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40. अल-मोमिन (ग़ाफ़िर) [ कुल आयतें - 85 ]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
हा॰ मीम॰ (1)
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इस किताब का अवतरण प्रभुत्वशाली, सर्वज्ञ अल्लाह की ओर से है, (2)
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जो गुनाह क्षमा करनेवाला, तौबा क़बूल करनेवाला, कठोर दंड देनेवाला, शक्तिमान है। उसके अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं। अन्ततः उसी की ओरजाना है। (3)
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अल्लाह की आयतों के बारे में बस वही लोग झगड़ते हैं जिन्होंने इनकार किया, तो नगरों में उनकी चलत-फिरत तुम्हें धोखे में न डाले। (4)
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उनसे पहले नूह की क़ौम ने और उनके पश्चात दूसरे गरोहों ने भी झुठलाया और हर समुदाय के लोगों ने अपने रसूलों के बारे में इरादा किया कि उन्हें पकड़ लें और वे असत्य का सहारा लेकर झगड़े, ताकि उसके द्वारा सत्य को उखाड़ दें। अन्ततः मैंने उन्हें पकड़ लिया। तो कैसी रही मेरी सज़ा! (5)
_______________________________
और (जैसे दुनिया में सज़ा मिली) उसी प्रकार तेरे रब की यह बात भी उन लोगों पर सत्यापित हो गई है, जिन्होंनेइनकार किया कि वे आग में पड़नेवाले हैं; (6)
_______________________________
जो सिंहासन को उठाए हुए हैंऔर जो उसके चतुर्दिक हैं, अपने रब का गुणगान करते हैं और उस पर ईमान रखते हैं और उन लोगों के लिए क्षमा की प्रार्थना करते हैं जो ईमान लाए कि "ऐ हमारे रब! तू अपनी दयालुता और अपने ज्ञान से हर चीज़ को व्याप्त है। अतः जिन लोगों ने तौबा की और तेरे मार्ग का अनुसरण किया, उन्हेंक्षमा कर दे और भड़कती हुई आग की यातना से उन्हें बचा ले।(7)
_______________________________
ऐ हमारे रब! और उन्हें सदैवरहने के बाग़ों में दाख़िल कर जिनका तूने उनसे वादा किया हैऔर उनके बाप-दादा और उनकी पत्नियों और उनकी सन्ततियों में से जो योग्य हुए उन्हें भी। निस्संदेह तू प्रभुत्वशाली, अत्यन्त तत्वदर्शी है। (8)
_______________________________
और उन्हें अनिष्टों से बचा। जिसे उस दिन तूने अनिष्टों से बचा लिया, तो निश्चय ही उसपर तूने दया की। और वही बड़ी सफलता है।" (9)
_______________________________
निश्चय ही जिन लोगों ने इनकार किया उन्हें पुकारकर कहा जाएगा कि "अपने आप से जो तुम्हें विद्वेष एवं क्रोध है, तुम्हारे प्रति अल्लाह काक्रोध एवं द्वेष उससे कहीं बढ़कर है कि जब तुम्हें ईमान की ओर बुलाया जाता था तो तुम इनकार करते थे।" (10)
_______________________________
वे कहेंगे, "ऐ हमारे रब! तूने हमें दो बार मृत रखा और दो बार जीवन प्रदान किया। अब हमने अपने गुनाहों को स्वीकार किया, तो क्या अब (यहाँ से) निकलने का भी कोई मार्ग है?" (11)
_______________________________
  वह (बुरा परिणाम) तो इसलिए सामने आएगा कि जब अकेला अल्लाह को पुकारा जाता है तो तुम इनकार करते हो। किन्तु यदि उसके साथ साझी ठहराया जाएतो तुम मान लेते हो। तो अब फ़ैसला तो अल्लाह ही के हाथ में है, जो सर्वोच्च बड़ा महान है। - (12)
_______________________________
वही है जो तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाता है और तुम्हारे लिए आकाश से रोज़ी उतारता है, किन्तु याददिहानी तो बस वही हासिल करता है जो (उसकी ओर) रुजू करे। (13)
_______________________________
अतः तुम अल्लाह ही को, धर्मको उसी के लिए विशुद्ध करते हुए, पुकारो, यद्यपि इनकार करनेवालों को अप्रिय ही लगे। - (14)
