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43. अज़-ज़ुख़रुफ़ [ कुल आयतें -89 ]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
हा॰ मीम॰ (1)
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गवाह है स्पष्ट किताब। (2)
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हमने उसे अरबी क़ुरआन बनाया, ताकि तुम समझो। (3)
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  और निश्चय ही वह मूल किताब में अंकित है, हमारे यहाँ बहुत उच्च कोटि की, तत्वदर्शिता से परिपूर्ण है।(4)
_______________________________
    क्या इसलिए कि तुम मर्यादाहीन लोग हो, हम तुमपर से बिलकुल ही नज़र फेर लेंगे? (5)
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  हमने पहले के लोगों में कितने ही रसूल भेजे। (6)
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  किन्तु जो भी नबी उनके पास आया, वे उसका परिहास ही करते रहे। (7)
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  अन्ततः हमने उनको पकड़ मेंलेकर विनष्ट कर दिया जो उनसे कहीं अधिक बलशाली थे। और पहलेके लोगों की मिसाल गुज़र चुकीहै। (8)
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  यदि तुम उनसे पूछो कि"आकाशों और धरती को किसने पैदाकिया?" तो वे अवश्य कहेंगे,"उन्हें अत्यन्त प्रभुत्वशाली, सर्वज्ञ सत्ताने पैदा किया।" (9)
_______________________________
  जिसने तुम्हारे लिए धरती को गहवारा बनाया और उसमें तुम्हारे लिए मार्ग बना दिए ताकि तुम्हें मार्गदर्शन प्राप्त हो (10)
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और जिसने आकाश से एक अन्दाज़े से पानी उतारा। और हमने उसके द्वारा मृत भूमि कोजीवित कर दिया। इसी तरह तुम भी (जीवित करके) निकाले जाओगे। (11)
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  और जिसने विभिन्न प्रकार की चीज़ें पैदा कीं, और तुम्हारे लिए वे नौकाएँ और जानवर बनाए जिनपर तुम सवार होते हो। (12)
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  ताकि तुम उनकी पीठों पर जमकर बैठो, फिर याद करो अपने रब की अनुकम्पा को जब तुम उनपर बैठ जाओ और कहो, "कितना महिमावान है वह जिसने इसको हमारे वश में किया, अन्यथा हम तो इसे क़ाबू में कर सकनेवालेन थे। (13)
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और निश्चय ही हम अपने रब कीओर लौटनेवाले हैं।" (14)
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  उन्होंने उसके बन्दों में से कुछ को उसका अंश ठहरा लिया!निश्चय ही मनुष्य खुला कृतघ्न है। (15)
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(क्या किसी ने अल्लाह को इससे रोक दिया है कि वह अपने लिए बेटे चुनता) या जो कुछ वह पैदा करता है उसमें से उसने स्वयं ही अपने लिए तो बेटियाँलीं और तुम्हें चुन लिया बेटों के लिए? (16)    _______________________________
और हाल यह है कि जब उनमें से किसी को उसकी मंगल सूचना दी जाती है, जो वह रहमान के लिए बयान करता है, तो उसके मुँह पर कलौंस छा जाती है और वह ग़म के मारे घुटा-घुटा रहने लगता है। (17)
_______________________________
और क्या वह जो आभूषणों में पले और वह जो वाद-विवाद और झगड़े में खुल न पाए (ऐसी अबलाको अल्लाह की सन्तान घोषित करते हो)? (18)
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  उन्होंने फ़रिश्तों को, जोरहमान के बन्दे हैं, स्त्रियाँ ठहरा ली हैं। क्या वे उनकी संरचना के समय मौजूद थे? उनकी गवाही लिख ली जाएगी और उनसे पूछ होगी। (19)
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  वे कहते हैं कि "यदि रहमान चाहता तो हम उन्हें न पूजते।" उन्हें इसका कुछ ज्ञान नहीं। वे तो बस अटकल दौड़ाते हैं। (20)
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  (क्या हमने इससे पहले उनके पास कोई रसूल भेजा है?) या हमने इससे पहले उनको कोई किताब दी है तो वे उसे दृढ़तापूर्वक थामे हुए हैं? (21)
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   नहीं, बल्कि वे कहते हैं,"हमने तो अपने बाप-दादा को एक तरीक़े पर पाया और हम उन्हीं के पद-चिन्हों पर हैं, सीधे मार्ग पर चल रहे हैं।" (22)
_______________________________
    इसी प्रकार हमने जिस किसी बस्ती में तुमसे पहले कोई सावधान करनेवाला भेजा तो वहाँ के सम्पन्न लोगों ने बस यही कहा कि "हमने तो अपने बाप-दादा को एक तरीक़े पर पाया और हम उन्हीं के पद-चिन्हों पर हैं, उनका अनुसरण कर रहे हैं।" (23)
