चात अन्य एक सृजनरूप देता चला जाता है। वही अल्लाह तुम्हारा रब है। बादशाही उसी की है, उसके अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं। फिर तुम कहाँ फिरे जाते हो? (6)
_______________________________
यदि तुम इनकार करोगे तो अल्लाह तुमसे निस्पृह है। यद्यपि वह अपने बन्दों के लिएइनकार को पसन्द नहीं करता, किन्तु यदि तुम कृतज्ञता दिखाओगे, तो उसे वह तुम्हारे लिए पसन्द करता है। कोई बोझ उठाने वाला किसी दूसरे का बोझन उठाएगा। फिर तुम्हारी वापसी अपने रब ही की ओर है। औरवह तुम्हें बता देगा, जो कुछ तुम करते रहे होगे। निश्चय हीवह सीनों तक की बातें जानता है।(7)
_______________________________
जब मनुष्य को कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो वह अपने रब को उसी की ओर रुजू होकर पुकारने लगता है, फिर जब वह उसपर अपनी अनुकम्पा करता है, तो वह उस चीज़ को भूल जाता है जिसके लिए पहले पुकार रहा था और (दूसरों को) अल्लाह के समकक्ष ठहराने लगता है, ताकि इसके परिणामस्वरूप वह उसकी राह से भटका दे। कह दो, "अपने इनकार का थोड़ा मज़ा ले लो। निस्संदेह तुम आगवालों में से हो।"(8)
_______________________________
(क्या उक्त व्यक्ति अच्छा है) या वह व्यक्ति जो रात की घड़ियों में सजदा करता है और खड़ा रहता है, आख़िरत से डरता है और अपने रब की दयालुता की आशा रखता हुआ विनयशीलता के साथ बन्दगी में लगा रहता है? कहो, "क्या वे लोग जो जानते हैं और वे लोग जो नहीं जानते दोनों समान होंगे? शिक्षा तो बुद्धि और समझवाले ही ग्रहण करते हैं।" (9)
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कह दो कि "ऐ मेरे बन्दो, जो ईमान लाए हो! अपने रब का डर रखो। जिन लोगों ने अच्छा कर दिखाया उनके लिए इस संसार मेंअच्छाई है, और अल्लाह की धरती विस्तृत है। जमे रहनेवालों को तो उनका बदला बेहिसाब मिलकर रहेगा।" (10)
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कह दो, "मुझे तो आदेश दिया गया है कि मैं अल्लाह की बन्दगी करूँ, धर्म (भक्तिभाव एवं निष्ठा) को उसी के लिए विशुद्ध करते हुए।(11)
_______________________________
  और मुझे आदेश दिया गया है कि सबसे बढ़कर मैं स्वयं आज्ञाकारी बनूँ।" (12)
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कहो, "यदि मैं अपने रब की अवज्ञा करूँ तो मुझे एक बड़े दिन की यातना का भय है।" (13)
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कहो, "मैं तो अल्लाह ही की बन्दगी करता हूँ, अपने धर्म को उसी के लिए विशुद्ध करते हुए। (14)
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अब तुम उससे हटकर जिसकी चाहो बन्दगी करो।" कह दो,"वास्तव में घाटे में पड़नेवाले तो वही हैं, जिन्होंने अपने आपको और अपने लोगों को क़ियामत के दिन घाटेमें डाल दिया। जान रखो, यही खुला घाटा है। (15)
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उनके लिए उनके ऊपर से भी आगकी छतरियाँ होंगी और उनके नीचे से भी छतरियाँ होंगी। यही वह चीज़ है, जिससे अल्लाह अपने बन्दों को डराता है, "ऐ मेरे बन्दो! अतः तुम मेरा डर रखो।" (16)
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   रहे वे लोग जो इससे बचे कि वे ताग़ूत (बढ़े हुए फ़सादी) की बन्दगी करते और अल्लाह की ओर रुजू हुए, उनके लिए शुभ सूचना है। (17)
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  अतः मेरे उन बन्दों को शुभ सूचना दे दो जो बात को ध्यान से सुनते हैं; फिर उस अच्छी सेअच्छी बात का अनुपालन करते हैं। वही हैं, जिन्हें अल्लाहने मार्ग दिखाया है और वही बुद्धि और समझवाले हैं। (18)
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  तो क्या वह व्यक्ति जिसपर यातना की बात सत्यापित हो चुकी है (यातना से बच सकता है)?तो क्या तुम छुड़ा लोगे उसको जो आग में है। (19)