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वह ऊँचे दर्जोंवाला, सिंहासनवाला है, अपने बन्दों में से जिसपर चाहता है, अपने हुक्म से रूह उतारता है, ताकि वह मुलाक़ात के दिन से सावधानकर दे। (15)
_______________________________
जिस दिन वे खुले रूप में सामने उपस्थित होंगे, उनकी कोई चीज़ अल्लाह से छिपी न रहेगी, "आज किसकी बादशाही है?""अल्लाह की, जो अकेला सबपर क़ाबू रखनेवाला है।" (16)
_______________________________
  आज प्रत्येक व्यक्ति को उसकी कमाई का बदला दिया जाएगा। आज कोई ज़ुल्म न होगा।निश्चय ही अल्लाह हिसाब लेने में बहुत तेज़ है। (17)
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(उन्हें अल्लाह की ओर बुलाओ) और उन्हें निकट आ जानेवाले (क़ियामत के) दिन से सावधान कर दो, जबकि उर (हृदय) कंठ को आ लगे होंगे और वे दबा रहे होंगे। ज़ालिमों का न कोईघनिष्ट मित्र होगा और न ऐसा सिफ़ारिशी जिसकी बात मानी जाए। (18)
_______________________________
वह निगाहों की चोरी तक को जानता है और उसे भी जो सीने छिपा रहे होते हैं। (19)
_______________________________
अल्लाह ठीक-ठीक फ़ैसला कर देगा। रहे वे लोग जिन्हें वे अल्लाह को छोड़कर पुकारते हैं, वे किसी चीज़ का भी फ़ैसला करनेवाले नहीं। निस्संदेह अल्लाह ही है जो सुनता, देखता है। (20)
_______________________________
क्या वे धरती में चले-फिरे नहीं कि देखते कि उन लोगों का कैसा परिणाम हुआ, जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं? वे शक्ति और धरती में अपने चिन्हों की दृष्टि से उनसे कहीं बढ़-चढ़कर थे, फिर उनके गुनाहों के कारण अल्लाह ने उन्हें पकड़ लिया। और अल्लाह से उन्हें बचानेवाला कोई न हुआ। (21)
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वह (बुरा परिणाम) तो इसलिए सामने आया कि उनके पास उनके रसूल स्पष्ट प्रमाण लेकर आते रहे, किन्तु उन्होंने इनकार किया। अन्ततः अल्लाह ने उन्हें पकड़ लिया। निश्चय ही वह बड़ी शक्तिवाला, सज़ा देनेमें अत्यधिक कठोर है। (22)
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और हमने मूसा को भी अपनी निशानियों और स्पष्ट प्रमाण के साथ (23)
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फ़िरऔन और हामान और क़ारूनकी ओर भेजा था, किन्तु उन्होंने कहा, "यह तो जादूगर है, बड़ा झूठा!" (24)
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फिर जब वह उनके सामने हमारे पास से सत्य लेकर आया तो उन्होंने कहा, "जो लोग ईमानलाकर उसके साथ हैं, उनके बेटों को मार डालो और उनकी स्त्रियों को जीवित छोड़ दो।"किन्तु इनकार करनेवालों की चाल तो भटकने ही के लिए होती है। (25)
_______________________________
फ़िरऔन ने कहा, "मुझे छोड़ो, मैं मूसा को मार डालूँ और उसे चाहिए कि वह अपने रब को(अपनी सहायता के लिए) पुकारे। मुझे डर है कि ऐसा न हो कि वह तुम्हारे धर्म को बदल डाले यायह कि वह देश में बिगाड़ पैदा करे।" (26)
_______________________________
मूसा ने कहा, "मैंने हर अहंकारी के मुक़ाबले में, जो हिसाब के दिन पर ईमान नहीं रखता, अपने रब और तुम्हारे रब की शरण ले ली है।" (27)
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फ़िरऔन के लोगों में से एक ईमानवाले व्यक्ति ने, जो अपनेईमान को छिपा रहा था, कहा,"क्या तुम एक ऐसे व्यक्ति को इसलिए मार डालोगे कि वह कहता है कि मेरा रब अल्लाह है और वहतुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से खुले प्रमाण भी लेकर आया है? यदि वह झूठा है तो उसके झूठ का वबाल उसी पर पड़ेगा। किन्तु यदि वह सच्चा है तो जिस चीज़ की वह तुम्हें धमकी दे रहा है, उसमें से कुछ न कुछ तो तुमपर पड़कर रहेगा। निश्चय ही अल्लाह उसको मार्ग नहीं दिखाता जो मर्यादाहीन, बड़ा झूठा हो। (28)
