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67. अल-मुल्क [ कुल आयतें - 30 ]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
  बड़ा बरकतवाला है वह जिसके हाथ में सारी बादशाही है और वह हर चीज़ की सामर्थ्य रखता है। - (1)
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जिसने पैदा किया मृत्यु औरजीवन को, ताकि तुम्हारी परीक्षा करे कि तुममें कर्म की दृष्टि से कौन सबसे अच्छा है। वह प्रभुत्वशाली, बड़ा क्षमाशील है। - (2)
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जिसने ऊपर-तले सात आकाश बनाए। तुम रहमान की रचना में कोई असंगति और विषमता न देखोगे। फिर नज़र डालो, "क्या तुम्हें कोई बिगाड़ दिखाई देता है?" (3)
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फिर दोबारा नज़र डालो। निगाह रद्द होकर और थक-हारकर तुम्हारी ओर पलट आएगी। (4)
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हमने निकटवर्ती आकाश को दीपों से सजाया और उन्हें शैतानों के मार भगाने का साधनबनाया और उनके लिए हमने भड़कती आग की यातना तैयार कर रखी है। (5)
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जिन लोगों ने अपने रब के साथ कुफ़्र किया उनके लिए जहन्नम की यातना है और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है। (6)
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जब वे उसमें डाले जाएँगे तो उसकी दहाड़ने की भयानक आवाज़ सुनेंगे और वह प्रकोप से बिफर रही होगी। (7)
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ऐसा प्रतीत होगा कि प्रकोपके कारण अभी फट पड़ेगी। हर बार जब भी कोई समूह उसमें डाला जाएगा तो उसके कार्यकर्ता उनसे पूछेंगे,"क्या तुम्हारे पास कोई सावधान करनेवाला नहीं आया?" (8)
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वे कहेंगे, "क्यों नहीं, अवश्य हमारे पास सावधान करनेवाला आया था, किन्तु हमनेझुठला दिया और कहा कि अल्लाह ने कुछ भी नहीं अवतरित किया। तुम तो बस एक बड़ी गुमराही में पड़े हुए हो।" (9)
_______________________________
और वे कहेंगे, "यदि हम सुनते या बुद्धि से काम लेते तो हम दहकती आग में पड़नेवालों में सम्मिलित न होते।" (10)
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इस प्रकार वे अपने गुनाहोंको स्वीकार करेंगे, तो धिक्कार हो दहकती आगवालों पर!(11)
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जो लोग परोक्ष में रहते हुए अपने रब से डरते हैं, उनकेलिए क्षमा और बड़ा बदला है। (12)
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तुम अपनी बात छिपाओ या उसे व्यक्त करो, वह तो सीनों में छिपी बातों तक को जानता है। (13)
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क्या वह नहीं जानेगा जिसनेपैदा किया? वह सूक्ष्मदर्शी, ख़बर रखनेवाला है। (14)
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वही तो है जिसने तुम्हारे लिए धरती को वशीभूत किया। अतःतुम उसके (धरती के) कन्धों पर चलो और उसकी रोज़ी में से खाओ,उसी की ओर दोबारा उठकर (जीवित होकर) जाना है। (15)
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क्या तुम उससे निश्चिन्त हो जो आकाश में है कि वह तुम्हें धरती में धँसा दे, फिर क्या देखोगे कि वह डाँवाडोल हो रही है? (16)
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या तुम उससे निश्चिन्त हो जो आकाश में है कि वह तुमपर पथराव करनेवाली वायु भेज दे? फिर तुम जान लोगे कि मेरी चेतावनी कैसी होती है। (17)
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उन लोगों ने भी झुठलाया जो उनसे पहले थे, फिर कैसा रहा मेरा इनकार! (18)
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क्या उन्होंने अपने ऊपर पक्षियों को पंक्तिबद्ध पंख फैलाए और उन्हें समेटते नहीं देखा? उन्हें रहमान के सिवा कोई और नहीं थामे रहता। निश्चय ही वह हर चीज़ को देखता है। (19)
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या वह कौन है जो तुम्हारी सेना बनकर रहमान के मुक़ाबले में तुम्हारी सहायता करे। इनकार करनेवाले तो बस धोखे में पड़े हुए हैं। (20)
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या वह कौन है जो तुम्हें रोज़ी दे, यदि वह अपनी रोज़ी रोक ले? नहीं, बल्कि वे तो सरकशी और नफ़रत ही पर अड़े हुए हैं। (21)
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तो क्या वह व्यक्ति जो अपने मुँह के बल औंधा चलता हो वह अधिक सीधे मार्ग पर है या वह जो सीधा होकर सीधे मार्ग पर चल रहा है? (22)
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कह दो, "वही है जिसने तुम्हें पैदा किया और तुम्हारे लिए कान और आँखें औरदिल बनाए। तुम कृतज्ञता थोड़े ही दिखाते हो।" (23)
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कह दो, "वही है जिसने तुम्हें धरती में फैलाया और उसी की ओर तुम एकत्र किए जा रहे हो।" (24)
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वे कहते हैं, "यदि तुम सच्चे हो तो यह वादा कब पूरा होगा?" (25)
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कह दो, "इसका ज्ञान तो बस अल्लाह ही के पास है और मैं तोएक स्पष्ट सचेत करनेवाला हूँ।" (26)
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फिर जब वे उसे निकट देखेंगे तो उन लोगों के चेहरेबिगड़ जाएँगे जिन्होंने इनकार की नीति अपनाई; और कहा जाएगा, "यही है वह चीज़ जिसकी तुम माँग कर रहे थे।" (27)
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कहो, "क्या तुमने यह भी सोचा कि यदि अल्लाह मुझे और उन्हें भी, जो मेरे साथ हैं, विनष्ट ही कर दे या वह हम पर दया करे, आख़िर इनकार करनेवालों को दुखद यातना से कौन पनाह देगा?" (28)
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कह दो, "वह रहमान है। उसी पर हम ईमान लाए हैं और उसी पर हमने भरोसा किया। तो शीघ्र हीतुम्हें मालूम हो जाएगा कि खुली गुमराही में कौन पड़ा हुआ है।" (29)
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कहो, "क्या तुमने यह भी सोचा कि यदि तुम्हारा पानी (धरती में) नीचे उतर जाए तो फिर कौन तुम्हें लाकर देगा निर्मल प्रवाहित जल?" (30)
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