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45. अल-जासिया [ कुल आयतें -37 ]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
हा॰ मीम॰ (1)
_______________________________
इस किताब का अवतरण अल्लाह की ओर से है, जो अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।- (2)
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निस्संदेह आकाशों और धरती में ईमानवालों के लिए बहुत-सीनिशानियाँ हैं। (3)
_______________________________ और तुम्हारी संरचना में, और उनकी भी जो जानवर वह फैलाता रहता है, निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो विश्वास करें। (4)
_______________________________
और रात और दिन के उलट-फेर में भी, और उस रोज़ी (पानी) मेंभी जिसे अल्लाह ने आकाश से उतारा, फिर उसके द्वारा धरती को उसके मुर्दा हो जाने के पश्चात जीवित किया और हवाओं की गर्दिश में भी उन लोगों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं जोबुद्धि से काम लें।(5)
_______________________________
ये अल्लाह की आयतें हैं, हमउन्हें हक़ के साथ तुमको सुनारहे हैं। अब आख़िर अल्लाह और उसकी आयतों के पश्चात और कौन-सी बात है जिसपर वे ईमान लाएँगे? (6)
_______________________________
तबाही है हर झूठ घड़नेवालेगुनहगार के लिए, (7)
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जो अल्लाह की उन आयतों को सुनता है जो उसे पढ़कर सुनाई जाती हैं। फिर घमंड के साथ अपनी (इनकार की) नीति पर अड़ा रहता है मानो उसने उनको सुना ही नहीं। अतः उसको दुखद यातनाकी शुभ सूचना दे दो। (8)
_______________________________
जब हमारी आयतों में से कोई बात वह जान लेता है तो वह उनकापरिहास करता है, ऐसे लोगों के लिए रुसवा कर देनेवाली यातना है। (9)
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उनके आगे जहन्नम है, जो उन्होंने कमाया वह उनके कुछ काम न आएगा और न यही कि उन्होंने अल्लाह को छोड़कर अपने संरक्षक ठहरा रखे हैं। उनके लिए तो बड़ी यातना है। (10)
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यह सर्वथा मार्गदर्शन है। और जिन लोगों ने अपने रब की आयतों का इनकार किया, उनके लिए हिला देनेवाली दुखद यातना है।(11)
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वह अल्लाह ही है जिसने समुद्र को तुम्हारे लिए वशीभूत कर दिया है, ताकि उसके आदेश से नौकाएँ उसमें चलें; और ताकि तुम उसका उदार अनुग्रह तलाश करो; और इसलिए कि तुम कृतज्ञता दिखाओ। (12)
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  जो चीज़ें आकाशों में हैं और जो धरती में हैं, उसने उन सबको अपनी ओर से तुम्हारे काममें लगा रखा है। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ हैं जो सोच-विचार से काम लेते हैं। (13)
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जो लोग ईमान लाए उनसे कह दोकि, "वे उन लोगों को क्षमा करें (उनकी करतूतों पर ध्यान न दें) जो अल्लाह के दिनों की आशा नहीं रखते, ताकि वह इसके परिणामस्वरूप उन लोगों को उनकी अपनी कमाई का बदला दे। (14)
_______________________________
जो कोई अच्छा कर्म करता है तो अपने ही लिए करेगा और जो कोई बुरा कर्म करता है तो उसका वबाल उसी पर होगा। फिर तुम अपने रब की ओर लौटाये जाओगे। (15)
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निश्चय ही हमने इसराईल की सन्तान को किताब और हुक्म और पैग़म्बरी प्रदान की थी। और हमने उन्हें पवित्र चीज़ों की रोज़ी दी और उन्हें सारे संसारवालों पर श्रेष्ठता प्रदान की। (16)
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और हमने उन्हें इस मामले के विषय में स्पष्ट निशानियाँ प्रदान कीं। फिर जो भी विभेद उन्होंने किया, वह इसके पश्चात ही किया कि उनके पास ज्ञान आ चुका था और इस कारण कि वे परस्पर एक-दूसरे पर ज़्यादती करना चाहते थे। निश्चय ही तुम्हारा रब क़ियामत के दिन उनके बीच उन चीज़ों के बारे में फ़ैसला कर देगा, जिनमें वे परस्पर विभेद करते रहे हैं। (17)
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फिर हमने तुम्हें इस मामलेमें एक खुले मार्ग (शरीअत) पर कर दिया। अतः तुम उसी पर चलो और उन लोगों की इच्छाओं का अनुपालन न करना जो जानते नहीं। (18)
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वे अल्लाह के मुक़ाबले मेंतुम्हारे कदापि कुछ काम नहीं आ सकते। निश्चय ही ज़ालिम लोगएक-दूसरे के साथी हैं और डर रखनेवालों का साथी अल्लाह है। (19)
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यह लोगों के लिए सूझ के प्रकाशों का पुंज है, और मार्गदर्शन और दयालुता है उन लोगों के लिए जो विश्वास करें। (20)