_______________________________
ऐ मेरी क़ौम के लोगो! आज तुम्हारी बादशाही है। धरती में प्रभावी हो। किन्तु अल्लाह की यातना के मुक़ाबले में कौन हमारी सहायता करेगा, यदि वह हम पर आ जाए?" फ़िरऔन ने कहा, "मैं तो तुम्हें बस वही दिखा रहा हूँ जो मैं स्वयं देख रहा हूँ और मैं तुम्हें बस ठीक रास्ता दिखा रहा हूँ, जो बुद्धिसंगत भी है।" (29)
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उस व्यक्ति ने, जो ईमान ला चुका था, कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मुझे भय है कि तुमपर (विनाश का) ऐसा दिन न आ पड़े, जैसा दूसरे विगत समुदायों पर आ पड़ा था। (30)
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जैसे नूह की क़ौम और आद और समूद और उनके पश्चात्वर्ती लोगों का हाल हुआ। अल्लाह तो ऐसा नहीं कि बन्दों पर कोई ज़ुल्म करना चाहे। (31)
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और ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मुझे तुम्हारे बारे में चीख़-पुकार के दिन का भय है, (32)
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जिस दिन तुम पीठ फेरकर भागोगे, तुम्हें अल्लाह से बचानेवाला कोई न होगा - और जिसे अल्लाह ही भटका दे उसे मार्ग दिखानेवाला कोई नहीं। -(33)
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इससे पहले तुम्हारे पास यूसुफ़ खुले प्रमाण लेकर आ चुके हैं, किन्तु जो कुछ वे लेकर तुम्हारे पास आए थे, उसके बारे में तुम बराबर सन्देह में पड़े रहे, यहाँ तक कि जब उनकी मृत्यु हो गई तो तुम कहने लगे, "अल्लाह उनके पश्चात कदापि कोई रसूल न भेजेगा।" इसी प्रकार अल्लाह उसे गुमराही में डाल देता है जो मर्यादाहीन, सन्देहों में पड़नेवाला हो। - (34)
_______________________________
ऐसे लोगों को (गुमराही में डालता है) जो अल्लाह की आयतों में झगड़ते हैं, बिना इसके कि उनके पास कोई प्रमाण आया हो, अल्लाह की दृष्टि में और उन लोगों की दृष्टि में जो ईमान लाए यह (बात) अत्यन्त अप्रिय है। इसी प्रकार अल्लाह हर अहंकारी, निर्दय- अत्याचारी के दिल पर मुहर लगा देता है। - (35)
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फ़िरऔन ने कहा,"ऐ हामान! मेरे लिए एक उच्च भवन बना, ताकि मैं साधनों तक पहुँच सकूँ, (36)
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आकाशों के साधनों (और क्षेत्रों) तक। फिर मूसा के पूज्य को झाँककर देखूँ। मैं तो उसे झूठा ही समझता हूँ।" इसप्रकार फ़िरऔन के लिए उसका दुष्कर्म सुहाना बना दिया गया और उसे मार्ग से रोक दिया गया। फ़िरऔन की चाल तो बस तबाही के सिलसिले में रही।(37)
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उस व्यक्ति ने, जो ईमान लाया था, कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मेरा अनुसरण करो, मैं तुम्हें भलाई का ठीक रास्ता दिखाऊँगा। (38)
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ऐ मेरी क़ौम के लोगो! यह सांसारिक जीवन तो बस अस्थायी उपभोग है। निश्चय ही स्थायी रूप से ठहरने का घर तो आख़िरत ही है। (39)
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जिस किसी ने बुराई की तो उसे वैसा ही बदला मिलेगा, किन्तु जिस किसी ने अच्छा कर्म किया, चाहे वह पुरुष हो या स्त्री, किन्तु हो वह मोमिन, तो ऐसे लोग जन्नत में प्रवेश करेंगे। वहाँ उन्हें बेहिसाब दिया जाएगा। (40)
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ऐ मेरी क़ौम के लोगो! यह मेरे साथ क्या मामला है कि मैं तो तुम्हें मुक्ति की ओर बुलाता हूँ और तुम मुझे आग की ओर बुला रहे हो? (41)