_______________________________
उसने कहा, "क्या यदि मैं उससे उत्तम मार्गदर्शन लेकर आया हूँ, जिसपर तूने अपने बाप-दादा को पाया है, तब भी (तुम अपने बाप-दादा के पद-चिह्नों का ही अनुसरण करोगे)?" उन्होंने कहा,"तुम्हें जो कुछ देकर भेजा गयाहै, हम तो उसका इनकार करते हैं।" -(24)
_______________________________
अन्ततः हमने उनसे बदला लिया। तो देख लो कि झुठलानेवालों का कैसा परिणामहुआ? (25)
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याद करो, जबकि इबराहीम ने अपने बाप और अपनी क़ौम से कहा,"तुम जिनको पूजते हो उनसे मेरा कोई सम्बन्ध नहीं, (26)
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    सिवाय उसके जिसने मुझे पैदा किया। अतः निश्चय ही वह मुझे मार्ग दिखाएगा।" (27)
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   और यही बात वह अपने पीछे (अपनी सन्तान में) बाक़ी छोड़ गया, ताकि वे रुजू करें।- (28)
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  नहीं,बल्कि मैं उन्हें और उनके बाप-दादा को जीवन-सुख प्रदान करता रहा, यहाँ तक कि उनके पास सत्य और खोल-खोलकर बतानेवाला रसूल आ गया। (29)
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किन्तु जब वह हक़ लेकर उनके पास आया तो वे कहने लगे,"यह तो जादू है। और हम तो इसका इनकार करते हैं।" (30)
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  वे कहते हैं, "यह क़ुरआन इन दो बस्तियों के किसी बड़े आदमी पर क्यों नहीं अवतरित हुआ?" (31)
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   क्या वे तुम्हारे रब की दयालुता को बाँटते हैं? सांसारिक जीवन में उनके जीवन-यापन के साधन हमने उनके बीच बाँटे हैं और हमने उनमें से कुछ लोगों को दूसरे कुछ लोगों से श्रेणियों की दृष्टि से उच्च रखा है, ताकि उनमें से वे एक-दूसरे से काम लें। और तुम्हारे रब की दयालुता उससे कहीं उत्तम है जिसे वे समेट रहे हैं। (32)
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  यदि इस बात की सम्भावना न होती कि सब लोग एक ही समुदाय (अधर्मी) हो जाएँगे, तो जो लोग रहमान के साथ कुफ़्र करते हैंउनके लिए हम उनके घरों की छतें चाँदी की कर देते और सीढ़ियाँ भी जिनपर वे चढ़ते। (33)
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  और उनके घरों के दरवाज़े भी और वे तख़्त भी जिनपर वे टेक लगाते (34)
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  और सोने द्वारा सजावट का आयोजन भी कर देते। यह सब तो कुछ भी नहीं, बस सांसारिक जीवन की अस्थायी सुख-सामग्री है। और आख़िरत तुम्हारे रब केयहाँ डर रखनेवालों के लिए है।(35)
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जो रहमान के स्मरण की ओर सेअंधा बना रहा है, हम उसपर एक शैतान नियुक्त कर देते हैं तोवही उसका साथी होता है। (36)
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  और वे (शैतान) उन्हें मार्गसे रोकते हैं और वे (इनकार करनेवाले) यह समझते हैं कि वे मार्ग पर हैं। (37)
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 यहाँ तक कि जब वह हमारे पासआएगा तो (शैतान से) कहेगा, "ऐ काश, मेरे और तेरे बीच पूरब केदोनों किनारों की दूरी होती! तू तो बहुत ही बुरा साथी निकला!" (38)
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  और जबकि तुम ज़ालिम ठहरे तो आज यह बात तुम्हें कुछ लाभ न पहुँचा सकेगी कि यातना में तुम एक-दूसरे के साझी हो। (39)
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क्या तुम बहरों को सुनाओगेया अंधों को और जो खुली गुमराही में पड़ा हुआ हो उसकोराह दिखाओगे? (40)
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  फिर यदि तुम्हें उठा भी लें तब भी हम उनसे बदला लेकर रहेंगे। (41)
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या हम तुम्हें वह चीज़ दिखा देंगे जिसका हमने उनसे वादा किया है। निस्संदेह हमें उनपर पूरी सामर्थ्य प्राप्त है।(42)
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अतः तुम उस चीज़ को मज़बूती से थामे रहो जिसकी तुम्हारी ओर प्रकाशना की गई। निश्चय ही तुम सीधे मार्ग पर हो। (43)
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    निश्चय ही वह अनुस्मृति हैतुम्हारे लिए और तुम्हारी क़ौम के लिए। शीघ्र ही तुम सबसे पूछा जाएगा। (44)