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  अलबत्ता जो लोग अपने रब से डरकर रहे उनके लिए ऊपरी मंज़िल पर कक्ष होंगे, जिनके ऊपर भी निर्मित कक्ष होंगे। उनके नीचे नहरें बह रही होंगी। यह अल्लाह का वादा है।अल्लाह अपने वादे का उल्लंघन नहीं करता। (20)
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  क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह ने आकाश से पानी उतारा, फिर धरती में उसके स्रोत प्रवाहित कर दिए; फिर उसके द्वारा खेती निकालता है,जिसके विभिन्न रंग होते हैं; फिर वह सूखने लगती है; फिर तुमदेखते हो कि वह पीली पड़ गई; फिर वह उसे चूर्ण-विचूर्ण कर देता है? निस्संदेह इसमें बुद्धि और समझवालों के लिए बड़ी याददिहानी है। (21)
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अब क्या वह व्यक्ति जिसका सीना (हृदय) अल्लाह ने इस्लाम के लिए खोल दिया, अतः वह अपने रब की ओर से प्रकाश पर है, (उस व्यक्ति के समान होगा जो कठोरहृदय और अल्लाह की याद से ग़ाफ़िल है)? अतः तबाही है उन लोगों के लिए जिनके दिल कठोर हो चुके हैं, अल्लाह की याद सेख़ाली होकर! वही खुली गुमराहीमें पड़े हुए हैं। (22)
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  अल्लाह ने सर्वोत्तम वाणी अवतरित की, एक ऐसी किताब जिसके सभी भाग परस्पर मिलते-जुलते हैं, जो रुख़ फेर देनेवाली (क्रांतिकारी) है। उससे उन लोगों के रोंगटे खड़ेहो जाते हैं जो अपने रब से डरते हैं। फिर उनकी खालें (शरीर) और उनके दिल नर्म होकर अल्लाह की याद की ओर झुक जाते हैं। वह अल्लाह का मार्गदर्शन है, उसके द्वारा वह सीधे मार्ग पर ले आता है, जिसे चाहता है। और जिसको अल्लाह पथभ्रष्ट रहने दे, फिरउसके लिए कोई मार्गदर्शक नहीं। (23)
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अब क्या जो क़ियामत के दिन अपने चहरे को बुरी यातना (से बचने) की ढाल बनाएगा वह (यातनासे सुरक्षित लोगों जैसा होगा)? और ज़ालिमों से कहा जाएगा, "चखो मज़ा उस कमाई का, जो तुम करते रहे थे!" (24)
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जो लोग उनसे पहले थे उन्होंने भी झुठलाया। अन्ततःउनपर वहाँ से यातना आ पहुँची, जिसका उन्हें कोई पता न था।(25)
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फिर अल्लाह ने उन्हें सांसारिक जीवन में भी रुसवाई का मज़ा चखाया और आख़िरत की यातना तो इससे भी बड़ी है। काश! वे जानते। (26)
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हमने इस क़ुरआन में लोगों के लिए हर प्रकार की मिसालें पेश कर दी हैं, ताकि वे शिक्षाग्रहण करें। (27)
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एक अरबी क़ुरआन के रूप में,जिसमें कोई टेढ़ नहीं, ताकि वे धर्मपरायणता अपनाएँ। (28)
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अल्लाह एक मिसाल पेश करता है कि एक व्यक्ति है, जिसके मालिक होने में कई व्यक्ति साझी हैं, आपस में खींचातानी करनेवाले, और एक व्यक्ति वह है जो पूरा का पूरा एक ही व्यक्ति का है। क्या दोनों काहाल एक जैसा होगा? सारी प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है, किन्तु उनमें से अधिकांश लोग नहीं जानते।(29)
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तुम्हें भी मरना है और उन्हें भी मरना है। (30)
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   फिर निश्चय ही तुम सब क़ियामत के दिन अपने रब के समक्ष झगड़ोगे। (31)
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    फिर उस व्यक्ति से बढ़कर अत्याचारी कौन होगा, जिसने झूठ घड़कर अल्लाह पर थोपा और सत्य को झुठला दिया जब वह उसके पास आया। क्या जहन्नम में इनकार करनेवालों का ठिकाना नहीं है? (32)
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और जो व्यक्ति सच्चाई लेकरआया और उसने उसकी पुष्टि की, ऐसे ही लोग डर रखते हैं। (33)