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तुम मुझे बुला रहे हो कि मैं अल्लाह के साथ कुफ़्र करूँ और उसके साथ उसे साझी ठहराऊँ जिसका मुझे कोई ज्ञान नहीं, जबकि मैं तुम्हें बुला रहा हूँ उसकी ओर जो प्रभुत्वशाली, अत्यन्त क्षमाशील है। (42)
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निस्संदेह तुम मुझे जिसकी ओर बुलाते हो उसके लिए न संसार में आमंत्रण है और न आख़िरत (परलोक) में औरयह कि हमेंलौटना भी अल्लाह ही की ओर है और यह कि जो मर्यादाहीन हैं, वही आग (में पड़ने) वाले हैं।(43)
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अतः शीघ्र ही तुम याद करोगे, जो कुछ मैं तुमसे कह रहा हूँ। मैं तो अपना मामला अल्लाह को सौंपता हूँ। निस्संदेह अल्लाह की दृष्टि सब बन्दों पर है। (44)
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अन्ततः जो चाल वे चल रहे थे, उसकी बुराइयों से अल्लाह ने उसे बचा लिया और फ़िरऔनियों को बुरी यातना ने आ घेरा; (45)
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अर्थात आग ने; जिसके सामने वे प्रातःकाल और सायंकाल पेश किए जाते हैं। और जिस दिन क़ियामत की घड़ी घटित होगी (कहा जाएगा), "फ़िरऔन के लोगों को निकृष्टतम यातना में प्रविष्ट कराओ!" (46)
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और सोचो जबकि वे आग के भीतरएक-दूसरे से झगड़ रहे होंगे, तो कमज़ोर लोग उन लोगों से, जोबड़े बनते थे, कहेंगे, "हम तो तुम्हारे पीछे चलनेवाले थे। अब क्या तुम हमपर से आग का कुछभाग हटा सकते हो?" (47)
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वे लोग, जो बड़े बनते थे, कहेंगे, "हममें से प्रत्येक इसी में पड़ा है। निश्चय ही अल्लाह बन्दों के बीच फ़ैसला कर चुका।" (48)
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जो लोग आग में होंगे वे जहन्नम के प्रहरियों से कहेंगे कि "अपने रब को पुकारो कि वह हमपर से एक दिन यातना कुछ हल्की कर दे!" (49)
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वे कहेंगे, "क्या तुम्हारेपास तुम्हारे रसूल खुले प्रमाण लेकर नहीं आते रहे?" कहेंगे, "क्यों नहीं!" वे कहेंगे, "फिर तो तुम्ही पुकारो।" किन्तु इनकार करनेवालों की पुकार तो बस भटककर ही रह जाती है। (50)
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निश्चय ही हम अपने रसूलों की और उन लोगों की जो ईमान लाएअवश्य सहायता करते हैं, सांसारिक जीवन में भी और उस दिन भी, जबकि गवाह खड़े होंगे। (51)
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जिस दिन ज़ालिमों को उनका उज़्र (सफ़ाई पेश करना) कुछ भी लाभ न पहुँचाएगा, बल्कि उनके लिए तो लानत है और उनके लिए बुरा घर है। (52)
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मूसा को भी हम मार्ग दिखा चुके हैं, और इसराईल की सन्तान को हमने किताब का उत्ताराधिकारी बनाया, (53)
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जो बुद्धि और समझवालों के लिए मार्गदर्शन और अनुस्मृतिथी। (54)
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अतः धैर्य से काम लो। निश्चय ही अल्लाह का वादा सच्चा है और अपने क़सूर की क्षमा चाहो और संध्या समय और प्रातः की घड़ियों में अपने रब की प्रशंसा की तसबीह करो। (55)
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जो लोग बिना किसी ऐसे प्रमाण के जो उनके पास आया हो अल्लाह की आयतों में झगड़ते हैं उनके सीनों में केवल अहंकार है जिस तक वे पहुँचनेवाले नहीं। अतः अल्लाह की शरण लो। निश्चय ही वह सुनता, देखता है। (56)
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निस्संदेह, आकाशों और धरतीको पैदा करना लोगों को पैदा करने की अपेक्षा अधिक बड़ा (कठिन) काम है। किन्तु अधिकतर लोग नहीं जानते। (57)