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तुम हमारे रसूलों से, जिन्हें हमने तुमसे पहले भेजा, पूछ लो कि क्या हमने रहमान के सिवा भी कुछ उपास्य ठहराए थे, जिनकी बन्दगी की जाए? (45)
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  और हमने मूसा को अपनी निशानियों के साथ फ़िरऔन और उसके सरदारों के पास भेजा तो उसने कहा, "मैं सारे संसार के रब का रसूल हूँ।" (46)
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  लेकिन जब वह उनके पास हमारी निशानियाँ लेकर आया तो क्या देखते हैं कि वे लगे उनकी हँसी उड़ाने (47)
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  और हम उन्हें जो निशानी भी दिखाते वह अपने प्रकार की पहली निशानी से बढ़-चढ़कर होती और हमने उन्हें यातना में ग्रस्त कर लिया, ताकि वे रुजू करें। (48)
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उनका कहना था, "ऐ जादूगर! अपने रब से हमारे लिए प्रार्थना कर, उस प्रतिज्ञा के आधार पर जो उसने तुझसे कर रखी है। निश्चय ही हम सीधे मार्ग पर चलेंगे।" (49)
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    फिर जब भी हम उनपर से यातनाहटा देते हैं, तो क्या देखते हैं कि वे प्रतिज्ञा-भंग कर रहे हैं। (50)
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फ़िरऔन ने अपनी क़ौम के बीच पुकारकर कहा, "ऐ मेरी क़ौमके लोगो! क्या मिस्र का राज्य मेरा नहीं और ये मेरे नीचे बहती नहरें? तो क्या तुम देखते नहीं? (51)
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  (यह अच्छा है) या मैं इससे अच्छा हूँ जो तुच्छ है, और साफ़ बोल भी नहीं पाता? (52)
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  (यदि वह रसूल है तो) फिर ऐसाक्यों न हुआ कि उसके लिए ऊपर से सोने के कंगन डाले गए होते या उसके साथ पार्श्ववर्ती होकर फ़रिश्ते आए होते?" (53)
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  तो उसने अपनी क़ौम के लोगोंको मूर्ख बनाया और उन्होंने उसकी बात मान ली। निश्चय ही वे अवज्ञाकारी लोग थे।(54)
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अन्ततः जब उन्होंने हमें अप्रसन्न कर दिया तो हमने उनसे बदला लिया और हमने उन सबको डूबो दिया। (55)
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अतः हमने उन्हें अग्रगामी और बादवालों के लिए शिक्षाप्रद उदाहरण बना दिया।(56)
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  और जब मरयम के बेटे की मिसाल दी गई तो क्या देखते हैं कि उसपर तुम्हारी क़ौम केलोग लगे चिल्लाने। (57)
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और कहने लगे, "क्या हमारे उपास्य अच्छे नहीं या वह (मसीह)?" उन्होंने यह बात तुमसे केवल झगड़ने के लिए कही, बल्कि वे तो हैं ही झगड़ालू लोग। (58)
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वह (ईसा मसीह) तो बस एक बन्दा था, जिसपर हमने अनुकम्पा की और उसे हमने इसराईल की सन्तान के लिए एक आदर्श बनाया। (59)
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 और यदि हम चाहते तो तुममें से फ़रिश्ते पैदा कर देते, जो धरती में उत्ताराधिकारी होते। (60)
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 निश्चय ही वह उस घड़ी (जिसका वादा किया गया है) के ज्ञान का साधन है। अतः तुम उसके बारे में संदेह न करो और मेरा अनुसरण करो। यही सीधा मार्ग है। (61)
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और शैतान तुम्हें रोक न दे,निश्चय ही वह तुम्हारा खुला शत्रु है। (62)
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जब ईसा स्पष्ट प्रमाणों केसाथ आया तो उसने कहा, "मैं तुम्हारे पास तत्वदर्शिता लेकर आया हूँ (ताकि उसकी शिक्षा तुम्हें दूँ) और ताकि कुछ ऐसी बातें तुमपर खोल दूँ, जिनमें तुम मतभेद करते हो। अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी बात मानो। (63)
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वास्तव में अल्लाह ही मेराभी रब है और तुम्हारा भी रब है, तो उसी की बन्दगी करो। यहीसीधा मार्ग है।" (64)
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  किन्तु उनमें के कितने ही गरोहों ने आपस में विभेद किया। अतः तबाही है एक दुखद दिन की यातना से, उन लोगों के लिए जिन्होंने ज़ुल्म किया। (65)