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उनके लिए उनके रब के पास वहसब कुछ है, जो वे चाहेंगे। यह है उत्तमकारों का बदला। (34)
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ताकि जो निकृष्टतम कर्म उन्होंने किए अल्लाह उन (के बुरे प्रभाव) को उनसे दूर कर दे। और जो उत्तम कर्म वे करते रहे उसका उन्हें बदला प्रदान करे। (35)
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   क्या अल्लाह अपने बन्दे केलिए काफ़ी नहीं है, यद्यपि वे तुम्हें उनसे डराते हैं, जो उसके सिवा (उन्होंने अपने सहायक बना रखे) हैं? अल्लाह जिसे गुमराही में डाल दे उसे मार्ग दिखानेवाला कोई नहीं। (36)
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   और जिसे अल्लाह मार्ग दिखाए उसे गुमराह करनेवाला भी कोई नहीं। क्या अल्लाह प्रभुत्वशाली, बदला लेनेवालानहीं है? (37)
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  यदि तुम उनसे पूछो कि"आकाशों और धरती को किसने पैदाकिया?" तो वे अवश्य कहेंगे,"अल्लाह ने।" कहो, "तुम्हारा क्या विचार है? यदि अल्लाह मुझे कोई तकलीफ़ पहुँचानी चाहे तो क्या अल्लाह से हटकर जिनको तुम पुकारते हो वे उसकीपहुँचाई हुई तकलीफ़ को दूर करसकते हैं? या वह मुझपर कोई दयालुता दर्शानी चाहे तो क्या वे उसकी दयालुता को रोक सकते हैं?" कह दो, "मेरे लिए अल्लाह काफ़ी है। भरोसा करनेवाले उसी पर भरोसा करते हैं।" (38)
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कह दो, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! तुम अपनी जगह काम करो। मैं भी (अपनी जगह) काम करता हूँ। तो शीघ्र ही तुम जान लोगे (39)
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    कि किस पर वह यातना आती है जो उसे रुसवा कर देगी और किस पर अटल यातना उतरती है।" (40)
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  निश्चय ही हमने लोगों के लिए हक़ के साथ तुमपर किताब अवतरित की है। अतः जिसने सीधामार्ग ग्रहण किया तो अपने ही लिए, और जो भटका, तो वह भटककर अपने ही को हानि पहुँचाता है।तुम उनके ज़िम्मेदार नहीं हो। (41)
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अल्लाह ही प्राणों को उनकीमृत्यु के समय ग्रस्त कर लेताहै और जिसकी मृत्यु नहीं आई उसे उसकी निद्रा की अवस्था में (ग्रस्त कर लेता है)। फिर जिसकी मृत्यु का फ़ैसला कर दिया है उसे रोक रखता है। और दूसरों को एक नियत समय तक के लिए छोड़ देता है। निश्चय ही इसमें कितनी ही निशानियाँ हैं सोच-विचार करनेवालों के लिए। (42)
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  (क्या उनके उपास्य प्रभुतामें साझीदार हैं) या उन्होंनेअल्लाह से हटकर दूसरों को सिफ़ारिशी बना रखा है? कहो,"क्या यद्यपि वे किसी चीज़ का अधिकार न रखते हों और न कुछ समझते ही हों तब भी?" (43)
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  कहो, "सिफ़ारिश तो सारी की सारी अल्लाह के अधिकार में है। आकाशों और धरती की बादशाही उसी की है। फिर उसी की ओर तुम लौटाए जाओगे।" (44)
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जब अकेले अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है तो जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते उनके दिल भिंचने लगते हैं, किन्तु जब उसके सिवा दूसरों का ज़िक्र होता है तो क्या देखते हैं कि वे ख़ुशी से खिले जा रहे हैं।(45)
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कहो, "ऐ अल्लाह, आकाशों और धरती को पैदा करनेवाले; परोक्ष और प्रत्यक्ष के जाननेवाले! तू ही अपने बन्दोंके बीच उस चीज़ का फ़ैसला करेगा, जिसमें वे विभेद कर रहे हैं।" (46)