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(क्या मार्गदर्शन और पथभ्रष्टता समान हैं) या वे लोग, जिन्होंने बुराइयाँ कमाई हैं, यह समझ बैठे हैं कि हम उन्हें उन लोगों जैसा कर देंगे जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए कि उनका जीना और मरना समान हो जाए? बहुत ही बुरा है जो निर्णय वे करते हैं! (21)
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अल्लाह ने आकाशों और धरती को हक़ के साथ पैदा किया और इसलिए कि प्रत्येक व्यक्ति को उसकी कमाई का बदला दिया जाए और उनपर ज़ुल्म न किया जाए। (22)
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क्या तुमने उस व्यक्ति को भी देखा जिसने अपनी इच्छा ही को अपना उपास्य बना लिया? अल्लाह ने (उसकी स्थिति) जानते हुए उसे गुमराही में डाल दिया, और उसके कान और उसकेदिल पर ठप्पा लगा दिया और उसकी आँखों पर परदा डाल दिया।फिर अब अल्लाह के पश्चात कौन उसे मार्ग पर ला सकता है? तो क्या तुम शिक्षा नहीं ग्रहण करते? (23)
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वे कहते हैं, "वह तो बस हमारा सांसारिक जीवन ही है। हम मरते और जीते हैं। हमें तो बस काल (समय) ही विनष्ट करता है।" हालाँकि उनके पास इसका कोई ज्ञान नहीं। वे तो बस अटकलें ही दौड़ाते हैं। (24)
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और जब उनके सामने हमारी स्पष्ट आयतें पढ़ी जाती हैं, तो उनकी हुज्जत इसके सिवा कुछऔर नहीं होती कि वे कहते हैं,"यदि तुम सच्चे हो तो हमारे बाप-दादा को ले आओ।" (25)
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कह दो, "अल्लाह ही तुम्हें जीवन प्रदान करता है। फिर वहीतुम्हें मृत्यु देता है। फिर वही तुम्हें क़ियामत के दिन तक इकट्ठा कर रहा है, जिसमें कोई संदेह नहीं। किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं।(26)
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आकाशों और धरती की बादशाहीअल्लाह ही की है। और जिस दिन वह घड़ी घटित होगी उस दिन झूठवाले घाटे में होंगे। (27)
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और तुम प्रत्येक गरोह को घुटनों के बल झुका हुआ देखोगे। प्रत्येक गरोह अपनी किताब की ओर बुलाया जाएगा, "आजतुम्हें उसी का बदला दिया जाएगा, जो तुम करते थे। (28)
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"यह हमारी किताब है, जो तुम्हारे मुक़ाबले में ठीक-ठीक बोल रही है। निश्चय ही हम लिखवाते रहे हैं जो कुछ तुम करते थे।" (29)
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अतः जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उन्हें उनका रब अपनी दयालुता में दाख़िल करेगा, यही स्पष्टसफलता है। (30)
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  रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया (उनसे कहा जाएगा,)"क्या तुम्हें हमारी आयतें पढ़कर नहीं सुनाई जाती थीं? किन्तु तुमने घमंड किया और तुम थे ही अपराधी लोग। (31)
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और जब कहा जाता था कि ‘अल्लाह का वादा सच्चा है और (क़ियामत की) उस घड़ी में कोई संदेह नहीं है।’ तो तुम कहते थे, ‘हम नहीं जानते कि वह घड़ी क्या है? हमें तो बस एक अनुमान-सा प्रतीत होता है और हमें विश्वास नहीं होता’।" (32)
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और जो कुछ वे करते रहे उसकीबुराइयाँ उनपर प्रकट हो गईं और जिस चीज़ का वे परिहास करते थे उसी ने उन्हें आ घेरा। (33)
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और कह दिया जाएगा कि "आज हमतुम्हें भुला देते हैं जैसे तुमने इस दिन की भेंट को भुला रखा था। तुम्हारा ठिकाना अब आग है और तुम्हारा कोई सहायक नहीं। (34)
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यह इस कारण कि तुमने अल्लाह की आयतों की हँसी उड़ाई थी और सांसारिक जीवन नेतुम्हें धोखे में डाले रखा।" अतः आज वे न तो उससे निकाले जाएँगे और न उनसे यह चाहा जाएगा कि वे किसी उपाय से (अल्लाह के) प्रकोप को दूर कर सकें। (35)
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अतः सारी प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है जो आकाशों का रब और घरती का रब, सारे संसार का रब है। (36)
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आकाशों और धरती में बड़ाई उसी के लिए है, और वही प्रभुत्वशाली, अत्यन्त तत्वदर्शी है। (37)
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