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क्या वे बस उस (क़ियामत की) घड़ी की प्रतीक्षा कर रहे हैंकि वह सहसा उनपर आ पड़े और उन्हें ख़बर भी न हो। (66)
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उस दिन सभी मित्र परस्पर एक-दूसरे के शत्रु होंगे सिवाय डर रखनेवालों के। - (67)
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"ऐ मेरे बन्दो! आज न तुम्हें कोई भय है और न तुम शोकाकुल होगे।" - (68)
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वह जो हमारी आयतों पर ईमान लाए और आज्ञाकारी रहे; (69)
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"प्रवेश करो जन्नत में, तुम भी और तुम्हारे जोड़े भी, हर्षित होकर!" (70)
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उनके आगे सोने की तशतरियाँऔर प्याले गर्दिश करेंगे और वहाँ वह सब कुछ होगा, जो दिलोंको भाए और आँखें जिससे लज़्ज़त पाएँ। "और तुम उसमें सदैव रहोगे। (71)
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यह वह जन्नत है जिसके तुम वारिस उसके बदले में हुए जो कर्म तुम करते रहे। (72)
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तुम्हारे लिए वहाँ बहुत-सेस्वादिष्ट फल हैं जिन्हें तुम खाओगे।" (73)
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  निस्संदेह अपराधी लोग सदैव जहन्नम की यातना में रहेंगे। (74)
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वह (यातना) कभी उनपर से हल्की न होगी और वे उसी में निराश पड़े रहेंगे। (75)
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हमने उनपर कोई ज़ुल्म नहींकिया, परन्तु वे ख़ुद ही ज़ालिम थे। (76)
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  वे पुकारेंगे, "ऐ मालिक! तुम्हारा रब हमारा काम ही तमाम कर दे!" वह कहेगा,"तुम्हें तो इसी दशा में रहना है।" (77)
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"निश्चय ही हम तुम्हारे पास सत्य लेकर आए हैं, किन्तु तुममें से अधिकतर लोगों को सत्य प्रिय नहीं। (78)
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  (क्या उन्होंने कुछ निश्चयनहीं किया है) या उन्होंने किसी बात का निश्चय कर लिया है? अच्छा तो हमने भी निश्चय कर लिया है। (79)
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या वे समझते हैं कि हम उनकीछिपी बात और उनकी कानाफूसी कोसुनते नहीं? क्यों नहीं, और हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) उनके समीप हैं, वे लिखते रहते हैं।" (80)
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कहो, "यदि रहमान की कोई सन्तान होती तो सबसे पहले मैं(उसे) पूजता। (81)
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आकाशों और धरती का रब, सिंहासन का स्वामी, उससे महानऔर उच्च है जो वे बयान करते हैं।" (82)
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अच्छा, छोड़ो उन्हें कि वे व्यर्थ की बहस में पड़े रहें और खेलों में लगे रहे। यहाँ तक कि उनकी भेंट अपने उस दिन से हो जिसका वादा उनसे किया जाता है।(83)
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वही है जो आकाशों में भी पूज्य है और धरती में भी पूज्य है और वह तत्वदर्शी, सर्वज्ञ है। (84)
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बड़ी ही बरकतवाली है वह सत्ता, जिसके अधिकार में है आकाशों और धरती की बादशाही औरजो कुछ उन दोनों के बीच है उसकी भी। और उसी के पास उस घड़ी का ज्ञान है, और उसी की ओर तुम लौटाए जाओगे। (85)
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और जिन्हें वे उसके और अपने बीच माध्यम ठहराकर पुकारते हैं, उन्हें सिफ़ारिश का कुछ भी अधिकार नहीं, बस उसे ही यह अधिकार प्राप्त है जो हक़ की गवाही दे,और ऐसे लोग जानते हैं।- (86)
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यदि तुम उनसे पूछो कि"उन्हें किसने पैदा किया?" तो वे अवश्य कहेंगे, "अल्लाह ने।" तो फिर वे कहाँ उलटे फिर जाते हैं?- (87)
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और उसका कहना हो कि "ऐ मेरेरब! निश्चय ही ये वे लोग हैं, जो ईमान नहीं रखते थे।" (88)
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अच्छा तो उनसे नज़र फेर लो और कह दो, "सलाम है तुम्हें!" अन्ततः शीघ्र ही वे स्वयं जानलेंगे। (89)
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