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जिन लोगों ने ज़ुल्म किया यदि उनके पास वह सब कुछ हो जो धरती में है और उसके साथ उतना ही और भी, तो वे क़ियामत के दिन बुरी यातना से बचने के लिए वह सब फ़िदया (प्राण-मुक्ति के बदले) में दे डालें। बात यह है कि अल्लाह की ओर से उनके सामने वह कुछ आ जाएगा जिसका वे गुमान तक न करते थे। (47)
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और जो कुछ उन्होंने कमाया उसकी बुराइयाँ उनपर प्रकट हो जाएँगी। और वही चीज़ उन्हें घेर लेगी जिसकी वे हँसी उड़ाया करते थे। (48)
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अतः जब मनुष्य को कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो वह हमेंपुकारने लगता है, फिर जब हमारी ओर से उसपर कोई अनुकम्पा होती है तो कहता है,"यह तो मुझे ज्ञान के कारण प्राप्त हुआ है।" नहीं, बल्कि यह तो एक परीक्षा है, किन्तु उनमें से अधिकतर जानते नहीं। (49)
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  यही बात वे लोग भी कह चुके हैं, जो उनसे पहले गुज़रे हैं। किन्तु जो कुछ कमाई वे करते थे, वह उनके कुछ काम न आई। (50)
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  फिर जो कुछ उन्होंने कमाया, उसकी बुराइयाँ उनपर आ पड़ीं और इनमें से भी जिन लोगों ने ज़ुल्म किया, उनपर भी जो कुछ उन्होंने कमाया उसकी बुराइयाँ जल्द ही आ पड़ेंगी। और वे क़ाबू से बाहर निकलनेवाले नहीं। (51)
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  क्या उन्हें मालूम नहीं किअल्लाह जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है नपी-तुली कर देता है? निस्संदेह इसमें उन लोगों के लिए बड़ी निशानियाँ हैं जो ईमान लाएँ। (52)
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  कह दो, "ऐ मेरे बन्दो, जिन्होंने अपने आप पर ज़्यादती की है, अल्लाह की दयालुता से निराश न हो। निस्संदेह अल्लाह सारे ही गुनाहों को क्षमा कर देता है।निश्चय ही वह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है। (53)
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रुजू हो अपने रब की ओर और उसके आज्ञाकारी बन जाओ, इससे पहले कि तुमपर यातना आ  जाए। फिर तुम्हारी सहायता न की जाएगी। (54)
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और अनुसरण करो उस सर्वोत्तम चीज़ का जो तुम्हारे रब की ओर से अवतरित हुई है, इससे पहले कि तुम पर अचानक यातना आ जाए और तुम्हेंपता भी न हो।" (55)
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  कहीं ऐसा न हो कि कोई व्यक्ति कहने लगे, "हाय अफ़सोस उस पर! जो कोताही अल्लाह के हक़ में मैंने की। और मैं तो परिहास करनेवालों में ही सम्मिलित रहा।" (56)
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या, कहने लगे कि "यदि अल्लाह मुझे मार्ग दिखाता तो अवश्य ही मैं डर रखनेवालों में से होता।" (57)
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या, जब वह यातना देखे तो कहने लगे, "काश! मुझे एक बार फिर लौटकर जाना हो, तो मैं उत्तमकारों में सम्मिलित हो जाऊँ।" (58)
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  "क्यों नहीं, मेरी आयतें तेरे पास आ चुकी थीं, किन्तु तूने उनको झुठलाया और घमंड किया और इनकार करनेवालों में सम्मिलित रहा। (59)
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  और क़ियामत के दिन तुम उन लोगों को देखोगे जिन्होंने अल्लाह पर झूठ घड़कर थोपा है कि उनके चेहरे स्याह हैं। क्या अहंकारियों का ठिकाना जहन्नम में नहीं है?" (60)
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इसके विपरीत अल्लाह उन लोगों को जिन्होंने डर रखा उन्हें उनकी अपनी सफलता के साथ मुक्ति प्रदान करेगा। न तो उन्हें कोई अनिष्ट छू सकेगा और न वे शोकाकुल होंगे।(61)
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अल्लाह हर चीज़ का स्रष्टाहै और वही हर चीज़ का ज़िम्मा लेता है। (62)
