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57. अल-हदीद [ कुल आयतें - 29 ]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
अल्लाह की तसबीह की हर उस चीज़ ने जो आकाशों और धरती में है। वही प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।(1)
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आकाशों और धरती की बादशाहीउसी की है। वही जीवन प्रदान करता है और मृत्यु देता है, औरउसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है। (2)
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वही आदि है और अन्त भी और वही व्यक्त है और अव्यक्त भी।और वह हर चीज़ को जानता है। (3)
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वही है जिसने आकाशों और धरती को छह दिनों में पैदा किया; फिर सिंहासन पर विराजमान हुआ। वह जानता है जोकुछ धरती में प्रवेश करता है और जो कुछ उससे निकलता है और जो कुछ आकाश से उतरता है और जोकुछ उसमें चढ़ता है। और तुम जहाँ कहीं भी हो, वह तुम्हारे साथ है। और अल्लाह देखता है जो कुछ तुम करते हो। (4)
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आकाशों और धरती की बादशाहीउसी की है और अल्लाह ही की ओर सारे मामले पलटते हैं। (5)
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वह रात को दिन में प्रविष्ट कराता है और दिन को रात में प्रविष्ट कराता है। वह सीनों में छिपी बात तक को जानता है। (6)
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ईमान लाओ अल्लाह और उसके रसूल पर और उसमें से ख़र्च करो जिसका उसने तु्म्हें अधिकारी बनाया है। तो तुममें से जो लोग ईमान लाए और उन्होंने ख़र्च किया, उनके लिए बड़ा प्रतिदान है।(7)
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तुम्हें क्या हो गया है कि तुम अल्लाह पर ईमान नहीं लाते; जबकि रसूल तुम्हें निमंत्रण दे रहा है कि तुम अपने रब पर ईमान लाओ और वह तुमसे दृढ़ वचन भी ले चुका है,यदि तुम मोमिन हो। (8)
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वही है जो अपने बन्दों पर स्पष्ट आयतें उतार रहा है, ताकि वह तुम्हें अंधकारों से प्रकाश की ओर ले आए। और वास्तविकता यह है कि अल्लाह तुमपर अत्यन्त करुणामय, दयावान है। (9)
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और तुम्हें क्या हुआ है कि तुम अल्लाह के मार्ग में ख़र्च न करो, हालाँकि आकाशों और धरती की विरासत अल्लाह ही के लिए है? तुममें से जिन लोगों ने विजय से पूर्व ख़र्चकिया और लड़े वे परस्पर एक-दूसरे के समान नहीं हैं। वे तो दरजे में उनसे बढ़कर हैं जिन्होंने बाद में ख़र्च किया और लड़े। यद्यपि अल्लाह ने प्रत्येक से अच्छा वादा किया है। अल्लाह उसकी ख़बर रखता है, जो कुछ तुम करते हो। (10)
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कौन है जो अल्लाह को ऋण दे, अच्छा ऋण कि वह उसे उसके लिए कई गुना कर दे। और उसके लिए सम्मानित प्रतिदान है। (11)
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  जिस दिन तुम मोमिन पुरुषोंऔर मोमिन स्त्रियों को देखोगे कि उनका प्रकाश उनके आगे-आगे दौड़ रहा है और उनके दाएँ हाथ में है। (कहा जाएगा,)"आज शुभ सूचना है तुम्हारे लिए ऐसी जन्नतों की जिनके नीचे नहरें बह रही हैं, जिनमें सदैव रहना है। वही बड़ी सफलता है।" (12)
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जिस दिन कपटाचारी पुरुष और कपटाचारी स्त्रियाँ मोमिनों से कहेंगी, "तनिक हमारी प्रतीक्षा करो। हम भी तुम्हारे प्रकाश में से कुछ प्रकाश ले लें!" कहा जाएगा,"अपने पीछे लौट जाओ। फिर प्रकाश तलाश करो!" इतने में उनके बीच एक दीवार खड़ी कर दी जाएगी, जिसमें एक द्वार होगा।उसके भीतर का हाल यह होगा कि उसमें दयालुता होगी और उसके बाहर का यह कि उस ओर से यातना होगी(13)
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वे उन्हें पुकारकर कहेंगे,"क्या हम तुम्हारे साथी नहीं थे?" वे कहेंगे, "क्यों नहीं? किन्तु तुमने तो अपने आपको फ़ितने (गुमराही) में डाला और प्रतीक्षा करते रहे और सन्देह में पड़े रहे और कामनाओं ने तुम्हें धोखे में डाले रखा यहाँ तक कि अल्लाह का फ़ैसला आ गया ओर धोखेबाज़ (शैतान) ने तुम्हें अल्लाह के बारे में धोखे में डाले रखा है। (14)
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"अब आज न तुमसे कोई फ़िदया (मुक्ति-प्रतिदान) लिया जाएगाऔर न उन लोगों से जिन्होंने इनकार किया। तुम्हारा ठिकानाआग है, और वही तुम्हारी संरक्षिका है। और बहुत ही बुरी जगह है अन्त में पहुँचनेकी!" (15)
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क्या उन लोगों के लिए, जो ईमान लाए, अभी वह समय नहीं आयाकि उनके दिल अल्लाह की याद के लिए और जो सत्य अवतरित हुआ है उसके आगे झुक जाएँ? और वे उन लोगों की तरह न हो जाएँ, जिन्हें किताब दी गई थी, फिर उनपर दीर्घ समय बीत गया। अन्ततः उनके दिल कठोर हो गए और उनमें से अधिकांश अवज्ञाकारी ही रहे। (16)