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अंधा और आँखोंवाला बराबर नहीं होते, और वे लोग भी परस्पर बराबर नहीं होते जिन्होंने ईमान लाकर अच्छे कर्म किए, और न बुरे कर्म करनेवाले ही परस्पर बराबर हो सकते हैं। तुम होश से काम थोड़े ही लेते हो! (58)
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निश्चय ही क़ियामत की घड़ीआनेवाली है, इसमें कोई सन्देहनहीं। किन्तु अधिकतर लोग मानते नहीं। (59)
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तुम्हारे रब ने कहा है कि"तुम मुझे पुकारो, मैं तुम्हारी प्रार्थनाएँ स्वीकार करूँगा।" जो लोग मेरीबन्दगी के मामले में घमंड से काम लेते हैं निश्चय ही वे शीघ्र ही अपमानित होकर जहन्नम में प्रवेश करेंगे। (60)
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अल्लाह ही है जिसने तुम्हारे लिए रात (अंधकारमय) बनाई, तुम उसमें शान्ति प्राप्त करो और दिन को प्रकाशमान बनाया (ताकि उसमें दौड़-धूप करो)। निस्संदेह अल्लाह लोगों के लिए बड़ा उदार अनुग्रहवाला है, किन्तु अधिकतर लोग कृतज्ञता नहीं दिखाते। (61)
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वह है अल्लाह, तुम्हारा रब,हर चीज़ का पैदा करनेवाला! उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। फिर तुम कहाँ उलटे फिरेजा रहे हो? (62)
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इसी प्रकार वे भी उलटे फिरे जाते थे जो अल्लाह की निशानियों का इनकार करते थे। (63)
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अल्लाह ही है जिसने तुम्हारे लिए धरती को ठहरने का स्थान बनाया और आकाश को एक भवन के रूप में बनाया, और तुम्हें रूप दिए तो क्या ही अच्छे रूप तुम्हें दिए, और तुम्हें अच्छी पाक चीज़ों की रोज़ी दी। वह है अल्लाह, तुम्हारा रब। तो बड़ी बरकतवाला है अल्लाह, सारे संसार का रब। (64)
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वह जीवन्त है। उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। अतः उसी को पुकारो, धर्म को उसी केलिए विशुद्ध करके। सारी प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है, जो सारे संसार का रब है। (65)
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कह दो, "मुझे इससे रोक दियागया है कि मैं उनकी बन्दगी करूँ जिन्हें तुम अल्लाह से हटकर पुकारते हो, जबकि मेरे पास मेरे रब की ओर से खुले प्रमाण आ चुके हैं। मुझे तो हुक्म हुआ है कि मैं सारे संसार के रब के आगे नतमस्तक हो जाऊँ।" - (66)
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  वही है जिसने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर वीर्य से, फिर रक्त के लोथड़े से; फिर वह तुम्हें एक बच्चे के रूप में निकालता है, फिर (तुम्हें बढ़ाता है) ताकि अपनी प्रौढ़ता को प्राप्त हो,फिर मुहलत देता है कि तुम बुढ़ापे को पहुँचो - यद्यपि तुममें से कोई इससे पहले भी उठा लिया जाता है - और यह इसलिए करता है कि तुम एक नियत अवधि तक पहुँच जाओ और ऐसा इसलिए है कि तुम समझो। (67)
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वही है जो जीवन और मृत्यु देता है, और जब वह किसी काम का फ़ैसला करता है, तो उसके लिए बस कह देता है कि 'हो जा' तो वह हो जाता है। (68) _______________________________
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो अल्लाह की आयतोंके बारे में झगड़ते हैं, वे कहाँ फिरे जाते हैं? (69)
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  जिन लोगों ने किताब को झुठलाया और उसे भी जिसके साथ हमने अपने रसूलों को भेजा था।तो शीघ्र ही उन्हें मालूम हो जाएगा। (70)