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  उसी के पास आकाशों और धरती की कुँजियाँ हैं। और जिन लोगों ने हमारी आयतों का इनकार किया, वही हैं जो घाटे में हैं। (63)
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   कहो, "क्या फिर भी तुम मुझसे कहते हो कि मैं अल्लाह के सिवा किसी और की बन्दगी करूँ, ऐ अज्ञानियो?" (64)
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तुम्हारी ओर और जो तुमसे पहले गुज़र चुके हैं उनकी ओर भी वह्य की जा चुकी है कि "यदि तुमने शिर्क किया तो तुम्हारा किया-धरा अनिवार्यतः अकारथ जाएगा और तुम अवश्य ही घाटे में पड़नेवालों में से हो जाओगे।"(65)
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  नहीं, बल्कि अल्लाह ही की बन्दगी करो और कृतज्ञता दिखानेवालों में से हो जाओ। (66)
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उन्होंने अल्लाह की क़द्र न जानी, जैसी क़द्र उसकी जाननी चाहिए थी। हालाँकि क़ियामत के दिन सारी की सारी धरती उसकी मुट्ठी में होगी औरआकाश उसके दाएँ हाथ में लिपटेहुए होंगे। महान और उच्च है वह उससे, जो वे साझी ठहराते हैं। (67)
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  और सूर (नरसिंघा) फूँका जाएगा, तो जो कोई आकाशों और जोकोई धरती में होगा वह अचेत हो जाएगा सिवाय उसके जिसको अल्लाह चाहे। फिर उसे दूबारा फूँका जाएगा, तो क्या देखेंगेकि सहसा वे खड़े देख रहे हैं। (68)
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  और धरती अपने रब के प्रकाश से जगमगा उठेगी, और किताब रखी जाएगी और नबियों और गवाहों कोलाया जाएगा और लोगों के बीच हक़ के साथ फ़ैसला कर दिया जाएगा, और उनपर कोई ज़ुल्म न होगा। (69)
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  और प्रत्येक व्यक्ति को उसका किया भरपूर दिया जाएगा। और वह भली-भाँति जानता है, जो कुछ वे करते हैं। (70)
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  जिन लोगों ने इनकार किया, वे गरोह के गरोह जहन्नम की ओर ले जाए जाएँगे, यहाँ तक कि जब वे वहाँ पहुँचेंगे तो उसके द्वार खोल दिए जाएँगे और उसकेप्रहरी उनसे कहेंगे, "क्या तुम्हारे पास तुम्हीं में से रसूल नहीं आए थे जो तुम्हें तुम्हारे रब की आयतें सुनाते रहे हों और तुम्हें इस दिन की मुलाक़ात से सचेत करते रहे हों?" वे कहेंगे, "क्यों नहीं (वे तो आए थे)।" किन्तु इनकार करनेवालों पर यातना की बात सत्यापित होकर रही। (71)
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  कहा जाएगा, "जहन्नम के द्वारों में प्रवेश करो। उसमें सदैव रहने के लिए।" तो बहुत ही बुरा ठिकाना है अहंकारियों का! (72)
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  और जो लोग अपने रब का डर रखते थे, वे गरोह के गरोह जन्नत की ओर ले जाए जाएँगे, यहाँ तक कि जब वे वहाँ पहुँचेंगे इस हाल में कि उसकेद्वार खुले होंगे। और उसके प्रहरी उनसे कहेंगे, "सलाम हो तुमपर! बहुत अच्छे रहे! अतः इसमें प्रवेश करो सदैव रहने के लिए तो (उनकी ख़ुशियों का क्या हाल होगा!) (73)
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और वे कहेंगे, "प्रशंसा अल्लाह के लिए, जिसने हमारे साथ अपना वादा सच कर दिखाया, और हमें इस भूमि का वारिस बनाया कि हम जन्नत में जहाँ चाहें वहाँ रहें-बसें।" अतः क्या ही अच्छा प्रतिदान है कर्म करनेवालों का!- (74)
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और तुम फ़रिश्तों को देखोगे कि वे सिंहासन के गिर्द घेरा बाँधे हुए, अपने रब का गुणगान कर रहे हैं। और लोगों के बीच ठीक-ठीक फ़ैसला कर दिया जाएगा और कहा जाएगा,"सारी प्रशंसा अल्लाह, सारे संसार के रब, के लिए है।" (75)
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