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  जान लो, अल्लाह धरती को उसकी मृत्यु के पश्चात जीवन प्रदान करता है। हमने तुम्हारे लिए आयतें खोल-खोलकर बयान कर दी हैं, ताकि तुम बुद्धि से काम लो। (17)
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निश्चय ही जो सदक़ा देनेवाले पुरुष और सदक़ा देनेवाली स्त्रियाँ हैं और उन्होंने अल्लाह को अच्छा ऋण दिया, उसे उनके लिए कई गुना करदिया जाएगा। और उनके लिए सम्मानित प्रतिदान है। (18)
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  जो लोग अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए, वही अपने रबके यहाँ सिद्दीक़ और शहीद हैं।उनके लिए उनका प्रतिदान और उनका प्रकाश है। किन्तु जिन लोगों ने इनकार किया और हमारीआयतों को झुठलाया, वही भड़कतीआगवाले हैं। (19)
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जान लो, सांसारिक जीवन तो बस एक खेल और तमाशा है और एक साज-सज्जा, और तुम्हारा आपस में एक-दूसरे पर बड़ाई जताना, और धन और सन्तान में परस्पर एक-दूसरे से बढ़ा हुआ प्रदर्शित करना। वर्षा की मिसाल की तरह जिसकी वनस्पति ने किसान का दिल मोह लिया। फिर वह पक जाती है; फिर तुम उसे देखते हो कि वह पीली हो गई। फिर वह चूर्ण-विचूर्ण होकर रह जाती है, जबकि आख़िरत में कठोर यातना भी है और अल्लाह की क्षमा और प्रसन्नता भी। सांसारिक जीवनतो केवल धोखे की सुख-सामग्री है। (20)
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अपने रब की क्षमा और उस जन्नत की ओर अग्रसर होने में एक-दूसरे से बाज़ी ले जाओ, जिसका विस्तार आकाश और धरती के विस्तार जैसा है, जो उन लोगों के लिए तैयार की गई है जो अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाए हों। यह अल्लाह का उदार अनुग्रह है, जिसे चाहता है प्रदान करता है। अल्लाह बड़े उदार अनुग्रह का मालिक है।(21)
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जो मुसीबत भी धरती में आती है और तुम्हारे अपने ऊपर, वह अनिवार्यतः एक किताब में अंकित है, इससे पहले कि हम उसेअस्तित्व में लाएँ - निश्चय ही यह अल्लाह के लिए आसान है -(22)
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(यह बात तुम्हें इसलिए बता दी गई) ताकि तुम उस चीज़ का अफ़सोस न करो जो तुम से जाती रहे और न उसपर फूल जाओ जो उसनेतुम्हें प्रदान की हो। अल्लाह किसी इतरानेवाले, बड़ाई जतानेवाले को पसन्द नहीं करता।(23)
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जो स्वयं कंजूसी करते हैं और लोगों को भी कंजूसी करने पर उकसाते हैं, और जो कोई मुँहमोड़े तो अल्लाह तो निस्पृह प्रशंसनीय है। (24)
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  निश्चय ही हमने अपने रसूलों को स्पष्ट प्रमाणों के साथ भेजा और उनके साथ किताब और तुला उतारी, ताकि लोग इनसाफ़ पर क़ायम हों। और लोहा भी उतारा, जिसमें बड़ी दहशत है और लोगों के लिए कितने ही लाभ हैं., और (किताब एवं तुला इसलिए भी उतारी) ताकि अल्लाह जान ले कि कौन परोक्ष में रहते हुए उसकी और उसके रसूलों की सहायता करता है। निश्चय ही अल्लाह शक्तिशाली, प्रभुत्वशाली है।(25)
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  हमने नूह और इबराहीम को भेजा और उन दोनों की सन्तान में पैग़म्बरी और क़िताब रख दी। फिर उनमें से किसी ने तो संमार्ग अपनाया; किन्तु उनमें से अधिकतर अवज्ञाकारी हैं। (26)
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  फिर उनके पीछ उन्हीं के पद-चिन्हों पर हमने अपने दूसरे रसूलों को भेजा और हमनेउनके पीछे मरयम के बेटे ईसा को भेजा और उसे इंजील प्रदान की। और जिन लोगों ने उसका अनुसरण किया, उनके दिलों में हमने करुणा और दया रख दी। रहा संन्यास, तो उसे उन्होंने स्वयं घड़ा था। हमने उसे उनकेलिए अनिवार्य नहीं किया था, यदि अनिवार्य किया था तो केवलअल्लाह की प्रसन्नता की चाहत। फिर वे उसका निर्वाह न कर सके, जैसा कि उनका निर्वाह करना चाहिए था। अतः उन लोगों को, जो उनमें से वास्तव में ईमान लाए थे, उनका बदला हमने (उन्हें) प्रदान किया। किन्तुउनमें से अधिकतर अवज्ञाकारी ही हैं।(27)
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  ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो! अल्लाह का डर रखो और उसके रसूल पर ईमान लाओ। वह तुम्हेंअपनी दयालुता का दोहरा हिस्सा प्रदान करेगा और तुम्हारे लिए एक प्रकाश कर देगा, जिसमें तुम चलोगे और तुम्हें क्षमा कर देगा। अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।(28)
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ताकि किताबवाले यह न समझेंकि अल्लाह के अनुग्रह में से वे किसी चीज़ पर अधिकार न प्राप्त कर सकेंगे और यह कि अनुग्रह अल्लाह के हाथ में है, जिसे चाहता है प्रदान करता है। अल्लाह बड़े अनुग्रह का मालिक है। (29)
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