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जबकि तौक़ उनकी गरदनों मेंहोंगे और ज़ंजीरें (उनके पैरों में)। (71)
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वे खौलते हुए पानी में घसीटे जाएँगे, फिर आग में झोंक दिए जाएँगे। (72)
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फिर उनसे कहा जाएगा, "कहाँ हैं वे जिन्हें प्रभुत्व में साझी ठहराकर तुम अल्लाह के सिवा पूजते थे?" (73)
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वे कहेंगे, "वे हमसे गुम होकर रह गए, बल्कि हम इससे पहले किसी चीज़ को नहीं पुकारते थे।" इसी प्रकार अल्लाह इनकार करनेवालों को भटकता छोड़ देता है। (74)
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"यह इसलिए कि तुम धरती में नाहक़ मग्न थे और इसलिए कि तुम इतराते रहे हो। (75)
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प्रवेश करो जहन्नम के द्वारों में, उसमें सदैव रहनेके लिए।" अतः बहुत ही बुरा ठिकाना है अहंकारियों का! (76)
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अतः धैर्य से काम लो। निश्चय ही अल्लाह का वादा सच्चा है। तो जिस चीज़ की हम उन्हें धमकी दे रहे हैं उसमेंसे कुछ यदि हम तुम्हें दिखा दें या हम तुम्हें उठा लें, हरहाल में उन्हें लौटना तो हमारी ही ओर है। (77)
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हम तुमसे पहले कितने ही रसूल भेज चुके हैं। उनमें से कुछ तो वे हैं जिनके वृत्तान्त का उल्लेख हमने तुमसे किया है और उनमें ऐसे भी हैं जिनके वृत्तान्त का उल्लेख हमने तुमसे नहीं किया। किसी रसूल को भी यह सामर्थ्य प्राप्त न थी कि वह अल्लाह की अनुज्ञा के बिना कोई निशानी ले आए। फिर जब अल्लाह का आदेश आ जाता है तो ठीक-ठीक फ़ैसला कर दिया जाता है। और उस समय झूठवाले घाटे में पड़ जाते हैं। (78)
_______________________________
अल्लाह ही है जिसने तुम्हारे लिए चौपाए बनाए ताकि उनमें से कुछ पर तुम सवारी करो और उनमें से कुछ को तुम खाते भी हो।- (79)
_______________________________ उनमें तुम्हारे लिए और भी फ़ायदे हैं - और ताकि उनके द्वारा तुम उस आवश्यकता की पूर्ति कर सको जो तुम्हारे सीनों में हो, और उनपर भी और नौकाओं पर भी तुम सवार होते हो। (80)
_______________________________
और वह तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाता है। आख़िर तुम अल्लाह की कौन-सी निशानी को नहीं पहचानते? (81)
_______________________________
फिर क्या वे धरती में चले-फिरे नहीं कि देखते कि उन लोगों का कैसा परिणाम हुआ, जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं। वेउनसे अधिक थे और शक्ति और अपनी छोड़ी हुई निशानियों की दृष्टि से भी बढ़-चढ़कर थे। किन्तु जो कुछ वे कमाते थे, वहउनके कुछ भी काम न आया। (82)
_______________________________
फिर जब उनके रसूल उनके पास स्पष्ट प्रमाणों के साथ आए तोजो ज्ञान उनके अपने पास था वे उसी पर मग्न होते रहे और उनको उसी चीज़ ने आ घेरा जिसका वे परिहास करते थे। (83)
_______________________________
फिर जब उन्होंने हमारी यातना देखी तो कहने लगे, "हम ईमान लाए अल्लाह पर जो अकेला है और उसका इनकार किया जिसे हम उसका साझी ठहराते थे।" (84)
_______________________________
किन्तु उनका ईमान उनको कुछभी लाभ नहीं पहुँचा सकता था जबकि उन्होंने हमारी यातना को देख लिया - यही अल्लाह की रीति है, जो उसके बन्दों में पहले से चली आई है - और उस समय इनकार करनेवाले घाटे में पड़कर रहे। (85)
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